मध्यप्रदेश के स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास में देवास की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। किसी भी स्थान के कितने ही ऐतिहासिक तथ्य उपलब्ध हों, किंतु लोक जीवन में उस स्थान का जो नाम प्रचलित हो जाता है, वह ही उस स्थान की पहचान बन जाता है। देवास जिले का नामकरण भी पहाडियों पर स्थित विख्यात मंदिरों में प्रतिष्ठित माँ चामुण्डा एवं माँ तुलजा देवी वास अथवा देव-वास कहा जाने लगा, जो प्रचलित भाषा में देवास हो गया। संस्कृत विद्वानों के मतानुसार देवासः जहाँ देवों का वास नाम के साहूकार ने देवास बसाया अतः देवी-वास देवासः एवं दिवासा आगे जाकर मिलकर देवास हो गया।
देवास का इतिहास प्रागैतिहासिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध एवं गौरवपूर्ण रहा है। भारतीय इतिहास की विभिन्न धाराओं से भी यह क्षेत्र हम कदम और हमराह हुआ है। नर्मदा, क्षिप्रा, कालीसिंध, नागधम्मन जैसी नदियों के जल से परिपूरित यह क्षेत्र इतिहास में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
18वीं सदी में मराठों की सक्रियता बढ़ने पर संपूर्ण मालवा क्षेत्र सिंधिया, होलकर और तीन पवार सरदारों के अधीन आ गया था। तत्काwलीन समय में देवास जिला मराठाओं की तीन रियासतों में आता था। कन्नौद तथा खातेगाँव तहसीलें होलकर राज्य के नेमावर जिले के अंतर्गत थीं। बागली, हाटपीपलिया एवं सोनकच्छ तहसील, ग्वालियर रियासत का अंग थी। ग्राम पुंजापुरा से उदयनगर तक धार रियासत के अंतर्गत निमनपुर परगने के अधीन थे। देवास-पवारों के अधीन था।
देवास क्षेत्र में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष सर्वप्रथम भीलों द्वारा सन् 1818 से 1831 के मध्य किया गया, जिसके मूल में भीलों की जमीन छीनने तथा भयावह कर वसूली जैसे कारण प्रमुख थे। वस्तुतः इसी साम्राज्यवादी शोषण की पृष्ठभूमि में 1857 में किसानों, साहूकारों, जमींदारों और यहाँ की जनता ने औपनिवेशिक शासन की अत्याचारी नीतियों के खिलाफ प्रतिरोध का स्वर मुखर किया था। देवास में इस महान क्रांति के प्रमुख नायक ठाकुर सकतसिंह सक्तावत, बख्तावरसिंह, महाराज दौलतसिंह राठौर आदि थे। क्रांति की यह चेतना देवास, हाटपीपपलिया, राघौगढ़, कांटाफोड़, नेमावर आदि क्षेत्रों में तेजी से जाग्रत हुई थी। क्रांति के बाद के वर्षों में तिलकयुग और गाँधीयुग में हुए आंदोलनों का व्यापक प्रभाव देवास क्षेत्र में देखने को मिला। इस संदर्भ में यहाँ का चरनोई आंदोलन और अनाज आंदोलन महत्वपूर्ण घटनाएँ हैं। इसी दौर में प्रजामंडल आंदोलन और आज़ाद हिंद फौज के प्रभाव से देवास क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा।
इस पुस्तक में देवास में हुए स्वाधीनता आंदोलन और उससे जुड़ी इन सभी घटनाओं को समाहित करने का प्रयास किया गया है ताकि स्वाधीनता आंदोलन में देवास के महत्वपूर्ण योगदान को रेखांकित किया जा सके।
इस राष्ट्रीय संग्राम में देवास जिले में अपनी सक्रिय, वीरतापूर्ण, त्यागमयी भूमिका निभाने वाले वीर क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के विषय में लिखना, उस समय की घटनाओं, व्यक्तियों, समाज का वर्णन करना मेरे लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य रहा। इस पुस्तक को पूर्ण करने में गुरूवर डॉ. श्यामसुन्दर निगम, निदेशक - कावेरी शोध संस्थान, उज्जैन, डॉ. मनोहर सिंह जी राणावत, उपनिदेशक श्री नटनागर शोध संस्थान, सीतामऊ (मंदसौर) का आभारी हूँ जिन्होंने निरंतर मार्गदर्शन, शोध सुविधाएँ प्रदान कीं। डॉ. बालकृष्ण पंजाबी का भी मार्गदर्शन मिला।
श्रीमती किरण गंगराड़े, प्रदीप व्यास, जिला रेकार्ड कलेक्टर कार्यालय देवास, प्रो. संतोष धुर्वे (भोपाल), पुष्पेंद्रसिंह राठौर (कन्नौद), जगदीश गुरूजी (नेमावर), रमेश आनंद, शहीद दौलतसिंह राठौर तथा शहीद सक्तसिंह शक्तावत के वंशजों क्रमशः कुँवर चेतसिंह राठौर (राघौगढ़, बरखेड़ा सोमा) तथा कुँवर योगेन्द्रसिंह शक्तावत (झिकराखेड़ा-हाटपीपलिया) का आभारी हूँ। मेरे अभिन्न मित्र डॉ. प्रकाशकान्त का तथा प्रभु जोशी का भी आभारी हूँ, जिन्होंने निरंतर विचार विमर्श में मेरा साथ दिया। भाई दिलीपसिंह जाधव की आत्मीयता, उनकी सात्विक विचारशीलता व सक्रिय सहयोग के प्रति आभारी हैं। साथ ही किशोर चौधरी एवं दीपक भाटी का भी आभार जिनका सक्रिय सहयोग प्राप्त हुआ।
अंततः स्वराज संस्थान संचालनालय, भोपाल का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने देवास के स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास के लेखन का यह महत्वपूर्ण दायित्व मुझे प्रदान किया।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist