किसी भी राष्ट्र के दीर्घजीवी होने का एकमात्र सूत्र यह है कि उसके निवासी उस राष्ट्र के इतिहास की दो घटनाओं का हमेशा अध्ययन करें। एक वह विवरण जब वह देश परतंत्र हुआ और दूसरा वह जिन प्रयत्नों से वह स्वतंत्र हुआ। यही दो बातें भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरणा देती हैं। पीढ़ियाँ गलतियों से सीखती हैं, सतर्क होती हैं और उपलब्धियों से उत्साहित होती हैं। भारत के भविष्य और भावी पीढ़ियों की जागरूकता के लिए भी यह जरूरी है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के विवरणों की समीक्षाएँ हों, विस्तृत अध्ययन हो, घटनाओं के विश्लेषण हों और उन्हें संग्रह कर संजोये रखने के प्रयास हों।
दुनिया के हर देश, हर जाति को कभी न कभी परतंत्रता झेलनी पड़ी है और अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना पड़ा है, लेकिन भारतीय परतंत्रता सबसे कठोर और क्रूर रही है। गुलामी का सबसे सघन अँधेरा भारत में रहा। स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी ऐसी अनेक घटनाएँ हैं, जो हमारे मानस को झकझोर देती हैं। इनमें से अनेक घटनाएँ तो अब तक सामने भी नहीं आ सकी हैं। संभवतः इसका कारण यह है कि स्वतंत्रता के बाद क्षेत्रीय एवं स्थानीय स्तर पर हुए स्वतंत्रता संघर्ष अथवा उसकी पीठिका के विषय में व्यापक अध्ययन और अन्वेषण का समुचित प्रयास नहीं किया गया। आवश्यकता इस बात की है कि स्वातंत्र्य समर के तथ्यों-कथ्यों, स्मृतियों और श्रुतियों को लोक-मानस से जोड़कर व्यवहारिक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करके यथार्थ को प्रकाश में लाया जाए।
गुना-अशोकनगर जिले के संदर्भ में इन जिलों की एक विशेषता है कि यहाँ के लोग सहिष्णु, विचारशील होने के साथ स्वाभिमान और समर्पण के भाव से जीते हैं। सन् 1857 के कालखण्ड में यह परिक्षेत्र ग्वालियर रियासत के अंतर्गत आता था। उस दौर में यह रियासत बाह्य तौर पर अंग्रेजों के साथ जरूर रही किन्तु भीतर से संपूर्ण जनमानस का सद्भाव क्रांति और क्रांतिकारियों की ओर झुका हुआ था। इसीलिए गुना और अशोकनगर के लोगों ने क्रांतिकारियों को साधन, सामग्री, धन, शस्त्र से भरपूर सहयोग दिया और संकट काल में छिपने के ठिकाने भी तैयार किए। इस परिक्षेत्र के अंतर्गत इतिहास प्रसिद्ध चंदेरी पूरे दौर में जलता रहा। चंदेरी ने प्रत्यक्ष युद्ध भी किया, क्रांतिकारियों की विजय-पताका और दमन-प्रताड़ना सब देखा और सहा।
गुना-अशोकनगर जिले में स्वाधीनता संग्राम और उसके संदर्भ में शोध के लिए वरिष्ठ इतिहासकार डॉ. शम्भुदयाल गुरू एवं भगवानदास श्रीवास्तव के अनुभवी मार्गदर्शन व संदर्भ ने इस कार्य के लिए दिशा निर्देश एवं क्रियान्वयन में अभूतपूर्व सहयोग दिया, इस हेतु उन्हें मेरा सादर आभार। अशोकनगर के पत्रकार श्री नीरज शुक्ला और गुना के श्री रमेश जैन, चंदेरी के श्री मजीद खाँ पठान को सहयोग हेतु धन्यवाद व आभार।
यह पुस्तक 'मध्यप्रदेश में स्वाधीनता संग्राम गुना-अशोकनगर' जिले के सभी ज्ञात एवं अज्ञात अमर बलिदानियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित है। मैं स्वराज संस्थान संचालनालय, संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश की भी विशेष आभारी हूँ तथा इस पुस्तक में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग के लिए सभी का धन्यवाद ज्ञापित करती हूँ।
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