गांधीजी ने आजादी के बाद सच्चे 'स्वराज' के रूप में 'आत्मनिर्भर भारत' के निर्माण का स्वप्न देखा था और इसके लिए देश में भारतीय शिक्षा पद्धति को अपनाने पर जोर दिया था। उन्होने अपने शिक्षा विषयक विचारों को 'बुनियादी शिक्षा' के नाम से प्रस्तुत किया। बच्चों के संपूर्ण विकास को केन्द्र में रखकर उन्हे कार्य कुशल बनाना इसका मुख्य उद्देश्य था। आज आधुनिक विज्ञान और तकनीक के युग में भी उनके बताए शैक्षिक आदर्श और प्रयोग सर्वथा प्रासंगिक हैं।
'वर्तमान परिप्रेक्ष्य में गांधीजी के शिक्षा दर्शन की प्रासंगिकता' शीर्षक से किये गये शोध कार्य को पुस्तक के रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है। आशा है यह पुस्तक गांधी जीवन और उनके शैक्षिक दर्शन से जुडें विभिन्न पहलुओं पर सभी के ज्ञानवर्द्धन में सहायक होगी।
यह पुस्तक उक्त फैलोशिप के तहत प्रस्तुत किए गए शोधप्रबंध का रूपांतरण है। 'गांधीजी का शिक्षा दर्शन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता' में लेखक डॉ. अनिल प्रकाश श्रीवास्तव ने अत्यंत ही विद्वत्तापूर्ण तरीके से गांधीजी के शैक्षिक विचारों और दर्शन की व्याख्या समुचित तरीके से लेखबद्ध की है जिससे कि पाठक वर्तमान समय में भी उनकी प्रासंगिकता को समझकर आज के समयानुरूप आत्मसात कर सकें। अपने इस बौद्धिक परिश्रम के लिए वे निश्चित ही बधाई के पात्र हैं।
माननीय मुख्यमंत्री महोदय का आभारी हूँ कि इस पुस्तक हेतु उन्होंने शुभकामना संदेश प्रेषित किया। माननीय संस्कृति मंत्री महोदया को भी इस पुस्तक हेतु अपने शुभकामना संदेश प्रेषित करने के लिए उनका आभार व्यक्त करता हूँ। संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव महोदय के प्रधान संपादकीय लेख हेतु भी उनका आभार व्यक्त करता हूँ। इस संकलन को प्रकाशित करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए संपादक महोदय को भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ।
अपने शिक्षा दर्शन और शिक्षण पद्धति द्वारा वे विद्यार्थियों को अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता और अपने देश की सच्ची प्रतिभा का प्रतिनिधि बनाना चाहते थे।
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