| Specifications |
| Publisher: Shri Haridas Shastri Goseva Sansthan | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 28 (Throughout Color Illustrations) | |
| Cover: PAPERBACK | |
| 8.5x5.5 inch | |
| Weight 64 gm | |
| Edition: 2008 | |
| HAF347 |
| Delivery and Return Policies |
| Ships in 1-3 days | |
| Returns and Exchanges accepted within 7 days | |
| Free Delivery |
प्रत्येक प्राणी आनन्द प्राप्ति की खोज में लगा हुआ है। इस दुःख से परिपूर्ण संसार में शाश्वत आनन्द प्राप्ति का केवल एक ही उपाय है। वह उपाय है-मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप को पाँचभौतिक शरीर से भिन्न आत्मा के रूप में पहचान करके सृष्टिकर्ता की अनुकूलता पूर्वक सेवा करे।
भगवान श्रीकृष्ण समस्त ब्रह्माण्डों के सृष्टिकर्ता व पालनकर्ता हैं। प्रत्येक आत्मा उन्हीं का नित्य अंश है। यह आत्मा उन श्रीकृष्ण के प्रति उन्मुख होकर के शाश्वत आनन्द की प्राप्ति कर सकता है। इस भगदुन्मुखता को छोड़ करके आनन्द प्राप्ति का कोई अन्य उपाय नहीं है।
भगदुन्मुखता, उत्तमा भक्ति अथवा सेवा का अभिप्राय यह है कि केवल सेव्य की प्रसन्नता को लक्ष्य करके समस्त कार्य किये जाये। इसलिए मानव के लिए आवश्यक है कि वह ईश्वर की सेवा एकमात्र उनकी व उनसे सम्बन्धित समस्त वस्तुओं (गुरु, गो, जीवमात्र आदि) के प्रसन्नता व सुख के लिए कार्य करे न कि अपने स्वार्थ से।
भगवान श्रीकृष्ण गो को अतिशय प्रेम करते हैं। सम्पूर्ण वैदिक वाङ्मय गो के प्रति उनके समर्पण व सेवा के वर्णन से भरा हुआ है। उनका एकमात्र निवास स्थान गोकुल है जोकि गायों की वास स्थली है। कृष्ण के समस्त परिकर, गोप-गोपी, गोवर्द्धन पर्वतादि सभी गोसेवा में संलग्न रहते हैं। वे गायों की रक्षा व पोषण करने तथा आनन्दित करने के कारण गोविन्द और गोपाल के नाम से भी जाने जाते हैं।
गो ईश्वर की विशुद्ध सात्विक, निरपराधी और उपकारी रचना है। यह सर्वदा दूसरों का कल्याण करती है तथा किसी को भी किसी प्रकार से हानि नहीं पहुँचाती है। ईश्वर ने इनकी रचना सबके कल्याण के लिए किया है। गो के अन्दर वे समस्त गुण पाये जाते हैं ।
Send as free online greeting card
Visual Search