वर्तमान युग में मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, गुर्दों की अक्षमता और मस्तिष्काघात एवं लकवा जैसी बीमारियाँ केवल विकसित अथवा पाश्चात्य देशों की ही समस्या नहीं है, बल्कि भारत जैसे विकासशील राष्ट्र की भी बड़ी समस्याएँ बन गई हैं। मधुमेह और हृदय रोगों के मामले में तो भारत भी विश्व के अग्रणी देशों में शामिल हो चुका है। अब तो देश मधुमेह से भी बुरी तरह प्रभावित है।
सन् 2008 में दुनिया में रोगों से हुई 5 करोड़ 70 लाख मौतों में से 3 करोड़ 6 लाख अर्थात् 63 प्रतिशत मृत्यु केवल इस तरह के असंक्रामक रोगों से हुई थी। भारत में विभिन्न रोगों से हुई कुल मृत्युओं में से 53 प्रतिशत केवल हृदय रोगों, मधुमेह, गुर्दों की अक्षमता जैसे असंक्रामक रोगों द्वारा हुई थी। यहाँ हृदय रोगियों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। सन् 2010 में 4 करोड़ 70 लाख हृदय रोगी थे। इसके अलावा लगभग 8 लाख रोगी मस्तिष्काघात (Stroke) से मृत्यु को प्राप्त हुए थे।
इसी प्रकार भारत में सन् 2004 में मधुमेह (Diabetes Mallitus) के 3 करोड़ 77 लाख रोगी थे। इनमें से 2 करोड़ 14 लाख रोगी शहरी क्षेत्रों में थे तथा 1 करोड़ 63 लाख रोगी ग्रामीण अंचलों के थे। तो ये आँकड़े इन असंक्रामक रोगों की बड़ी संख्या को दर्शाते हैं जो किसी भी बड़ी संक्रामक महामारी से अधिक हैं। यह स्थिति हमारे भारत जैसे विकासशील राष्ट्र के लिए एक चेतावनी भी है। वर्तमान में केवल मधुमेह के रोगियों की संख्या 8 करोड़ से ऊपर पहुँच गई है।
सच यह है कि जैसे-जैसे देश विकसित हो रहा है; उक्त असंक्रामक बीमारियों की संख्या भी बढ़ी है। लेकिन पाठकगण कह सकते हैं कि जनसंख्या बढ़ रही है तो इन रोगियों की संख्या भी बढ़ेगी। लेकिन मेरा कहना यह है कि जनसंख्या जिस अनुपात से बढ़ी है उस अनुपात से कहीं बहुत अधिक संख्या में उक्त रोगों से ग्रसित व्यक्तियों की संख्या बढ़ी है और अब तो लगता हैं ये रोग नियंत्रण के बाहर होते जा रहे हैं। अतएव हमें स्वाइन फ्लू और कोरोना जैसे संक्रामक रोग के साथ ही इन रोगों से भी सावधान रहने की आवश्यकता है और हमारी स्वास्थ्य सेवाओं (राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन) को भी इन बीमारियों को रोकने एवं इलाज के समुचित प्रबंध करने होंगे। बढ़ता प्रदूषण, खाद्यों में मिलावट एवं मानसिक तनाव और अनियमित दिनचर्या भी इन रोगों के कारण हैं।
अब विचारणीय तथ्य यह है कि मधुमेह, हृदय और गुर्दों तथा मस्तिष्क के रोग द्रुत गति से क्यों फैल रहे हैं और बढ़ रहे हैं। जबकि ये असंक्रामक रोग हैं अर्थात् ये कोई विषाणु द्वारा नहीं फैलते हैं। यदि एक वाक्य में इसका उत्तर हो सकता है तो यह है कि हम प्रकृति और प्राकृतिक रहन-सहन और सही खान-पान से दूर हो गए हैं। हमनें आधुनिक और प्रतिस्पर्धात्मक दौड़ में शामिल होकर कई कृत्रिम आदतों और कृत्रिम जीवन शैली को अपना लिया है और हमारी आबादी का बड़ा हिस्सा तनाव के साथ प्रदूषित हवा, पानी, भोजन को ग्रहण कर रहा है। इस आपाधापी वाले युग में उसे न संतुलित भोजन का ध्यान है, न आराम का ध्यान है और न व्यायाम का और फिर विडम्बना यह है कि ऐसी जीवन शैली के साथ तम्बाकू या बीड़ी, सिगरेट तथा शराब और ड्रग्स जैसे नशे भी जुड़ गए, जो व्यक्ति को शीघ्र इन बीमारियों के नजदीक पहुँचाकर अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं। तो हम जब तक इन कारणों की ओर ध्यान देकर सावधानियाँ नहीं बरतेंगे तब तक ये रोग कम नहीं होंगे।
