नैतिकता, सत्यनिष्ठा एवं अभिरूचि के विषय आज की तारीख में अत्यधिक प्रासंगिक बनते जा रहे हैं। एक तरफ हम विकास के पथ पर तीव्रता से बढ़ते जा रहे हैं। वहीं नैतिकता, मूल्य व सत्यनिष्ठा पीछे छूटते जा रहे हैं। नैतिक चिंतक कांट का यह मानना था कि "मनुष्य को साधन नहीं साध्य मानना चाहिए।" परंतु, आज मानव विकास की यात्रा में साधन बनता जा रहा है। वह तकनीक, अर्थव्यवस्था व राजव्यवस्था का दास अधिक बनता जा रहा है। आधुनिकता व सभ्यता का चरम जहाँ एक तरफ न्यूयॉर्क मेनहैट्टन जैसे नगरीकरण प्रदान करते हैं. वहीं 9/11 की घटना पुनः सोचने पर मजबूर कर देती है कि मानव में आज वास्तविक खुशहाली को बिना विश्वव्यापी विश्वनागरिकतावाद् के, बिना सहिष्णुता व भाई-चारे पर बल दिए प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
यूनियन कार्बाइड, सत्यम कम्प्यूटर की त्रासदी यह याद दिलाती है कि संगठनों को अपने ग्राहक, कर्मचारी एवं शेयरधारकों के प्रति नैतिक उत्तरदायित्व निभाने की परम आवश्यकता है। महात्मा गाँधी के पंचमहाव्रत विशेषकर अपरिग्रह एवं अस्तेय पर बल देने की अपरिहार्यता है।
समाज में असहिष्णुता, सदाचार का न्यूनीकरण एवं महिलाओं के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति कई नई चुनौतियों की ओर ध्यानाकर्षण करती है।
लोक सेवा में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त कर लोक उत्तरदायित्व की संस्कृति के प्रसार हेतु सत्यनिष्ठा की एकमात्र पगडण्डी पर चलने की आवश्यकता है। नैतिक अभिरूचि के विकास हेतु न सिर्फ सिविल सेवा के प्रशिक्षण में ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है, बल्कि परिवार, समाज और शैक्षणिक संस्थाओं को मानवीय मूल्यों के विकास में इस प्रकार कार्य करने की आवश्यकता है, ताकि सिविल सेवा के भर्ती के चरण में ही नैतिक कसौटियों पर कसे हुए, सत्यनिष्ठ ओज से युक्त तेजस्वी अधिकारी/सिविल सेवक भारतवर्ष को प्राप्त हों।
समय आ गया है जब जाति-पांति, बड़ा-छोटा, धर्मान्तरण इत्यादि संकुचित परिप्रेक्ष्य के सूक्ष्म विषयों से विषयांतर करते हुए, भारत के राष्ट्रांतरण की बात की जाए। विकासशील से विकसित राष्ट्र के रूप में राष्ट्रांतरण की प्रक्रिया बिना नैतिकता के संभव नहीं है। विकसित राष्ट्र बनने के लिए भारत में सिर्फ भौतिक एवं सामाजिक अवसंरचनात्मक विकास पर बल देने की आवश्यकता नहीं है बल्कि नैतिक अवसंरचना के विकास पर भी बल दिए जाने की आवश्यकता है। यह पुस्तक इस दिशा में एक छोटा सा प्रयास है। नैतिकता, सत्यनिष्ठा व अभिरूचि के बारे में जागरूक पाठकों के लिए, सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के लिए विशेषकर हिन्दी माध्यम के विद्यार्थियों की भावनात्मक माँग पर मैनें इस पुस्तक को आपके सामने प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। इस पुस्तक की कल्पना से रचना तक के इस दौर में कई लोगों का योगदान रहा है। इसमें सबसे पहले मेरे प्यारे हिन्दी माध्यम के विद्यार्थी हैं, इनकी आशाओं, आकांक्षाओं और अपेक्षाओं ने सदा मुझे इनके लिए कुछ करने को प्रेरित किया है। इसके अलावा श्री मनोज कुमार सिंह, श्री एम०के० मोहन्ती, श्री निर्मल गहलोत, श्री नीरज सिंह का भी मैं तहे दिल से आभारी हूँ, इनके भावनात्मक सहयोग व अनुराग के बिना लेखन कार्य को सम्पन्न करना संभव नहीं था। मेरे सभी मित्र, सहयोगी व सहकर्मियों को भी बहुत-बहुत आभार। मैंने यथासंभव यह प्रयास किया है कि विद्यार्थियों की माँग को पूरा कर सकूँ। परंतु, सुधार की अपेक्षा व संभावना हमेशा बनी रहती है। अतः हर प्रकार के सुधार के सुझाव का स्वागत है, आप अपना बहुमूल्य समय निकाल कर अपना सुझाव सीधे, मुझे दे सकते हैं। अंत में अपने सभी विद्यार्थियों के मंगल भविष्य हेतु बहुत-बहुत शुभकामना।
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