यह एक लंबी और बहुत कठिन यात्रा थी। व्यापक चर्चा के बाद, पुस्तक 'इंडिया 2020 : ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम' पर एक साल पहले ही काम शुरू हो गया था और लेखक, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और उनके घनिष्ठ मित्र वाई.एस. राजन ने इसे अध्याय-दर-अध्याय प्रस्तुत किया था। प्रत्येक अध्याय में भारत को लेकर तथ्य, आँकड़े और अनुमान दिए गए थे कि कैसे इस देश में किसी विशेष क्षेत्र में आगे बढ़ने और उत्कृष्टता हासिल करने की क्षमता विद्यमान है। इन क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी से लेकर कृषि और स्वास्थ्य सेवा तक के विस्तृत दायरे शामिल थे। देश के स्वतंत्रता दिवस के दिन- अगस्त, 1998 में पुस्तक जारी करने के लिए बहुत कड़ी समय-सीमा तय की गई थी। इसके अतिरिक्त 11 और 13 मई को पोखरण-द्वितीय परमाणु परीक्षण हुआ था, जिसमें डॉ. कलाम ने समन्वयक के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई थी।
जैसे-जैसे भारत नई सहस्त्राब्दी में आगे की ओर बढ़ रहा है, इसमें एक ऐसी पुस्तक की उम्मीद करने का उचित समय है, जो देश के विकास-पथ में एक नाटकीय बदलाव लाएगी, जो इसे एक संभावित उपलब्धिकर्ता से एक टॉप परफॉर्मर बना देगी। आज दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में भारत की स्थिति निश्चित प्रतीत होती है, लेकिन उस समय, जब देश ने संघर्षरत अर्थव्यवस्था के अलावा परमाणु परीक्षणों के बाद लगाए गए प्रतिबंधों का सामना किया, तो यह कुछ दूर की बात लगती थी।
तब यह इतना स्पष्ट नहीं था कि पुस्तक न सिर्फ इतना प्रभाव डालेगी, बल्कि अगले बीस वर्षों के लिए एजेंडा सेट करेगी, जो दशकों की धीमी प्रगति के बाद नई समस्याओं से जूझ रहे देश को सफलता के लिए उम्मीद और लक्ष्य प्रदान करेगी। 'इंडिया 2020' असंख्य चर्चाओं, भाषणों और कार्यक्रमों का केंद्र बन गई।
हमारा पूरा ध्यान पुस्तक को प्रेस तक लाने की सख्त समय-सीमा पर था, यह भी तय हुआ कि औसत से ऊपर ठीक-ठाक 4,000 हार्डबैक प्रतियों से ही शुरुआत की जाए। लेकिन इन सबके बीच हमारे पास इस चर्चा के लिए समय ही नहीं बचा कि यह तय हो पाए कि पुस्तक का लोकार्पण कैसे हो और किसे मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया जाए? डॉ. कलाम के सुझाव पर रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस को आमंत्रित करने का निर्णय लिया गया, जो एक समय के तेज-तर्रार ट्रेड यूनियन नेता थे और हर मायने में एक अच्छे मंत्री थे तथा वाजपेयी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के लिए संकटमोचक थे, जिसमें लगभग दो दर्जन साझेदार थे। चूँकि उनमें से कुछ हमेशा गठबंधन छोड़ने को आतुर रहते थे, तो ऐसे में फर्नांडिस को ही उन्हें मनाने के लिए भेजा जाता था। जैसे-जैसे कार्यक्रम की तारीख करीब आती गई, फर्नांडिस की ओर से कुछ संकेत मिले कि वह लोकार्पण के लिए आएँगे, लेकिन अनिश्चितता बनी रही। और लोकार्पण के दिन ही यह साफ हो पाया-उनकी तरफ से कुछ बताया नहीं गया। बहुत प्रयास के बाद थोड़ी-बहुत जानकारी मिल सकी कि वह किसी मुद्दे पर गठबंधन सहयोगियों में से एक की नाराजगी दूर करने के लिए समस्या निवारण यात्राओं पर निकले थे।
इस तरह दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आई.आई.सी.) के एक सेमिनार हॉल में यह एक मौन पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम बनकर रह गया।
एक फोटोग्राफर ने मुख्य आई.आई.सी. बिल्डिंग की तरफ बढ़ते डॉ. कलाम और वाई.एस. राजन का वीडियो लिया था और शायद यह वीडियो अब भी उसके पास मौजूद होगा। यदि वह मौजूद हो तो वह बेशकीमती फुटेज है। पुस्तक का प्रभाव बिल्कुल दूसरी बात थी। कुछ पुस्तकें 'इंडिया 2020' की तरह ही नजरिया और मानसिकता बदल देती हैं।
दरअसल यह उम्मीद थी कि अगले दो दशकों में पुस्तक में निर्धारित लक्ष्यों को हासिल कर लिया जाएगा। यह लक्ष्य न केवल औद्योगिक और वैज्ञानिक क्षेत्र में हासिल कर पाना संभव था, बल्कि उन अमूर्त चीजों के संदर्भ में भी था, जो प्रगति के लिए आवश्यक हैं-जैसे कि एक स्वच्छ वातावरण, एक बेहतर जीवन शैली और जनता के बीच अधिक सद्भाव। इस पुस्तक का सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं- हिंदी, मलयालम, तमिल, तेलुगु, मराठी, असमिया - में अनुवाद किया गया। अगले कुछ वर्षों में इस पुस्तक के अंग्रेजी संस्करण की 5,00,000 से अधिक प्रतियाँ बिकीं। 'इंडिया 2020' में निर्धारित लक्ष्य हासिल हुए या नहीं, या शायद कुछ मामलों में वे अवास्तविक रूप से ऊँचे थे, इन सब विचारों से परे यह पुस्तक उस परिवर्तनकारी ताकत का एहसास कराती है, जो एक स्पष्ट लक्ष्य और सकारात्मक दृष्टिकोण में निहित होता है।
'इंडिया 2020' ने जब शानदार सफलता के झंडे गाड़े, तब डॉ. कलाम रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डी.आर.डी.ओ.) जैसे प्रमुख विभागों में समन्वय करने और निर्णय लेने के केंद्र में थे तथा साउथ ब्लॉक में बैठते थे। उसी दौरान भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार बनाए गए थे एवं साउथ ब्लॉक से विज्ञान भवन के एनेक्सी में अपने ऑफिस में शिफ्ट हुए थे।
यहाँ हमने 'इंडिया 2020' की समीक्षा की, जिसके बाद उन्होंने इस पुस्तक को नया शीर्षक दिया-' इग्नाइटेड माइंड्स', जो आगे चलकर एक तकियाकलाम बन गया। विज्ञान भवन में उनका एक बड़ा कार्यालय था, जहाँ हम कभी-कभी पुस्तक की रूपरेखा तैयार करने के लिए मिलते थे। हालाँकि काम के मोरचे पर वे हमेशा विचारों से भरे रहते थे, लेकिन चीजें बहुत अच्छी तरह से आगे नहीं बढ़ रही थीं। वे किसी भी गलती पर बहुत कम प्रतिक्रिया दिखाते थे और कभी भी काम से संबंधित किसी भी बात पर चर्चा नहीं करते थे, लेकिन कभी-कभी अप्रत्यक्ष रूप से उनके भीतर निराशा झलक जाती थी।
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