अमिताभ श्रीवास्तव ने 1979 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अभिनय में विशेषज्ञता के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की, जिसके बाद ही वह दिल्ली थिएटर से जुड़े और ई. अल्काज़ी, ब. व. कारंत, फ़िट्ज़ बेनेविट्ज़ (जर्मनी), बैरी जॉन, प्रसन्ना, रंजीत कपूर, देवेंद्र राज अंकुर, एम. के. रैना, आमाल अल्लाना जैसे प्रमुख थिएटर निर्देशकों के नाटकों में अभिनय किया। पिछले 45 वर्षों में 75 से अधिक नाटकों के साथ ही कुछ टीवी धारावाहिकों और फीचर फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं। नाट्य लेखन और पटकथा लेखन में उनकी विशेष रुचि रही है; कुछ प्रमुख वर्ल्ड क्लासिक्स का अनुवाद और रूपांतरण करने के अलावा उन्होंने टेलीविज़न के लिए मूल पटकथाएँ लिखी हैं और 'अभय' और 'व्हाइट रेनबो' जैसी फीचर फिल्मों के लिए संवाद भी लिखे हैं। 'कभी न छोड़ें खेत', 'एक और दुर्घटना', 'चुकाएँगे नहीं' आदि आपकी प्रकाशित पुस्तकें हैं। रानावि द्वारा तीन खंडों में प्रकाशित 'भारतीय रंगकोश : संदर्भ हिंदी के आप सहयोगी सम्पादक रहे हैं। अमिताभ श्रीवास्तव को अभिनय के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए वर्ष 2011 के संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
लोगों की अक्सर शिकायत रहती है कि अल्काज़ी साहब, उनके काम, या फिर थिएटर में उनके योगदान पर न तो कोई पुस्तक उपलब्ध है, न ही पत्रिकाओं आदि में कोई विशेष सामग्री। बहुत ही जायज़ शिकायत है ये। अल्काज़ी साहब के बारे में जो थोड़ा-बहुत लिखा भी गया है वो उनके काम की व्यापकता और विस्तार को देखते हुए सचमुच बहुत कम है, लगभग न के बराबर। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, जिसको गढ़ने का, एक नया स्वरूप प्रदान करने का, एक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का संस्थान बनाने का पूरा श्रेय उन्हें ही जाता है, वह संस्था भी किन्ही अपरिहार्य कारणों से अब तक न कोई पुस्तक, न ही कोई ग्रन्थ अल्काज़ी साहब पर प्रकाशित कर पाया है, उसी कमी को पूरा करने की दिशा में यह एक छोटा-सा प्रयास है। मैं यहाँ एक बात स्पष्ट कर देना चाहूँगा, ऐसा नहीं है कि विद्यालय ने इसके बारे में पहले सोचा नहीं या कोशिशें नहीं हुईं। कम से कम ऐसे दो प्रयासों की जानकारी तो मुझे है- प्रो. वामन केन्द्रे के कार्यकाल में अल्काज़ी साहब के नब्बेवें जन्मदिन के अवसर पर एक ऐसी योजना बनी थी जिसमें अल्काज़ी साहब के छात्रों के इण्टरव्यूज़ आदि को शामिल करते हुए एक लम्बी फिल्म बनाई जाए, और उन्हीं साक्षात्कारों तथा अन्य उपलब्ध सामग्री के आधार पर एक पुस्तक भी तैयार की जाए। इस फिल्म के एंकर अथवा प्रस्तुतकर्ता के रूप में काम करने के लिए पंकज कपूर जी से एक सरसरी बात भी हुई थी, और वो इसके लिए राज़ी भी हो गए थे, लेकिन फिर किन्हीं कारणों से इस प्रोजेक्ट पर काम जो रुका तो दोबारा शुरू ही नहीं हो पाया। ऐसे ही लगभग दो वर्ष पूर्व राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की प्रकाशन समिति की एक बैठक में रंगमंच के कुछ विशिष्ट व्यक्तित्वों पर मोनोग्राफ्स प्रकाशित करने का प्रस्ताव पारित हुआ। सूची में सबसे पहला नाम श्री इब्राहिम अल्काज़ी का ही था। इस सम्बन्ध में आमाल अल्लाना जी के साथ एक मुलाकात भी हुई। लेकिन किसी उपयुक्त लेखक या संपादक का नाम तय न हो पाने की वजह से वह मोनोग्राफ अभी भी प्रतीक्षारत् है। इसी बीच पिछले वर्ष 4 अगस्त को अल्काज़ी साहब के निधन के बाद रानावि के वर्तमान प्रभारी निदेशक, प्रो. सुरेश शर्मा के साथ एक मीटिंग में निर्णय लिया गया कि जल्द से जल्द एक ऐसी पुस्तक का प्रकाशन किया जाए जिसमें उनके भूतपूर्व छात्रों के अलावा कुछ अन्य व्यक्तियों के संस्मरण / श्रद्धांजलि संकलित हों। ऐसे लेखकों के चुनाव के लिए एक सम्पादक मण्डल का गठन हुआ जिसने लगभग पचास नामों की एक सूची बनाई। इसी प्रयास का परिणाम है प्रस्तुत पुस्तक- इब्राहिम अल्काज़ी: रंगमंच के युगपुरुष।
