भारत के स्वाधीनता आंदोलन की गणना आधुनिक विश्व के महान आंदोलनों में की जाती है। इस आंदोलन में देश के हर वर्ग के लोगों ने सक्रियता से भाग लिया और ब्रिटिश सत्ता से देश को स्वतंत्र करने में सफलता प्राप्त की। इसमें गाँधीवादी रणनीति की बहुत बड़ी भूमिका थी। भारत का स्वतंत्रता आंदोलन इस बात का महत्वपूर्ण उदाहरण है कि कोई व्यापक जन आंदोलन किस प्रकार खड़ा किया जा सकता है।
राष्ट्रीय स्तर पर हुए आंदोलनों के साथ-साथ क्षेत्रीय स्तर पर भी इसका व्यापक प्रसार और प्रभाव रहा। मध्यप्रदेश में हुए आंदोलनों में धार जिले की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। यहाँ के स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास हमारी कल्पनाओं से भी अधिक समृद्ध रहा है।
धार अंचल के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास पर शोध कार्य एक महत्वपूर्ण चुनौती थी और स्वाभाविकतः किसी भी क्षेत्र के इतिहास के समान धार के इतिहास को किसी एक पुस्तक में समेटना अत्यंत दुष्कर कार्य था, फिर भी इस शोध कार्य के दौरान जो तथ्य मुझे प्राप्त हुए उनका मैंने गहराईपूर्वक अध्ययन किया।
धार पर 1857 की क्रांति के पहले कभी मुगलों ने राज करा तो कभी परमारों ने। मध्यकालीन शासको ने धार को राजधानी योग्य समझा था, लेकिन मुगलकाल में राजधानी, धार की जगह मांडू में बना दी गई। अतः उस समय में धार, मांडू का एक महाल बनकर रह गया था, इसी वजह से इसकी प्रसिद्धि भी कुछ कम हो गई थी।
अंग्रेज जब धार क्षेत्र में आए तो उन्होंने यहाँ के राजाओं से धीरे-धीरे उनका राजपाठ ले लिया और अपनी सत्ता जमा ली। राज्य के काम में उनका दखल बढ़ गया। इसके साथ ही अंग्रेजों ने धार के आस-पास के क्षेत्रों पर भी अपना कब्जा जमाना शुरू किया। धार के किले से लेकर उसके शासन-प्रशासन सभी पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली। 1857 की क्रांति में यहाँ के सैनिकों के साथ ही नागरिकों ने भी बलिदान दिया। अमझेरा के राजा बख्तावर सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला और आखिर में उन्हें भी फाँसी पर चढ़ा दिया गया। आज भी मालवा में राजा के बलिदान को याद किया जाता है।
धार में अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुए, जिन्होंने आंदोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया। शोधकार्य के दौरान धार जिले के दो वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से साक्षात्कार का अवसर मिला और उन्होंने धार के स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी अनेक जानकारियों से अवगत कराया। जिन्हें इस पुस्तक में समाहित किया गया है।
मैं स्वराज संस्थान संचालनालय की आभारी हूँ जिन्होंने मुझे यह शोधकार्य करने का अवसर प्रदान किया। शोधकार्य में धार के राजा भोज शोध संस्थान के निर्देशक डॉ. दीपेंद्र शर्मा के सहयोग के लिए उनकी आभारी हूँ। सामग्री संकलन में सहयोग के लिए जावेद आलम, शिल्पी शर्मा और विनोद उपाध्याय का धन्यवाद करती हूँ। शोध के दौरान राज्य संग्रहालय के श्री लोखंडे जी तथा सप्रे संग्रहालय की निदेशक डॉ. मंगला अनुज जी ने मुझे मार्गदर्शन दिया इसके लिए उनका आभार। धार के कलेक्टर कार्यालय से सामग्री जुटाने में सहयोग के लिए अधिवक्ता धीरज दीक्षित, निसार मोहम्मद का भी आभार।
अंत में, यह शोध कार्य अंतिम नहीं है, इससे भी श्रेष्ठ कार्य आने वाली पीढ़ी कर सकती है। तथापि अपनी ओर से बेहतर करने का यह प्रयास, मैं आप सबकी ओर सादर समर्पित करती हूँ।
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