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भारत का आर्थिक इतिहास: Economic History of India (1200 A.D. - 1947 A.D.)

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Specifications
Publisher: KHAMA PUBLISHERS, Delhi
Author Chandrashekar Pandey
Language: Hindi
Pages: 380
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 inch
Weight 450 gm
Edition: 2024
ISBN: 9789392619885
HBM879
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Book Description
पुस्तक परिचय

मुस्लिम काल से लेकर औपनिवेशिक कालीन भारत (1200-1947) के आर्थिक इतिहास पर हिन्दी में लिखी गयी यह नवीनतम पुस्तक है। पुस्तक की विषय वस्तु तीन अध्यायों, सल्तनत काल, मुगल काल तथा औपनिवेशिक काल में विभक्त है। भारत के आर्थिक इतिहास पर समग्र रूप से लिखी गयी पुस्तक का अभाव है। पुस्तक के लेखन का उद्देश्य विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं में हिन्दी माध्यम से अध्ययन करने वाले छात्रों को भारत के आर्थिक इतिहास पर पाठ्यक्रमानुसार विषय सामाग्री उपलब्ध कराना है। वस्तुतः यह पुस्तक मुस्लिम काल से ब्रिटिश राज तक की आर्थिक नीतियों और आम जनता पर पड़ने वाले प्रभावों के विभिन्न पहलुओं को सही रूप में समझने में सहायक सिद्ध होगी।

लेखक ने जिन विषयों को विवेचन के लिए चुना है, उनमें मुस्लिम शासकों की भू-राजस्व नीति, कृषि व्यवस्था एवं किसानों की स्थिति, उद्योग धन्धे तथा व्यापार एवं वाणिज्य, मुद्रा नीति और बैंकिंग व्यवस्था शामिल है। इसी प्रकार ब्रिटिश शासन काल की भू-राजस्व व्यवस्था, कृषि की प्रवृत्तियाँ, व्यवसायिक संरचना, सिंचाई, अकाल, ऋणग्रस्तता, कृषि का व्यवसायीकरण, आयात एवं निर्यात, बाह्य व्यापार, ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन का प्रभाव तथा भारत में वि-औद्योगीकरण आदि से सम्बन्धित औपनिवेशिक नीति को सही परिप्रेक्ष में रखने का प्रयास किया गया है।

पुस्तक की भाषा अत्यन्त सरल है जो इतिहास के विद्यार्थियों एवं इतिहास में रूचि रखने वाले पाठकों के लिए ज्ञानवर्धक तथा सामाजिक-आर्थिक विकास को व्यापक आधार पर समझने में अत्यन्त सहायक सिद्ध होगी।

लेखक परिचय

डॉ. चन्द्रशेखर पाण्डेय का जन्म 02.01.1953, जनपद-गोरखपुर, यू.पी. में हुआ। 1974 में गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर से एम.ए, इतिहास (मध्यकालीन एवं आधुनिक) में मास्टर डिग्री प्राप्त कर 1974 में शोध कार्य में संलग्न हुए। 'इण्डियन कौंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च (ICHR) एवं 'यूनिवर्सिटी ग्रान्ट कमीशन' (UGC) नई दिल्ली से शोध कार्य हेतु वित्तीय सहायता तथा शोध अध्येता छात्रवृत्ति प्राप्त की। 1980 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से 'डॉक्टर ऑफ फिलासफी' (Ph.D.) की उपाधि प्राप्त की।

अध्यापन कार्य: विगत 35 वर्षों से स्नातक तथा स्नातकोत्तर कक्षाओं में इतिहास विषय के अध्ययन-अध्यापन कार्य से संलग्न। 2015 में एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, इतिहास विभाग, संत बिनोवा पी.जी. कॉलेज, देवरिया (गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर से सम्बद्ध) के पद से सेवानिवृत्त।

प्रकाशन : पुस्तक- उत्तर भारत का सामाजिक एवं धार्मिक इतिहास (1300-1500 A.D.), सम्पादन- सुकृति। शोध पत्र : इतिहास की प्रकाशित विभिन्न शोध पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में 50 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित।

सदस्यता : 'इण्डियन हिस्ट्री कांग्रेस', 'यू.पी. हिस्ट्री कांग्रेस', 'अखिल भारतीय इतिहास संकलन समिति' तथा 'हिस्ट्री एण्ड हिस्टोरिकल राईटिग्स एसोसिएशन, उत्तर प्रदेश'।

सम्प्रति : सेवानिवृत्त होने के पश्चात् भारतीय इतिहास के विभिन्न पक्षों पर स्वतंत्र लेखन।

भूमिका

इतिहास के लिए कोई विषय बस्तु न तो उसके गौरव के प्रतिकूल है और न ही कोई अध्ययन क्षेत्र उसके ज्ञान क्षेत्र के बाहर होता है। जनता के समस्त कृतित्व एवं उत्पीड़न इतिहास की विषय बस्तु होती है। आर्थिक इतिहास भी अध् ययन का कोई अलग विषय नहीं अपितु इतिहास से सम्बद्ध किसी देश के इतिहास के उस कालखण्ड के राजनीतिक- सामाजिक ढांचे के अन्तर्गत विद्यमान अन्र्तसम्बन्धों द्वारा रचा जाता है जिसमें जनता के आर्थिक क्रियाकलापों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

