लोक कहानियों और लोकगीतों की तरह लोकोक्ति साहित्य है। लोकोक्ति साहित्य में पहेलियों का विशेष महत्त्व है। इनके जन्म के बारे में विद्वानों का मत है कि पहेलियों के रूप ईसा से कई हजार वर्ष पहले मिलते हैं। भारतीय दृष्टिकोण से वेदों में पहेलियाँ "ब्रह्मोदय" के नाम से मिलती हैं। महाभारत में तो पहेलियों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। पाण्डव जब जलाशय में (वनोवास के समय) जल लेने के लिए गये तो यक्ष या धर्म ने सारस का रूप धरकर उनसे पहेली ही बूझी थीं।
आजकल पहेलियों को मनोरंजन के रूप में काम में लिया जाता है। आए दिन अखबारों या मैग्जॉस में इनका प्रयोग 'बुद्धि परीक्षा' के लिए किया जाता है। समय बिताने या ' बुद्धि विलास' के रूप में भी इन्हें काम में लिया जाता है। डॉ. सत्येन्द्र ने बताया है, "पहेलियाँ यथार्थ में किसी वस्तु का वर्णन हैं यह ऐसा वर्णन है जिसमें अप्रकत के द्वारा प्रकत का संकेत होता है।" अर्थात् पहेलियाँ एक प्रकार से वस्तु को सुझाने वाली उपमानों से बनी शब्द चित्रावली हैं जिसमें चित्र प्रस्तुत करके यह पूछा जाता है कि यह किसका चित्र है ?
पहेलियाँ प्रारम्भ में ग्राम जीवन से सम्बन्धित रही हैं। लोक में ही इनका जन्म हुआ है। ग्राम जीवन के आधार पर ये लिखी गईं किन्तु बाद में दृष्टिकूट प्रणाली भी आई जो पढ़े-लिखे लोगों से सम्बन्धित है।
पहेलियों के क्रमिक विकास व इतिहास का अध्ययन कर बाल साहित्य रचनाकार अंजीव अंजुम ने युग के अनुरूप पहेलियों को अपने तरीके से सृजन किया है। उनका मकसद नई पीढ़ी की चिन्तनधारा को बढ़ाने का रहा है, केवल सूचना भर देने को कलम नहीं चलाई है। नई पीढ़ी में देशभक्ति यानी राष्ट्र प्रेम जागृत करने का संकल्प दुहराया है। ऐतिहासिक घटनाओं की याद दिलाई है। आजादी की जंग में जो शहीद हुए उनको स्मृति में लाने के लिए शंखनाद फूंका है। उन्होंने सबसे अधिक जोर अपने देश के बलिदानियों, वीरों, भक्तों, आध्यात्मिक भावों में रचे-बसे व्यक्तित्वों पर दिया है। "ज्ञान पहेलियाँ" पुस्तक की पहली पहेली ही कवि अंजुम की भावना को स्पष्ट कर रही है-
"सभी जाति, धर्मों ने जिस धरती पर आश्रय पाया ज्ञान और विज्ञान से जग में आदि गुरु कहलाया सागर जिसके चरण पखारे, नगपति मुकुट सजाता कौन, देश पृथ्वी पर बोलो, 'स्वर्ण चिड़ी' कहलाता ?"
मातृभूमि के प्रति रागात्मक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए, गर्व करने के लिए इससे बढ़कर और क्या पहेली हो सकती है। मातृभूमि के प्राकृतिक सौन्दर्य की अभिव्यक्ति जिसमें सागर और हिमालय हैं श्लाघनीय है। सभी जातियों और धर्मावलम्बियों को प्रश्रय देने वाले देश का चित्रण एक पहेली में कर अद्भुत कौशल दर्शाया है, ऐसा लगता है अंजुम का उद्देश्य वाक् चातुर्य नहीं है, वाक् विलास भी नहीं है, कोई चमत्कार दिखाकर चमत्कृत करना भी नहीं है अपितु सीधे सच्चे ढंग से सरल शब्दों में राष्ट्र प्रेम जागृत करना है। मातृभूमि के प्रति निष्ठा और आस्था उत्पन्न करना है। इसी तरह अंजुम ने कुछ स्थानों, शहरों, नदियों, आदि का महत्त्व जताने के लिए भी पहेलियाँ गढ़ी हैं जो अपने प्राकृतिक सौन्दर्य, वन्यजीव, वास्तु कला, युद्धभूमि, शिल्प, कला आदि के लिए प्रसिद्ध रही हैं। एक पहेली देखिए-
"राजस्थानी धरा पर हम सबको है नाज जहाँ प्रताप ने रखी थी शौर्य, वीरता-लाज चेतक, मन्ना, भामा की गाथा गाती जो माटी बोलो, वीरों की तीरथ बन गई कौनसी घाटी ?"
अभीष्ट उत्तर हल्दीघाटी है। यहाँ केवल सूचना के लिए पहेली की रचना नहीं की गई है। आजादी की लड़ाई लड़ने वाले महाराणा प्रताप की वीरता और जोखिम भरे जीवन की याद दिलाने वाली है। उसके साथ-साथ चेतक की स्वामिभक्ति, मन्ना का त्याग, भामाशाह का त्याग के साथ उदारता की गाथाओं का स्मरण कराने वाली एक ही पहेली में गागर में सागर भर दिया है। ऐसी ही पहेलियाँ हैं जिनके उत्तर हैं पानीपत, कालापानी, जलियाँवाला बाग, चित्तौड़, विजय स्तम्भ, झाँसी, शीशगंज साहब आदि। भारत की पावन नदियों पर आधारित कुछ पहेलियाँ हैं जिनके किनारे संस्कृति पनपी है सरयू, गंगा, यमुना, नर्मदा, क्षिप्रा, गोमती, कावेरी, कृष्णा आदि पर पहेलियाँ गढ़ी हैं।
प्रथम भाग की पहेलियों के साथ इस पुस्तक के दूसरे भाग में सामान्य पहेलियों से हटकर पहेलियाँ रची गई हैं। इनको वैज्ञानिक पहेलियाँ कह सकते हैं। इसमें कवि ने भारत के ही नहीं पूरे विश्व के वैज्ञानिकों को लिया है। एक ओर प्रफुल्ल चन्द्र राय, रमन, जे.सी. बोस, नागार्जुन, आर्यभट्ट लिए हैं तो दूसरी ओर जेम्सवाट, आइन्सटीन, ग्राहम बेल, मेरी क्यूरी, न्यूटन आदि की भी बातें पूछी हैं। लैन्स, कम्प्यूटर, टी.वी., रेडियो, दूरबीन, बल्ब, राडार, वायुयान, हेलीकाप्टर, टैंक, टेलीफोन आदि की पहेलियाँ अपने आप में अनोखी हैं। एक उदाहरण-
"एक उजाले का है सेठ बना काँच का फूला पेट बटन दबाओ करे प्रकाश कहो, कौन है बिजली दास ?"
इस प्रकार समस्त पहेलियाँ रोचक एवं ज्ञानवर्धक हैं। आधुनिक विषयों में इतने प्रकार की पहेलियों की यह पुस्तक अपने में अनोखी, आकर्षक एवं स्वागत योग्य है। इससे नये पहेली-कारों को नई दिशा मिलेगी एवं नया सृजन भी होगा, ऐसा विश्वास है।
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