प्रस्तावना
स्व० पण्डित विष्णु नारायण नातखण्डे बीसवीं शती के महान् संगीतकार और संगीतममंज रहे हैं। स्व० भातखण्डे जी का सबसे महान् कार्य रहा है-प्राचीन भारतीय घरानेदार बंदिशों का संग्रह संगीत जगत् के सम्मुख प्रस्तुत करना। यह अत्यन्त हो श्रम साध्य कार्य उन्होंने सम्पूर्ण भारत का भ्रमण करके पूर्ण किया था। भारतीय शास्त्रीय संगीत की प्रतिष्ठा अपनी चरम सीमा पर, अंग्रेज शासन काल में भी यदि प्रतिस्थापित रही तो स्व० भातखण्डे जी ही श्रेय-माजन हैं। समस्त संगीत जगत् एतदर्थ उनका ऋणी है और रहेगा । 'हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति क्रमिक पुस्तक मालिका' स्व० भातखण्डे लिखित संगीत विषयक ग्रन्थों में एक अति महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसके छह भाग हैं। भातखण्डे पद्धति के पाठ्यक्रमानुकूल तैयार की गयी यह क्रमिक पुस्तक मालिका न केवल संगीत के छात्रों अपितु संगीत शिक्षकों के लिए भी दिशा निर्देशक है। इस ग्रन्थ की उपादेयता इसलिए बढ़ जाती है कि इसमें दस थाटों के दस आश्रय रागों की ३१६ चीजों को सविस्तार विवेचित किया गया है। अर्थात् यहाँ सरगम, लक्षणगीत, मध्यलय एवं विलम्बित बंदिशें सम्मिलित की गयी हैं। छोटे बड़े खयाल, ध्रुवपद तथा धमार इस ग्रन्थ में दिये गये हैं। रोत्ति और विवेचन अत्यन्त सहज है । 'हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति क्रमिक पुस्तक मालिका' का यह द्वितीय गुच्छ प्रस्तुत करते हुए हर्षानुभव हो रहा है। स्व० भातखण्डे जी के ऋण मुक्ति हेतु एक प्रयास है।
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