क्योंकि इस पुस्तक में सम्मिलित ज़्यादातर आलेख अल्काज़ी साहब के देहावसान के बाद लिखे गये हैं, इसलिए संस्मरणात्मक होने के साथ-साथ इनमें श्रद्धांजलि का भी स्वर निहित है। और इसीलिए इन लेखों को किस क्रम में रखा जाए, यह तय कर पाना हमारे लिए थोड़ा कठिन हो गया। शुरू में इन्हें तीन श्रेणियों में बाँटने का विचार था-श्रद्धांजलि, संस्मरण और विवेचनात्मक। किन्तु फिर महसूस किया कि कमोबेश हर आलेख तीनों वर्गीकरण में फिट बैठता है। जब मैंने देवेन्द्र राज अंकुर जी से इस विषय में मशविरा किया (इस पूरी पुस्तक में उनका भरपूर मार्गदर्शन और सहयोग मिला है), तो उन्होंने सलाह दी कि सारे आलेख एक ही खण्ड में अकारादि क्रम से रख दिए जाएँ, ऐसी स्थिति में वो ही सबसे उचित है और तर्कसंगत भी। उनकी सलाह हमें जँची और हमने वही किया।
हालाँकि यह एक संस्मरणात्मक पुस्तक है, पर हमें लगा कि विद्यालय की तरफ से प्रकाशित होने वाली यह पहली पुस्तक है, अतः इसमें खुद अल्काज़ी साहब की लिखी कुछ चीजें भी अवश्य शामिल की जानी चाहिएं, और इसी विचार से हमने सन् 1956 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा आयोजित एक सेमिनार में उनके द्वारा पढ़ा गया पर्चा 'ट्रेनिंग ऑफ दि एक्टर' सन् 1973 में प्रकाशित पुस्तक 'आज के रंग नाटक', जिसका सम्पादन अल्काज़ी साहब के साथ श्री पु. ल. देशपाण्डे और डॉ. सुरेश अवस्थी ने किया था, और जिसमें आधुनिक भारतीय रंगमंच के चार दिग्गज नाटककारों (मोहन राकेश, विजय तेण्डुलकर, बादल सरकार और गिरीश करनाड) के उतने ही महत्वपूर्ण नाटक संकलित हैं, में से अल्काज़ी साहब के दो आलेख (तुगलक' की प्रस्तुति का निर्देशकीय वक्तव्य और पुस्तक की उनकी लिखी गई भूमिका) तथा सन् 1982 में प्रकाशित एनैक्ट पत्रिका के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय पर दो विशेषांकों में से अल्काज़ी साहब के अत्यन्त लम्बे साक्षात्कार 'अल्काज़ी स्पीक्स' के कुछ अंश इस पुस्तक के लिए चुने। पूरा साक्षात्कार न दे पाने का दुख है, लेकिन जो लोग भी रंगमंच और एन एस डी पर अल्काज़ी साहब के विचारों को जानने की इच्छा रखते हैं, उनसे गुज़ारिश करूँगा कि वो इनैक्ट में प्रकाशित उनका ये इण्टरव्यू अवश्य पढ़ें। 'ट्रेनिंग ऑफ दि एक्टर' तथा 'अल्काज़ी स्पीक्स' आलेखों के इस पुस्तक में इस्तेमाल की अनुमति देने के लिए हम आमाल अल्लाना जी के शुक्रगुज़ार हैं।
इब्राहिम अल्काज़ी रंगमंच के युगपुरुष', इस पुस्तक का प्रकाशन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के लिए बड़े गौरव की बात है, क्योंकि यह पहली बार है कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंच की उस दिग्गज शख्सियत के प्रति अपनी श्रद्धा, अपना आभार इस पुस्तक के प्रकाशन द्वारा प्रकट कर रहा है जिन्होंने अपने निर्देशन काल में न सिर्फ इस विद्यालय को ऊंचाई के एक शिखर पर पहुंचाया, बल्कि भारतीय रंगजगत का परिचय नाटक के एक विधिवत आधुनिक प्रशिक्षण कार्यक्रम से करवाया। अल्काज़ी साहब ने विभिन्न शैलियों के नाटकों की शानदार और सारगर्भित प्रस्तुतियां मंचित करके भारतीय रंगमंच को तो समृद्ध किया ही, साथ ही रंगकर्मियों की ऐसी अनेक पीढ़ियों को प्रशिक्षित कर तैयार कर दिया जिन्होंने साठ, सत्तर व अस्सी के दशकों में अपने काम और प्रयासों से भारतीय रंग आंदोलन को आगे बढ़ाया, उसे गति दी। यह संस्मरणात्मक पुस्तक अल्काज़ी श्रृंखला की पहली पुस्तक है। विद्यालय इसके बाद कम से कम दो और पुस्तकों का प्रकाशन करना चाहेगा। एक पुस्तक अल्काज़ी साहब के समग्र रंगकर्म पर केंद्रित होगी और एक अल्काज़ी साहब के रंगमंच संबंधी लेखों और साक्षात्कारों का संकलन होगी। भविष्य में हम इस मौजूदा पुस्तक के अंग्रेज़ी संस्करण का प्रकाशन भी करना चाहेंगे ताकि यह गैर हिंदीभाषी पाठकों तक भी पहुंच सके।
इब्राहिम अल्काज़ी: रंगमंच के युगपुरुष पुस्तक को संभव बनाने वाले व्यक्तियों में से ज़्यादातर अत्यंत वरिष्ठ रंगकर्मी हैं, कई एक तो मेरे गुरु भी रहे हैं, उन सभी का हृदय से आभार। पुस्तक के संपादक श्री अमिताभ श्रीवास्तव और संपादक मंडल के साथियों डॉक्टर अभिलाष पिल्लै और मेरे अग्रज प्रो. देवेंद्र राज अंकुर का भी बहुत बहुत धन्यवाद करना चाहूंगा।
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