लेखक परिचय
सुशील भारती जन्म: 6 जनवरी, 1965 (दरभंगा, बिहार)। शिक्षा: एम.ए. (दर्शनशास्त्र)। करीब चार दशकों से पत्रकारिता एवं लेखन में सक्रिय । दैनिक जागरण, दैनिक जनशक्ति, दैनिक आज, दैनिक पाटलीपुत्र टाइम्स, साप्ताहिक दिनमान व साप्ताहिक अवकाश से सम्बद्धता । सम्पादक, 'जनता प्रहरी' (हिन्दी एवं उर्दू पाक्षिक); स्थानीय सम्पादक 'दैनिक आज' घनवाद संस्करण; दैनिक 'प्रभात खबर' धनबाद; दैनिक 'बिहार ऑब्जर्वर', टीवी चैनल 'न्यूज 11' के ग्रुप एडिटर, राँची; टीवी चैनल '7 डेज-न्यूज 24', राँची के सम्पादक; दैनिक 'प्रभात खबर', देवघर संस्करण। प्रकाशित पुस्तकें : पत्रकारिता दशा और दिशा, पत्रकारिता और प्रेस अधिनियम, कौत्स की गुरुदक्षिणा और ग्रामीण पत्रकारिता: चुनौतियां और सम्भावनाएं। सम्मान : अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन द्वारा 'मिथिला रत्न सम्मान', भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा 'महात्मा ज्योतिबा फुले फेलोशिप सम्मान' (2007), 'डॉ. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान' (2009), विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ (इशीपुर) द्वारा 'पत्रकार शिरोमणि पुरस्कार-2018'। सम्प्रति : सीनियर स्थानीय सम्पादक दैनिक 'प्रभात खबर', रूरल-झारखण्ड (राँची)।
पुस्तक परिचय
ग्रामीण पत्रकारिता चुनौतियां और संभावनाएं भारत को गाँवों का देश कहा जाता है। आबादी का 70 प्रतिशत हिस्सा अभी भी गाँवों में रहता है। उसकी आजीविका का साधन कृषि और उस पर आधारित उद्योग हैं। लेकिन विडम्बना यह है कि आज़ादी के सात दशक बीत जाने पर भी यह राजनीतिक मुद्दा ही बना रह गया। प्रशासनिक स्तर पर विकास के केन्द्र में कभी ग्रामीण भारत नहीं आ पाया। विकास का प्रवाह शहरोन्मुखी ही रहा। 70 प्रतिशत आबादी की उपेक्षा कर भारत को समृद्ध बनाने का दिवास्वप्न देखा जाता रहा। देश में कहीं भी गाँव को शहर नहीं बनाया गया बल्कि शहर की गाँवों में घुसपैठ कराई जाती रही। बात सिर्फ बुनियादी सुविधाओं की नहीं, संस्कृति की है। हिन्दी और भाषाई पत्रकारिता भी काफ़ी हद तक शहरोन्मुखी रही है। लेकिन हाल के वर्षों में भारत के ग्रामीण समाज में एक तरफ नवसाक्षर वर्ग उभरा है तो दूसरी तरफ बेहतर क्रयशक्ति से लैस नव उपभोक्ता वर्ग भी सामने आया है। मीडिया इस नये पाठक वर्ग तक पहुँचने को लालायित है और कार्पोरेट कम्पनियाँ नये उपभोक्ता वर्ग तक अपनी पहुँच बनाने को ग्रामीण हाट तक पहुँचने को बेकरार हैं। इसके कारण ग्रामीण पत्रकारिता को एक नयी ऊर्जा प्राप्त हुई है। ग्रामीण पत्रकारों को मीडिया संस्थानों में स्पेस मिलने लगा है। वरिष्ठ पत्रकार सुशील भारती ने ग्रामीण भारत को करीब से देखा है और उनके अन्दर हो रहे परिवर्तनों को समझने की निरन्तर चेष्टा की है। उनका मानना है कि आनेवाला समय ग्रामीण पत्रकारिता का है। वह समय दूर नहीं जब गाँवों-क़स्बों से समाचार पत्रों के संस्करण प्रकाशित होंगे और ग्रामीण पत्रकारों के लिए पत्रकारिता आजीविका का भरोसेमन्द साधन बन जायेगी। इस पुस्तक में उन्होंने ग्रामीण भारत में होनेवाले बदलावों की चर्चा के साथ पत्रकारों को उनकी भावी भूमिका के लिए तैयार होने के गुर भी बताये हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय और इसमें रुचि रखने वाले लोगों के लिए यह एक उपयोगी पुस्तक हो सकती है। वैसे भी ग्रामीण पत्रकारिता पर केन्द्रित पुस्तक का अभी अभाव है। इस लिहाज से इस पुस्तक को अवश्य पढ़ा जाना चाहिए।
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