गौ माता सनातन धर्म की सबसे महत्त्वपूर्ण धरोहर है। भगवान श्री कृष्ण और भगवान श्री राम के अवतार गौ माता से बहुत घनिष्ठ संबंध रखते हैं। इस पुस्तक में गौ माता के अस्तित्व पर जो संकट मंडरा रहा है, उसकी चर्चा की गई है। गाय के महत्त्व के शास्त्रीय प्रमाण, पिछले 1000 वर्षों से चल रहे गौ वध का इतिहास, गौ रक्षा का इतिहास और गौ हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध के कानूनी समाधानों की चर्चा की गई है। इसके अलावा गौ माता से संबंधित कई ऐसे पक्षों का विश्लेषण किया गया है जिससे भारतीयों विशेषकर हिन्दूओं को, गौ संरक्षण और गौ संवर्धन के लिए अग्रसर होना चाहिए। जब सदियों से ऋषि और कृषि की भारतीय संस्कृति गोवंश आधारित थी तो भारत राष्ट्र समृद्ध था ।
मैकाट्रॉनिक्स में इंजीनियरिंग स्नातक, सत्यम रतन की भारतीय ज्ञान प्रणाली (आई. के. एस.) में गहरी रुचि है। उनके पास तीन साल का कार्य अनुभव है। वह हिंदू अध्ययन में एम.ए. और भगवद्गीता अध्ययन में एम.ए. कर रहे हैं। वह गौ रक्षा के कट्टर समर्थक हैं।
गौमाता सदैव अवध्य है। वेदों ने प्रमाणित किया है कि संसार का पहला जीव गाय है। इस धरती पर गाय के होने मात्र से सात्विकता बढ़ती है। गौ आधरित खेती, किसानों की समृद्धि और शुद्ध अनाज के लिए आवश्यक है। पंचगव्य देश के लोगों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। इस पुस्तक में गाय से संबंधित आधुनिक, प्राचीन, पारंपरिक और वास्तविक तथ्य एवं पक्ष पेश करने का यथासंभव प्रयास किया गया है। ज्ञात काल अवधि में गौ माता की स्थिति का निष्पक्ष विश्लेषण करना इस पुस्तक को लिखने का महत्वपूर्ण उद्देश्य है। यजुर्वेद में गाय को अघन्या भी कहा गया है। अघन्या का अर्थ है जो वध करने योग्य नहीं है और जो खुद किसी का वध नहीं करती। यजुर्वेद के अघन्या के उद्घोष के बावजूद भारत में गाय पर आघात कई शताब्दियों से चल रहे हैं। यह बात गौरतलब है कि भारत में गौकशी कब से शुरू हुई। जब तक गौ हत्या होती रहेगी, भारत के विकसित होने की कोई संभावना नहीं है। गौ हत्या पर पूर्ण पाबंदी और गौ संवर्धन ही भारत को विकसित भारत बना सकते हैं । भारत को गौ अर्थव्यवस्था बनना होगा, नहीं तो वर्ष 2047 तक तो क्या, वर्ष 3047 तक भी भारत विकसित नहीं हो सकता। भारत सच्चे मायने में विश्वगुरु तब कहा जाएगा जब हमारे देश में जीव हिंसा और चार अन्य महापाप ना करने के सनातन धर्म के मूल सिद्धांत को पूरे भारतवर्ष में क्रियान्वित किया जाएगा। हर सच्चे सनातनी और गोभक्त का सपना है कि पूरे भारत में गौ माता सुरक्षित, स्वस्थ और सुखी हो एवं पूर्ण भारत में गोहत्या के प्रतिबंध के साथ-साथ देश में एक गाय का भी रक्त गिरना स्वीकार्य ना हो। हमारा लक्ष्य है गौ माता की प्रतिष्ठा उन्हें पुनः प्राप्त करवाना।
यहाँ यह बात स्पष्ट करना जरूरी है कि इस पूरी पुस्तक में गाय या गौ माता से आशय भारतीय देशी गाय से है ना कि विदेशी नस्लों जैसे कि जर्सी से। हालांकि जसीं या देशी गाय जैसे दिखने वाले अन्य जीवों की हिंसा का भी उतना ही विरोध होना चाहिए जितना कि भारतीय गाय का। इस पुस्तक में सभी श्लोक और मंत्र शास्त्रों से हैं और शास्त्र प्रमाण परम प्रमाण होता है। शास्त्रों में भी वेद प्रथम प्रमाण हैं। गीता में कार्य-अकार्य, क्या करना है और क्या नहीं करना है या विधि-निषेध के लिए शास्त्रों को ही प्रमाण कहा गया है। हर सच्चे सनातनी और संवेदनशील भारतीय का लक्ष्य है भारत में गौ माता की प्रतिष्ठा उन्हें पुनः प्राप्त करवाना। 500 वर्षों से भी ज्यादा समय के लंबे इंतज़ार के बाद 22 जनवरी, 2024 को श्री रामलला की उनके अपने भवन में प्राण प्रतिष्ठा हुई। 1000 वर्षों से ज़्यादा समय से भारत के ऊपर गौहत्या का कलंक लगा हुआ है। इसे भारत से पूर्णतः मिटाना है और जड़ से उखाड़ फेंकना है। पिछले 200 वर्षों में रामभक्तों की तरह हजारों गोभक्तों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है। कई शताब्दियों से उनके बलिदानों और अनेक गो भक्तों के अनवरत प्रयासों का ऋण पूरे भारत में विशाल स्तर पर गोसेवा करके और गोहत्या पाबंदी लागू करवाकर ही उतारा जा सकता है। गौ माता कई सदियों से अपने अस्तित्व की खोज में है। संतों द्वारा कही गई गौ माता की अस्मिता अक्षुण्ण रहनी चाहिए और सनातन धर्म शास्त्रों में वर्णित गौ माता के अधिकार उन्हें हर हाल में मिलने चाहिए। यदि मनुष्य की मनोदशा अच्छी हो, तो उसे सहज ही गाय में दिव्यता के दर्शन हो जाते हैं । जब से गौ हत्या शुरू हुई है, तब से लेकर 1947 तक अधिकतर काल में भारत गुलाम रहा, पहले इस्लामिक शासकों द्वारा और फिर अंग्रेजों द्वारा। इसी काल में भारत 'सोने की चिड़िया' और विश्वगुरु का ओहदा गँवा बैठा। अगर देश में गौ हत्या होती रहेगी और हिंदू इसे मूकदर्शक की तरह देखते रहेंगे तो ग़रीबी और बेरोज़गारी जैसी मूलभूत समस्याएँ, भारत से कभी नहीं मिट पाएंगी।
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