गढ़ा-कटंगा की रानी दुर्गावती थोड़ा असहज परिस्थितियों में महोबा के परिवार से विवाह कर गोण्डवाना के राजपरिवार में शामिल हुई थीं, पर समय के साथ-साथ उन्होंने न केवल अपने परिवार का हृदय जीता, वह उस राज्य की प्रजा के दिलों में भी अपनी अच्छी छवि बनाने में सफल रहीं।
यद्यपि दुर्गावती का अपने श्वसुर महान् गोण्ड राजा संग्राम शाह के साथ अल्प अवधि का साथ रहा, फिर विवाह के कुछ वर्षों बाद पति दलपत शाह की मृत्यु हो गयी, जिससे उन्हें असहनीय आघात पहुँचा, पर उन्होंने स्वयं को सँभालकर फिर से प्रजा के जन कल्याण को अपना ध्येय बना लिया। उन्होंने अपने अल्पवयस्क पुत्र वीर नारायण की संरक्षिका बनकर न केवल राजपाट सँभाला बल्कि प्रजा को बहुत सहूलियतें भी दीं।
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