भोजन का हमारे शारीरिक तथा मानिसक विकास पर बहुत प्रभाव पड़ता है। सन्तुलित भोजन के सेवन से व्यक्ति स्वस्थ तथा प्रसन्न रहता है। इसे विपरीत कुपोषण का शिकार व्यक्ति अपने आस पास के वातावरण से उदासीन तथा हर समय किसी न किसी रोग का शिकार रहता है। हम प्रतिदिन खाना खाते हैं। प्रतिदिन परिवार के सदस्यों के लिए बनाए जाने वाले आहार के बारे में पहले से सोच विचार कर निर्णय लेना आहार नियोजन कहलाता है। इससे हमें परिवार के सभी सदस्यों की पौष्टिक आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता मिलती है तथा परिवार के सदस्य भी अच्छी खाद्य आदतों को अपनाते हैं।
ग्रहण किया जाने वाला भोजन परिवार के विभिन्न सदस्यों की आवश्यकताओं के अनुरूप होना चाहिए। एक ही परिवार में बच्चे, प्रौढ़, वृद्ध रोगी, स्वस्थ, मोटे, पतले सभी तरह के सदस्य हो सकते हैं। इसका यह अर्थ नहीं कि प्रत्येक सदस्य के लिए अलग-अलग से खाना पकाया जाए। उसी आहार में थोड़े परिवर्तन के साथ उसे सभी की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए दाल का पानी निकाल कर सूप में प्रयुक्त किया जा सकता है। बिना छौक की दाल में थोड़ा सा शुद्ध घी या मक्खन डालकर बच्चों या रोगी व्यक्ति को दिया जा सकता है। मोटे व्यक्ति को बिना घी या मक्खन डाले वही दाल दी जा सकती है। अन्य सदस्य छौंक लगी दाल प्रयोग में ला सकते हैं। अधिक क्रियाशील या पतले सदस्यों के लिए अतिरिक्त मात्रा में घी या मक्खन डाला जा सकता है। बच्चों को मुख्य आहार के मध्य कुछ न कुछ देना चाहिए क्योंकि वे एक समय में अधिक मात्रा में भोजन नहीं खा सकते, दूसरे उनकी क्रियाशीलता भी अधिक होती है। व्यस्कों को बीच-बीच में से इस प्रकार खाने की आवश्यकता नहीं होती।
कोई भी आहार हमारा कितना ही मनपसन्द क्यों न हो हम उसे प्रतिदिन नहीं खा सकते। एक ही पदार्थ बार-बार किसी एक ही विधि से पकाए जाने पर अपनी सरसता खो देता है तथा उसे खाने से मन ऊब जाता है चाहे वह कितना ही पौष्टिक क्यों न हो। इसलिए आहार में नवीनता अवश्य लानी चाहिए ताकि सभी सदस्य उसे चाव से खाएं और गृहिणी की पकाने तथा परोसने में हुई मेहनत सार्थक सिद्ध हो। भोजन में नवीनता खाद्य पदार्थों का विभिन्न भोज्य समूहों में से चुनाव करके, खाद्य पदार्थों के रंग, स्वाद, सुगन्ध तथा खाना पकाने की विधियों में नवीनता लाने से लाई जा सकती है।
विभिन्न आयु के लोगों की पोषक आवश्यकताएँ भिन्न होती हैं। इसलिए सबसे पहले हमें यह देखना चाहिए कि हमारे घर के लोगों की पौष्टिक आवश्यकताएँ क्या हैं? छोटे बच्चों को दिया जाने वाला भोजन किशोरों तथा प्रौढ़ों की अपेक्षा सादा तथा मात्रा में कम होगा। गर्भवती माता तथा दुग्धपान कराने वाली माता का भोजन एक सामान्य स्त्री से भिन्न होगा। इसी प्रकार घर में कोई बीमार हो या लम्बी बीमारी के पश्चात् स्वास्थ्य लाभ कर रहा हो तो उसकी पौष्टिक आवश्यकताएँ घर के अन्य सदस्यों से भिन्न होंगी। इन सब बातों को सोच कर ही आहार नियोजन करना चाहिए।
इस पुस्तक के लेखन में अनेक पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं एवं प्रतिवेदनों से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सहायता ली गई है, अतः उन सभी विद्वान लेखकों, सहायक ग्रन्थों तथा पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादकों और मूल स्रोतों के व्यास्थापकों का मैं हृदय से आभार प्रकट करता हूं और अन्त में, मैं मुरारी लाल एंड संस के प्रकाशक श्री राजीव गर्ग जी का धन्यवाद करता हूं जिन्होंने अल्प समय में इस पुस्तक का प्रकाशन सम्भव कराया।
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