आज देश-विदेशों में योग के विभिन्न आयामों की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। योग मानव जीवन का अभिन्न अंग बनकर प्रचलित हो रहा है। शिक्षा, चिकित्सा एवं योगासन-खेल के रूप में योग नई प्राथमिकता बन चुका है। यह पुस्तक पी.जी. डिप्लोमा, डिग्री के लिए निर्धारित योग पाठ्यक्रम अनुसार लिखी गई है। योग की अन्य परीक्षाओं इत्यादि के लिए भी प्रमाणिक तथ्यों के परिपूर्ण होने के कारण अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी, ऐसा लेखक का पूरा विश्वास है और प्रयास भी किया है।
पुस्तक में मूल तत्त्वों के परिचय, विभिन्न योग ग्रन्थों में योग के स्वरूप, योग की विभिन्न पद्धतियों एवं महान योगियों का संक्षिप्त जीवन परिचय तथा भारतवर्ष के प्रमुख योग संस्थानों आदि का पर्याप्त उल्लेख सम्मिलित करने का पूरा प्रयत्न किया गया है।
आशा है, यह पुस्तक योग विषय के विद्यार्थियों, शिक्षकों एवं परीक्षार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी। किसी प्रकार की त्रुटि सुधार एवं सुझावों को सम्मानजनक रूप से स्वीकार किया जाएगा।
शैक्षणिक योग्यताएँ
डॉ. जगवन्ती देशवाल
पी.एच.डी. (अष्टांग योग)
एम. ए. योग विज्ञान
डी.वाई. एड (कैवल्यधाम लोनावला)
एन. डी. डी. वाई. डिप्लोमा योग प्राकृतिक चिकित्सा)
योगाचार्य महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक
एम. ए. एम. फिल (संस्कृत)
अन्य पुस्तकों के लेखन एवं प्रकाशन
बी.एड. एम. एड
अष्टांग योग
योग साधना
हठयोग के सिद्धांत
योग के आधारभूत तत्त्व
प्राकृतिक चिकित्सा
योग और मानसिक स्वास्थ्य
कार्य वर्ष 1991 से महर्षि दयानन्द वि. वि. में स्थाई योग शिक्षक पद पर सेवारत रहते हुए योग के विभिन्न आयामों के माध्यम से विद्यार्थियों को योग के क्षेत्र में निरन्तर लाभान्वित किया है। इस क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों एवं उपलब्धियों के लिए प्रदेश के माननीय महामहिम राज्यपाल महोदय जी, द्वारा प्रशस्ति पत्र द्वारा राज्य स्तरीय समारोह में सम्मानित किया गया। महर्षि दयानन्द वि. वि. में योग का शैक्षणिक कार्यक्रम शुरू करवाने के लिए प्रथम सर्वाधिक प्रयास, योगदान रहा। वर्ष 2014 से निरन्तर पी. जी. डिप्लोमा, एम. ए. योग के विद्यार्थियों को शिक्षण, प्रशिक्षण के कार्य में सेवारत हूँ। हमारे वि. वि. के अनेक विद्यार्थियों ने राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर योग में उत्कृष्ट उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं और देश-विदेश में योग का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।
मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ माने गए हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इन चारों पुरुषांथों को प्राप्त करने के लिए मनुष्य को जीवन भर संघर्ष करना पड़ता है। प्रथम तीन पुरुषार्थों के लिए तो वह संघर्षरत रहता है, परन्तु चतुर्थ पुरुषार्थ को अनावश्यक समझ कर छोड़ देता है। मनुष्य जीवन की अवधि निश्चित है, उसके बाद इन कर्मों को, पुरुषार्थों व धन-दौलत को छोड़ कर अनायास ही उसे चतुर्थ पुरुषार्थ (मोक्ष) के लिए जाना पड़ता है।
योग मनुष्य को जीवन जीने की कला सिखाता है। आज के इस भौतिकता के दौर में हम अपनी योगमय संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं, जिसके कारण हम शरीर व मन दोनों ही से रोगी होते जा रहे हैं। अतः इन शारीरिक व्याधियों व मानसिक विकृतियों से बचने के लिए योग की शरण में आना चाहिए।
सरल भाषा में लिखी गई योग की पुस्तक ""योग के आधारभूत तत्त्व' हमारे लिए सहारा बन सकती है। प्रस्तुत पुस्तक 'के प्रथम अध्याय में योग परिचय, योग का इतिहास, आधुनिक समय में योग का महत्त्व, योगाभ्यास हेतु उपयुक्त स्थान, समय, वेशभूषा, खानपान एवं योग की साधना में सहायक व बाधक तत्त्वों का विस्तार से वर्णन किया गया है। द्वितीय अध्याय में वेदों में योग का स्वरूप, उपनिषदों के अनुसार योग, भगवद्गीता, सांख्य दर्शन एवं आयुर्वेद में योग के स्वरूपं पर प्रकाश डाला गया है।
तृतीय एवं चतुर्थ अध्याय में योग के विभिन्न प्रकारों का वर्णन हुआ है, इसके साथ-साथ योग के प्रमुख प्राचीन एवं अर्वाचीन ऋषियों का जीवन परिचय दिया गया है।
पंचम अध्याय में भारतवर्ष की प्रमुख योग संस्थाओं का उल्लेख किया गया है, जो योग विषय की आधुनिक विधि से शिक्षा प्रदान करते हुए अनुसंधान हेतु भी प्रयासरत हैं। इन संस्थाओं में भारत वर्ष व दूसरे देशों से भी छात्र शिक्षा ग्रहण करने आते हैं।
उपरोक्त पुस्तक सरल भाषा में सभी योग जिज्ञासुओं के लिए उपलब्ध है।
आपके द्वारा दिए गए अमूल्य सुझाव व त्रुटियों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए, आपके आभारी होंगे।
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