प्रदूषण आधुनिक जीवन पद्धति का पयार्य बन गया है। पर्यावरण प्रदूषण का सीधा सम्बन्ध हमारे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ से है जैसे-2 जल, वायु, ध्वनि, भूमि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, नित नई स्वास्थ विषयक समस्यायें पैदा होती जा रही है। इनके उपचार में प्रयुक्त कार्यकारी उपाय चाहे वह औषधि ही क्यों न हो? हमें अनुवांशिक रूप से कमजोर करती जा रही है। इन सभी से मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित हो रही है ओर समाज में एक ऐसा वर्ग पैदा हो गया है जिसका जीवन दवाओं पर आधारित है। उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, डायविटीज, जोड़ों का दर्द, आमाशयिक व्रण और अन्य पेट के रोगों से ग्रस्त रोगी नियमित रूप से दवाओं का सेवन करते है ऐसे समय में सिर्फ प्रकृति का साथ ही हमें इस दुष्चक्र से निकाल सकता है। प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग, मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार है। ईश्वर ने शिशु का जन्म से पूर्व ही माता के स्तनों में दूध उत्पन्न कर उसको जीवित रहने का वरदान दिया है। इसी तरह इस धरती पर रहने वाले सभी प्राणी, ईश्वर (प्रकृति) प्रदत्त प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के समान रूप से अधिकारी है। पेड़-पौधे अन्न जल, खनिज और अन्य सभी प्राकृतिक उपाधानों का उपयोग मनुष्य उद्भव काल से ही करता चला आ रहा है। पृथ्वी, जल, तेज (अग्नि), वायु और आकाश को उसने अपना देवता माना है और इन सभी पर किसी देश या कम्पनी विशेष का अधिकार मानवधिकारों का हनन कहा जायेगा। कृषि उत्पादानों, वन उपज वनस्पतियों, और अन्य प्राकृतिक उपादानों को गैट समझौता व डंकल प्रस्ताव की परिधि से बाहर रखना ही समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
मनुष्य, कर्म पुरुष है और पृथ्वी उसकी कर्मस्थली है। पृथ्वी पर मनुष्य, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी और पेड़-पौधे एक परिवार के सदस्यों के रूप में रहते है और इन सबसे मिलकर बना है पर्यावरण। ऐसे परिवेश की कल्पना भी नहीं की जा सकती, जिसमें एक की भी अनुपस्थिति हो। धरती हमारी माँ है और हम सब उसके बच्चे है। जैसे माता बच्चे का पोषण और लालन-पालन करती है, वैसे ही यह धरती हम सबका भरण पोषण करती है। धरती पर जल, वायु के रूप में मानव-जीवन के लिए आवश्यक तत्व मौजूद है। धरती पर उगने वाली वनस्पतियाँ हमारे भोजन के स्रोत है। धरती के गर्भ में छिपा सोना, चाँदी रत्नादि हमारी समृद्धि का खजाना है जिसे देखकर परस्पर सहयोग और सह-अस्तित्व के सिद्वान्त की महत्ता का बोध होता है। मनुष्य द्वारा छोड़ी गई कार्बनडाईआक्साईड का सदुपयोग पेड़-पौधे अपने भोजन निर्माण के लिए करते है और पेड़-पौधों द्वारा निष्कासित ऑक्सीजन मनुष्य और जीव जन्तुओं के लिए प्राण वायु का कार्य करती है। पर्यावरण प्रदूषण से मनुष्यों का ही स्वास्थ्य प्रभावित नहीं होता है बल्कि इससे जीव-जन्तु और वनस्पतियों का जीवन भी खतरे में पड़ गया है। तेजाबी वर्षा और मृदा-प्रदूषण से भूमि की उर्वरक शक्ति भी प्रभावित हुई है। इससे वनस्पतियाँ भी नष्ट हो रही है। प्रदूषण विषयक जागरूकता होने से आज प्रत्येक व्यक्ति इससे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के लिए चिन्तित है।
जहाँ एक ओर भारतीय जैसे विकासशील देश में स्वास्थ्य सुविधाओं को प्रत्येक व्यक्ति के लिए सुलभ कराना अत्यन्त कठिन कार्य है वहीं पर्यावरण प्रदूषण, नशाखोरी और जनसंख्या की वृद्वि ने चिकित्सा व्यवस्था के सामने एक चुनौती खड़ी कर दी है। हमारी चिकित्सा नीति का अपेक्षित लाभ जनसामान्य तक नहीं पहुंच रहा है। क्योंकि यह व्यवस्था इंग्लैंड और अमेरिका की तर्ज पर बनाई गई है, जबकि हमारे देश के प्रत्येक माता-पिता अभिभावकों, युवक और स्कूली छात्रों को सीधी-साधी चिकित्सा पद्वतियों के बारे में जानकारी देने की आवश्यकता है इसके लिए जन-संचार साधनों की कमी नहीं है। इन संचार माध्यमों से कम प्रयास से अधिक स्वास्थ्य विषयक चेतना पैदा की जा सकती है। इस ढंग से यह उपाय अधिक प्रभावशाली होगें और हम अत्यधिक आर्थिक तंगी, निर्धनता और अपर्याप्त संसाधनों के बावजूद भी सबको मूलभूत स्वास्थ्य सुविधायें उपलब्ध करा सकेंगे।
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