आयुर्वेद चिकित्सा को भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली के रूप में जाना जाता है। आयुर्वेद चिकित्सा न केवल लंबे समय तक आराम पहुंचाती है बल्कि स्वस्थ जीवन जीने में भी मदद करती है। वर्तमान में विभिन्न रोगों के उपचार में 'एलोपैथी' का बोलबाला है। शहरों में ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोग आधुनिक चिकित्सा पद्धति की ओर आकृष्ट हो रहे हैं। लेकिन आज भी अनेक लोग आयुर्वेद के प्राचीन उपचारों को सम्पन्न कर लाभान्वित होते देखे जा सकते हैं। ये अधिकांश उपचार सरल, निरापद तथा प्रभावी होते हैं।
आयुर्वेद के ज्ञान का चरक संहिता तथा सुश्रुत संहिता में व्यापक रूप से उल्लेख किया गया था। आयुर्वेद मानव के शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक और सामाजिक पहलुओं का पूर्ण समाकलन करता है, जो एक दूसरे को प्रभावित करते है।
आयुर्वेद में रोगों की पहचान एवं परीक्षण विभिन्न प्रश्नों और आठ परीक्षणों, जैसे नाड़ी, मूत्र, मल, जिह्वा, शब्द (आवाज) स्पर्श, नेत्र, आकृति द्वारा की जाती है।
आयुर्वेद में व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान, नियमित दिनचर्या, उचित सामाजिक व्यवहार तथा रसायन सेवन जैसे कायाकल्प करने वाली वस्तुएं, भोजन और रसायन औषधियां आदि आते हैं तथा रोगहर चिकित्सा में औषधियों का प्रयोग, विशिष्ट आहार और जीवनचर्या शामिल है, जिससे उत्पन्न रोग को ठीक किया जाता है।
प्रस्तुत पुस्तक आयुर्वेदिक नर्स, कंपाउंडर डिप्लोमा पाठ्यक्रम में शामिल रही है। आयुर्वेद में शिक्षण एवं प्रशिक्षण की दृष्टि से यह आम पाठकों के लिए भी बहुत उपयोगी जानकारी देने वाली पुस्तक है।
पत्रिका प्रकाशन की स्वास्थ्य-श्रृंखला में प्रकाशित श्रेष्ठ पुस्तकों की कड़ी में 'रोग निदान एवं चिकित्सा विज्ञान' आयुर्वेद की ओर चेतना जागरण में सहायक होगी तथा आयुर्वेद के प्रति लोगों के दृष्टिकोण को परिमार्जित करेगी।
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