'नर्तन भेद और कचक' पुस्तक में नर्तन कला के तीनों भेदों नाट्य, नृत्त और नृत्य का विस्तारपूर्वक विवेचन कथक नृत्य के संदर्भ में करने का प्रयास किया गया है। देश के संगीत-नृत्य कला शिक्षण संस्थानों के पाठ्चक्रमों में नाट्य, नृत्त और नृत्य एक स्वतंत्र विषय है। उपर्युक्त विषयों से संबंधित, प्राचीन वेदों, पुराणों, उपनिषदों और अन्य साहित्यों में उल्लेखित प्रमाणों के आधार पर 'नर्तन भेद और कथक' पुस्तक का लेखन कार्य किया गया है। कथक नृत्य के संदर्भ में नाट्य कला का विस्तारपूर्वक विवेचन करने के साथ-साथ नायक-नायिका भेद, रस, भाव, अभिनय, स्थानक, चारी, करण और अंगहार के संदर्भ में नर्तन भेदों की व्यख्या किया गया है।
आशा है पाठक गण इस पुस्तक से लाभान्वित होंगे।
डॉ. भगवान दास माणिक महंत का जन्म छत्तीसगढ़ राज्य के जिला सारंगढ़ ग्राम भेड़वन में 04 मई 1958 को हुआ। रायगढ़ नरेश संगीत सम्राट राजां चक्रधर सिंह के दरबारी नर्तक, गुरु पं कल्याण दास महंत से आपने कथक नृत्य की शिक्षा गुरु-शिष्य परम्परा की कठिन साधना में 12 वर्षों तक प्राप्त की। इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय चौरागढ़ से कथक नृत्य में एम.ए. की उपाधि प्रावीण्य सूचि में प्रथम स्थान के साथ प्राप्त की। "नाट्य, नृत्त एवं नृत्य की अवधारणा का समालोचनात्मक अनुशीलन कथक नृत्य के संदर्भ में" विषय पर शोध उपाधि प्राप्त की।
कला भारती अलवर राजस्थान में आपने कथक नृत्य के वरिष्ठ गुरु के पद लगभग 04 वर्षों तक कार्य किया। बाद में विजया राजे शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, ग्वालियर, मध्यप्रदेश में लगभग 40 वर्षों तक प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष के पद पर कार्य करते हुए सैकड़ों विद्यार्थियों को रायगढ़ कथक घराने में पारंगत किया। आपने अनेको नृत्य नाटिकाओं का लेखन और सफल निर्देशन कार्य भी किया। देश के अनेकों मंचों पर अपनी नृत्य प्रस्तुतियों दी है।
सफल कलाकार और गुरु होने के साथ-साथ आप लेखक भी हैं। आपके द्वारा लिखित पुस्तक 'कथक मध्यमा और 'कथक घराना रायगढ़ बेहद लोकप्रिय है।
डॉ. मानव महंत का जन्म 21 सितम्बर 1990 को रायगढ़ कथक घराना परिवार में हुआ। आपके पिता डॉ. भगवान दास माणिक महंत, रायगढ़ घराने के दरबारी नर्तक गुरु पं. कल्याण दास महंत के शिष्य है। माता डॉ. मोहिनी देवी भी रायगढ़ कथक घराने की श्रेष्ठ नृत्यांगना थी।
कथक नृत्य की शिक्षा डॉ. मानव ने अपने माता-पिता से प्राप्त की। राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय से एम.ए. कथक की उपाधि प्रथम श्रेणी में प्राप्त करने के बाद रायगढ़ नरेश संगीत सम्राट राजा चक्रधर सिंह रचित ग्रंथ मुरजपर्णपुष्पाकर पर बृहदशोध कार्य किया।
आप अनेकों प्रतिष्ठित संगीत-नृत्य समारोहों में अपनी प्रस्तुति दे चुके है। रायगढ़ घराने को देश-विदेश में प्रतिष्ठित करने हेतु आप सतत प्रयासरत है। रायगढ़ घराने के प्रचार-प्रसार हेतु आप अनेकों अलंकरणों से विभूषित हो चुके हैं।
आपके द्वारा लिखित पुस्तक 'रायगढ़ घराना कथक' और 'कथक मध्यमा' अत्यंत लोकप्रिय है। रायगढ़ कथक घराने की रचनाओं का सौंदर्य पुस्तक भी प्रकाशित होने जा रही है।
नर्तन भेद और कथक' पुस्तक के लेखन कार्य का प्रमुख उद्देश्य है- 'नटन कला' अर्थात 'नर्तन कला' के तीन अति महत्त्वपूर्ण विषय- 'नाट्य, नृत्त और नृत्य कलाओं के विशाल ज्ञान सागर रूपी सार से नृत्य जगत को अवगत कराना।
नृत्य कला सम्बन्धि साहित्य वेद, पुराणों और उपलब्ध पुस्तकों में उपर्युक्त विषयों पर अत्यन्त संक्षिप्त विवरण देखने को मिलता है। जबकि 'नाट्य, नृत्त और नृत्य' अत्यन्त ही विस्तृत और संवेदनशील कलाऐं है।
इन सभी कलाओं की उत्पत्ति का सीधा सम्बन्ध भारतीय सनातन धर्म के आस्था और आराध्य का प्रमुख केन्द्र बिन्दू हमारे देवी-देवताओं से है। नाट्य कला की उत्पत्ति का मूलाधार एक ओर जहाँ हमारे चारों वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अर्थवेद से हैं, वहीं दूसरी ओर 'नृत्त' कला की उत्पत्ति देवाधिदेव नटराज महादेव शिवशंकर और उनकी अर्धांगिनी भगवती देवी पार्वती से हुई है।
नटवर भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी रासलीला नृत्य कला से सम्पूर्ण सृष्टि को प्रेम का संदेश दिया। उनके द्वारा ब्रज की गोपिकाओं के संग किया गया 'रासलीला नृत्य आज भी समस्त ब्रज भूमि में आस्था का प्रमुख केन्द्र है।
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