गाँधीजी ने कवि के लिए कहा है, "कवि किसी के निर्देश इंगित पर नहीं, बल्कि अपनी प्रेरणा पर लिखता है इसलिए वह प्रशंसा पाने के लिए नहीं लिखता। उसका आनन्द और उसका पुरुस्कार तो उसकी रचना में ही निहित होती है।"
यह बात मेरी इस पुस्तक पर शत-प्रतिशत लागू होती हैं। आज के वातावरण में गाँधीजी के कार्य, विचार और जीवन पर लिखते हुए मुझे आनन्द की प्राप्ति हुई और उससे ज्यादा खुशी पढ़ते हुए हुई।
गाँधीजी पर लिखना देश का कार्य है। उन्होंने देश को आजाद करवाया। प्राचीन मूल्यों को पुनः स्थापित किया। गाँधीजी ने ही राष्ट्रवाद की परिभाषा दी और करोड़ों लोग उस मार्ग पर चले।
मन में यह भी भाव रहा कि वर्तमान पीढ़ी के पास वक्त नहीं हैं। उसका अंगूठा चलता हैं, कुछ पढ़ते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। उनके पास सोशल मीडिया हैं जहाँ पढ़ते हैं, बहस करते हैं, फॉरवर्ड करते हैं ऐसे में मूल पठनीय सामग्री कही पीछे छूट गई हैं।
नई पीढ़ी में कुछ फीसदी स्स्रोत तक जाते भी हैं, कुछ विवेक का इस्तेमाल कर कम पढ़े में से भी सच तक पहुँच जाते हैं। पर ये 'कुछ' हैं। ऐसे में गाँधीजी के बारे में कुछ शब्दों में, सीमित शब्दों में उनकी बात कहने का प्रयास किया हैं। इस कहीं में बहुत कुछ अनकहा हैं और अपना कहा भी कम हैं उनका कहा ज्यादा हैं।
मेरी पहली पुस्तक गाँधीजी ने सम्भव किया कि अगली कड़ी के रूप में ही इसे देखा जाना चाहिए। पहली पुस्तक में हल्की- फूल्की जानकारी थी। इस पुस्तक में कुछ गम्भीर बातें, साहित्यिक पुट के साथ कहने का प्रयास किया हैं. मेरी प्रश्नोतर विधि से लिखी गई पुस्तक "गाँधी: 200 प्रश्नोत्तर में व्यक्तित्व और कृतित्व" विद्यार्थियों में बहुत पसंद की गई जिसका पहला संस्करण खत्म भी हो गया। अगले वर्ष महात्मा गाँधी पर एक और पुस्तक "एक और गाँधी" प्रेषित करने की योजना हैं।
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