"वाराणसी इतिहास से भी अधिक प्राचीन है, परंपरा की दृष्टि से भी अतिशय प्राचीन है और मिथकों से कहीं अधिक प्राचीन है और यदि तीनों (इतिहास, परंपरा और मिथक) को एक साथ रखा जाय तो यह उनसे दुगुनी प्राचीन है।"
उपर्युक्त कथन प्रसिद्ध साहित्यकार मार्क ट्वेन के हैं जिन्होंने बीसवीं सदी के प्रारंभ में विश्वभ्रमण करते समय काशी (वाराणसी) को देखकर व्यक्त किया था। एक विदेशी यात्री के कथन की पुष्टि भारतीय वाङ्मय के अध्ययन से भी हो जाती है।
शिवपुराण की रुद्रसंहिता के छठें अध्याय में शिवलोक कैलास और काशी क्षेत्र के साथ-साथ निर्माण होने की चर्चा आई है और यहीं काशी में शिव और शक्ति की इच्छा से विष्णु की उत्पत्ति हुई। काशी के अविमुक्त क्षेत्र में ब्रह्मनाल नामक मुहल्ले को ब्रह्माजी की नाल (नाभि) कहा गया है और काशीवासियों का एक सामान्य विश्वास यह भी है कि प्रलय आने पर भी काशी अपने सम्पूर्ण वैभव के साथ सुरक्षित रहती है। इसी लिए काशी को 'सनातन नगरी' भी कहते हैं।
इस तरह हम पाते हैं कि काशी में ब्रह्मा, विष्णु और शिव (महादेव) तीनों देवता तैंतीस कोटि देवताओं के साथ सृष्टि के प्रारंभ से ही विद्यमान थे, आज भी हैं और आगे भविष्य में भी रहेंगे।
काशी वह शाश्वत नगरी है जिसका इतिहास लिखते समय हमें इतिहास लेखन के वर्तमान मानकों के साथ प्राचीन परंपराओं एवं लोक में प्रचलित पूर्व विश्वासों का युगपद् ध्यान रखना होगा।
काशी के प्रस्तुत इतिहास के लेखन में समुपलब्ध सभी साक्ष्यों को आधार स्रोत के रूप में ग्रहण किया गया है। ये साक्ष्य पर्याप्त मात्रा में सुलभ हैं किन्तु उनका सम्यक् विश्लेषण करना सरल कार्य नहीं है।
ऋग्वेद समस्त साहित्यिक ग्रन्थों में सर्वाधिक प्राचीन माना जाता है। इसके मंत्रद्रष्टाओं में दिवोदास (काशी के निर्माता) के पुत्र प्रतर्दन ने अनेक सूक्तों का दर्शन करके ऋषि का महनीय पद प्राप्त किया था (ऋग्वेद के प्रथम, चतुर्थ, नवम् एवं दशम मण्डल के 14 सूक्त)। इसी तरह अथर्ववेद एवं वेदाङ्ङ्ग साहित्य में भी काशी से सम्बन्धित विवरण भरे पड़े हैं।
रामायण एवं महाभारत इतिहास ग्रन्थ होने के बावजूद उनका धार्मिक महत्व सार्वभौम है और उनमें काशी का पर्याप्त विवरण मिलता है। पुराणों को ब्रह्मा के मुख से निर्गत माना जाता है परन्तु उपलब्ध अष्टादश पुराण वेदव्यास रचित हैं, उनमें प्रायः सभी में काशी के विवरण मिलते हैं। मत्स्यपुराण और पद्मपुराण में काशी के सौन्दर्य का भव्य चित्र प्राप्त होता है। इसी तरह ब्रह्मवैवर्तपुराण के परिशिष्ट रूप में प्रणीत 'काशीरहस्य' काशी के धार्मिक सांस्कृतिक स्वरूप का विश्वकोश ही है। स्कन्दपुराण के 'काशीखण्ड के 100 अध्यायों में काशी का पूर्ण इतिहास प्राप्त होता है और काशी के अध्येताओं के लिए प्रथम ग्रन्थ बन गया है। इस तरह इतिहास और पुराणों के सम्मिलित अध्ययन से काशी का जो चित्र उभरता है वह इसकी महत्ता को पूर्ण रूप से प्रकट कर देता है।
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