प्रशांत सागर का जन्म 1992 में क्रिसमस की रात बिहार के एक छोटे गाँव रसलपुर में हुआ। पिता बिहार राजस्व सेवा में थे, अतः बचपन बिहार झारखंड के अलग-अलग शहरों में बीता। फिर आधे भारत की तरह बेंगलुरु से कुछ पाँच घंटे दूर एक शहर दावणगेरे के एक छोटे कॉलेज बीआईइटी (BIET) से इंजीनियरिंग की और बीते भारत की तर्ज पर दिल्ली यूनिवर्सिटी के कैंपस लॉ सेंटर (CLC) से वकालत।
पिता के रास्ते पर चलते हुए यूपीएससी-(UPSC) की परीक्षा पास की और 2019 से भारतीय राजस्व सेवा (IRS) में कार्यरत हैं। प्रशांत की यह पहली किताब है, इसके अलावा उनकी दूसरी किताब 'गुप्त प्रेमपत्र' भी प्रकाशित हो चुकी है।
बहुत शुक्रिया मेरे माता-पिता का, जिन्होंने मुझे कभी रोका नहीं आसमान के रंग गिनने से। और शुक्रिया मेरी दीदी और भैया का, जिन्होंने बताया कि आसमान कौन सी गली के आख़िर में रहता है। शुक्रिया मेरे दोस्तों का, जिन्होंने मेरी कलम की इंक कभी न खाली होने दी। उन सबका, जिन्होंने अपने जीवन के अलग-अलग काल में मुझे प्रेम के क़ाबिल समझा। इतना शुक्रिया कभी नहीं लिखा जा सकता, ब्रह्मांड की सारी कालिख जोड़ कर भी नहीं, जितना मेरे हृदय में इन सबके लिए है।
'फफूंद' में वो सारी कविताएँ हैं, जो अलग-अलग काल में लिखी गई-अलग-अलग लोगों के लिए ज़रूर, पर उन पर हक़ हर किसी का है।
मेरा हमेशा से मानना रहा है कि कविताओं पर पहला हक़ उसी का है, जिसे उस कविता की उस वक़्त ज़रूरत है। कविता कभी कवि की नहीं होती, वो उसकी होती है, जो उसे अपना मान लेता है।
प्रेमी के लिए जब कोई कविता चोरी करता है, तो वो उसी वक़्त उस युगल की कविता हो जाती है। इस किताब पर मेरा नाम जरूर है, पर इस पर मेरा मालिकाना हक्क़ कभी नहीं रहेगा, बस क्षणों को छोड़कर, जिनमें मुझे इसमें से किसी कविता की ज़रूरत आन पड़ेगी।
ये किताब हर उस इंसान को मिले और उसकी हो जाए, जिसे इन कविताओं की ज़रूरत हो।
मैं आज तक प्रशांत सागर से मिला नहीं हूँ, मगर जब भी मैंने उनका लेखन पढ़ा, मुझे लगा कि यह मेरे किसी अपने ने लिखा है। इनकी लिखी कविताओं में एक रोशनी है, जिसका प्रकाश हमेशा उन्हें पढ़ने वालों के मन को अंधेरे से दूर रखता है। कितना सुकून भरा होता है इस क्षणिक दुनिया में, एक कविता में अपना घर ढूंढ लेना। यह बिलकुल असंभव सा लगता है, मगर प्रशांत जी ने ही लिखा है- ""कहीं नहीं तो कविताओं में ही सही, कुछ असंभव पर घटता रहे।""
फफूंद, एक ऐसा ही गुलदस्ता है जिसे कविताओं की फसल से बनाया गया है। इस किताब में आपको प्रेम में डाल देने वाले सरसों के पीले फूल भी मिलेंगे और आपकी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखने के लिए बाजरे के बीज भी। पेट की भूख को मिटाने से कई ज्यादा कठिन है मन के कौतूहल का जवाब तलाशना। और 'फफूंद' कविताओं का एक ऐसा गुच्छा है, जिसकी महक आपके मन को इंसान होने के अहसास की तरफ़ खींचकर ले जाएगी। प्रशांत सागर जी ने एक ईमानदार किसान की तरह इस किताब की हर कविता को प्रेम, धैर्य और विद्रोह से सींचा है।
प्रस्तुत है ""फफूंद"" - एक कविता संग्रह, जो बिल्कुल अपने नाम जैसा ही है। आप जैसे ही इस किताब को पढ़ना शुरू करेंगे, यह बहुत धीरे और बहुत गहरे तरीक़े से अपनी कविताओं से आपको पूरी तरह ढक लेगी।
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