इस आधुनिक परिवेश में मोटापा भी तेजी से बढ़ रहा है। चिकित्सा वैज्ञानिकों ने मोटापे को भी बड़ी बीमारी माना है। मोटे लोगों को उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हृदय रोग अक्सर हो जाते हैं। इस प्रकार मोटापा इन रोगों को एक तरह से आमंत्रण देता है। साथ ही मोटापा व्यक्ति की सक्रियता भी कम करता है। विश्व में 20 करोड़ आदमी और 30 करोड़ महिलाएँ मोटापे की श्रेणी में आते हैं। इसी तरह 2012 में 7 करोड़ बच्चों का वजन सामान्य से बहुत अधिक था। भारत में 1.3 प्रतिशत आदमी और 2.5 प्रतिशत महिलाएँ मोटी हैं। मैंने अपनी पुस्तक में इसलिए मोटापे और उस पर नियंत्रण के उपायों को भी जोड़ा है। जो निश्चय ही पाठकों के लिए अत्यन्त उपयोगी होगा।
मैंने पुस्तक को तीन भागों में बाँटा है। प्रथम भाग में अक्सर हो जाने वाली असंक्रामक बीमारियाँ जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदयरोग, मस्तिष्काघात और पक्षाघात एवं गुर्दो की अक्षमता को लिया है तथा द्वितीय भाग में इन रोगों की जड़ मोटापा एवं उनके कारणों को लेते हुए कोलेस्टेरॉल (लिपिड्स) इत्यादि के बारे में विस्तार से बतलाया है। साथ ही बीमारियों में रोगियों का भोजन कैसा होना चाहिए, गंभीर बीमारियों के लक्षण क्या हैं तथा अधिक भोजन विटामिन्स के क्या खतरे हैं इत्यादि के बारे में भी बतलाया है। इसके अलावा खेलकर और व्यायाम तथा योग द्वारा भी इन खतरनाक रोगों और मोटापे से बचा जा सकता है, इन बातों को भी पुस्तक में उल्लेखित किया है। योग पर भी 21 पृष्ठों का तृतीय भाग है। मैं तो कहूंगा योग ही आधुनिक रोगों का सही जवाब है।
पैथोलॉजी की जाँचों की रोगों की पहचान में अहम भूमिका है, अतएव मैंने लैब का चुनाव कैसे करें इसके बारे में चर्चा की है। भाषा आम लोगों की समझ में आने वाली है क्योंकि यह पुस्तक अंग्रेजी पुस्तक का अनुवाद ना होकर मूलतः हिन्दी में ही एक अनुभवी और पाश्चात्य चिकित्सा में स्नातकोत्तर, डिग्रीधारी चिकित्सक द्वारा लिखी गई है।
मुझे विश्वास है कि मेरी स्वास्थ्य और चिकित्सा संबंधी अन्य पुस्तकों की तरह यह पुस्तक भी लोकप्रिय और जनोपयोगी साबित होगी। मुझे अपेक्षा रहेगी आपके अमूल्य सुझावों की। पुस्तक की तैयारी में वालेन्ट्री हेल्थ अर्गनाईजेशन, सुरभि स्टुडियो तथा अग्रसेन ऑफसेट प्रेस दमोह का आभारी हूँ एवं कम्प्यूटर टाइपिंग में सहयोग के लिए श्री लोकेश पटेल एवं कु. निधि अहिरवाल को भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। साथ ही इस पुस्तक के तृतीय भाग में वर्णित योगासन के चित्रों के लिए मैं योग विशेषज्ञों का भी आभारी हूँ। मुझे अब अपेक्षा रहेगी आप सबके अमूल्य सुझावों की। योग के संबंध में अनुभवी योग गुरु श्री कृष्णकांत परोहा जी की सलाह और सहयोग के लिये भी मैं उनका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। योग क्रियाएँ शुरू में पाठकगण अनुभवी गुरु की देखरेख में हीं करें तथा यह भी मेरी सलाह है कि पुस्तक में वर्णित रोगों के लिये डॉक्टर की सलाह से दवा लें।
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