आर्थिक इतिहास से हमारा तात्पर्य जनता के इतिहास से है। इसके अन्तर्गत हम देश के निवासियों के जीवन और उनकी परिस्थितियों का अध्ययन करते हैं जिसमें उस काल-खण्ड के सामाजिक संरचना में क्रियाशील आर्थिक गतिविधियों का अधिक महत्व होता है। समाज के क्रमिक भौतिक विकास एवं परिवर्तन, सामाजिक वर्गों की संरचना, उसमें विद्यमान संस्थाओं के बीच आपसी घनिष्ठ सम्बन्ध एवं अन्तः क्रियाएं आर्थिक इतिहास का निर्माण करती है जो मानव जीवन से सम्बद्ध होती है। इस प्रकार किसी काल-खण्ड के आर्थिक इतिहास की उपेक्षा करना दीर्घकालीन आर्थिक परिणामों की अनदेखी करना है जो भविष्य को बेहतर बनाने का विकल्प प्रस्तुत करता है।

विगत कई वर्षों से स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं में इतिहास का अध् ययन- अध्यापन कार्य करते हुए यह एहसास हुआ कि इस विषय के विद्यार्थियों के लिए भारत के आर्थिक इतिहास के अध्ययन हेतु किसी एक समग्र पुस्तक का नितान्त अभाव है, जबकि देश के अधिकांश विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों मेंइस विषय को अध्ययन के लिए सम्मिलित कर लिया गया है। भारत के आर्थिक इतिहास पर अलग-अलग काल खण्डों से सम्बन्धित कई पुस्तके उपलब्ध हैं। सर्वप्रथम पाश्चात्य इतिहासकार डब्लू. एच. मोरलैण्ड ने मुस्लिम काल के भारतीय आर्थिक इतिहास पर 'द एग्रेरियन सिस्टम ऑफ मुस्लिम इण्डिया' नामक पुस्तक लिखी। निश्चय ही मोरलैण्ड को मध्ययुगीन भारत के आर्थिक इतिहास लेखन का जन्मदाता कहा जा सकता है। इसके बाद डॉ. के. एम. अशरफ की 'लाइफ एण्ड कन्डीशन ऑफ पिपुल्स ऑफ हिन्दुस्तान', डॉ. आर. के. मुखर्जी की 'इकोनामिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया (1200-1600)' तथा प्रो. इरफान हबीब की 'एग्रेरियन सिस्टम ऑफ मुगल इण्डिया' प्रकाशित हुई। प्रो. अशरफ ने सल्तनत काल से लेकर अकबर के काल के आर्थिक इतिहास को तथ्यों के आधार पर रेखांकित किया है। यह पुस्तक इतिहास के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है किन्तु अध्ययन काल सीमित होने के कारण पाठ्यक्रमानुसार आधी अधूरी है। इसी प्रकार प्रो. इरफान हबीब ने अपनी पुस्तक में आर्थिक तथ्यों का विश्लेषण सांख्यिकी आधार पर मार्क्सवादी दृष्टिकोण अपनाते हुए किया है जो अध्येता के अनुरूप सरल और लाभप्रद सिद्ध नहीं हो पाती है। इसके अतिरिक्त ये पुस्तकें केवल इतिहास के एक विशेष कालखण्ड पर लिखी गयी हैं और केवल उस काल के आर्थिक पहलुओं को रेखांकित करती है।

आधुनिक भारत के आर्थिक इतिहास पर भी कई विद्वानों ने पुस्तकें लिखी है। इनमें विलियम डिग्वी, डी. आर. गाडगिल, दादाभाई नौरोजी तथा रमेश चन्द्र दत्त आदि प्रमुख हैं। रमेश चन्द्र दत्त की पुस्तक 'इकोनामिक हिस्ट्री ऑफ माडर्न इण्डिया' अत्यन्त उपयोगी पुस्तक है किन्तु लेखक ने अपने लेखन को केवल औपनिवेशिक काल तक ही सीमित कर लिया है जो स्नातक और स्नातकोत्तर कक्षाओं के पाठ्यक्रम में निर्धारित पूरे काल (1200-1947) के आर्थिक इतिहास को रेखांकित नहीं करती है। स्वतंत्रता प्राप्ती के पश्चात् धर्माकुमार तथा तपन राय चौधरी एवं इरफान हबीब द्वारा अलग-अलग सम्पादित 'द कैम्ब्रिज इकोनामिक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया' प्रकाशित हुई। ये पुस्तके भी आर्थिक इतिहास के अध्ययन के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं किन्तु इनमें पूर्वाग्रह से ग्रस्त इतने विस्तृत तथ्य दिये गये हैं जो इतिहास के विद्यार्थी को भ्रमित करने के अतिरिक्त उनकी आवश्यकता को पूरी नहीं करती हैं। निष्कर्षतः 1200-1947 तक के सम्पूर्ण काल पर भारत के आर्थिक इतिहास को जानने एवं समझने सम्बन्धी पुस्तक उपलब्ध नहीं है जो अध् ययन के लिए पाठ्यक्रम में निर्धारित पूरे कालखण्ड की आर्थिक संस्थाओं पर समग्र प्रकाश डाल सके।

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