पुस्तक परिचय
हमारे समाज की आधुनिकता और विकास का गंगा पर क्या असर पड़ा है? आज इस समाज में गंगा की जगह कहां है और कितनी है? गंगा के किनारे-किनारे चलती ये कहानियां हमें उस दुनिया में ले जाती हैं, जहां गंगा एक अहम किरदार है। लेकिन वह जितनी पूज्य है उतनी ही उपेक्षित भी, इसका जितना सम्मान है उतनी ही यह वेबस और तबाह भी है। अभय मिश्र और पंकज रामेन्दु ने गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक की यात्रा की ताकि वे उस समाज की थाह ले सकें, जिससे होकर अथाह गंगा बहती रही है। 'दर-दर गंगे सचमुच पूरी गंगा दिखा देती है, पूरी गंगा घुमा देती है। यह गंगा की गहराई भी बताती है और हमारे आधुनिक विकास का उथलापन भी। गंगोत्री से गंगा सागर तक की ऐसी विचार-यात्रा अद्भुत आनंद देती है। साथ ही एक अजीब सी उदासी भी। उदासी इसलिए कि पाठक इस यात्रा की समाप्ति को मन से स्वीकार नहीं कर पाता'
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