सामान्यतया निबंध और लेख में अंतर नहीं किया जाता और उन्हें समानार्थी तथा एक-दूसरे का पर्याय माना जाता है, जबकि लेख, निबंध से भिन्न साहित्य की एक स्वतंत्र विधा है। दोनों में मौलिक अंतर है। निबंध, जहां व्यक्तिनिष्ठ होता है, वहीं लेख होता है वस्तुनिष्ठ । निबंध को काव्य की श्रेणी में रखा जा सकता है। उसमें व्यंजना का तत्त्व होता है, किंतु लेख में अभिधा ही सर्वोपरि है। लेख यथार्थदर्शी होता है, जबकि निबंध आदर्शोन्मुख होता है। निबंध में कल्पना की उड़ान होती है, किंतु लेख सत्य को खोजता है। वह विषय वस्तु को यथा तथ्य रूप में प्रस्तुत करता है। निबंध अलं त भाषा का सहारा लेता है, किंतु लेख के लिए यह आवश्यक नहीं है। लेख का उद्देश्य जहां पाठकों को विषय की तथ्यपूर्ण जानकारी देना होता है, वही निबंधकार ज्ञान के साथ अपना आदर्श भी साथ रखता है। लेख का संबंध जहां विज्ञान से है वहीं निबंध का आधार कला है।
डब्ल्यू.एच. हडसन के अनुसार निबंध की सीमा में व्यक्ति व्यंजक निबंध की विवेचना ही समीचीन है। उन्होंने कहा था "The true essay is essentially personal. It belongs to the literature of self expression. Treatise and discussion may be objective. The essay is subjective. हरबर्ट रीड के अनुसार निबंध में सभी रचनाएं व्यक्ति प्रधान होती है। लेखक के व्यक्तित्व की किसी न किसी प्रकार अभिव्यक्ति निबंध का अनिवार्य तत्त्व है।
हिंदी साहित्य कोश के अनुसार लेख मूल अर्थ में समस्त लिखित सामग्री के लिए आता है। किंतु वास्तव में वह उस गद्य रचना के लिए प्रस्तुत होने लगा है, जिसमें लेखक प्रमुखतया निर्व्यक्तिक ढंग से किसी विषय पर शास्त्रीय ढंग से प्रकाश डालता है। साहित्यिक अर्थ में आर्टिक्ल निबंध के आकार प्रकार की लघु गद्य रचना है।
डॉ. हरि मोहन का भी मानना है कि वस्तुतः निबंध (ललित) व्यक्ति प्रधान अथवा आत्मपरक लघु गद्य खण्ड है, जिसमें काव्यात्मक भाषा का प्रयोग किया जाता है। कल्पना प्रवणता मन की उन्मुक्त भटकन, गूढ़ज्ञान आदि निबंध के आवश्यक तत्त्व है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी बाबू गुलाबराय, सरदार पूर्ण सिंह और महावीर प्रसाद द्विवेदी तथा डॉ. प्रभाकर माचवे प्रभृति विद्वान हिंदी निबंध विधा के प्रतिनिधि लेखक माने जाएंगे।
अस्तु लेख साहित्य की एक स्वतंत्र विधा है, जो पत्र-पत्रिकाओं का पोषण करती है और पाठकों को विषय का यथा तथ्य ज्ञान उपलब्ध कराने का प्रयास करती है। ज्ञान-विज्ञान की अभिव्यक्ति ही लेख का मुख्य ध्येय होता है।
अतः हम श्री मार्शा मेलकम के शब्दों में कह सकते हैं -
"लेख एक ऐसी लिखित रचना है, जो सामान्यतया विश्वसनीय स्रोतों से प्राप्त किसी घटना विशेष का वास्तविक विवरण होती है।"
प्रस्तुत संकलन मेरे चुनिंदा लेखों का ही एक संग्रह है, जो समय-समय पर देश-विदेश में हिंदी की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। हो सकता है कि कुछ लेखों में पुनरावृत्ति हो गई हो। पाठक इसे सामान्य रूप में स्वीकार करेंगे। जिन इष्ट मित्रों ने इनके संकलन में मेरी सहायता की है, उनके प्रति मैं आभार व्यक्त करता हूँ।
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