कुछ समय पहले डा० राधेशरण की पुस्तक विन्ध्यक्षेत्र का इतिहास प्रकाशित हुआ था, जिसमें न तो पूरे विन्ध्याक्षेत्र को सम्मिलित किया गया और न ही बघेलखण्ड को इसलिए बघेलखण्ड पर एक पुस्तक की अत्यन्त आवश्यकता थी। पुस्तक में बघेलों की उत्पत्ति की परम्परावादी विचारधारा से हट कर। उन्हें गहोरा और उसके पास के स्थानीय जन बताया गया है। बघेल इतिहास में हलकी और मलकी नामक कोई शासक नहीं हुए। पुस्तक में पहली बार मघ, वाकाटक, गुप्त, परिव्राचक और उच्चकल्प राजवंशों को सम्मिलित किया गया है। पुस्तक में बधेलों की मूलशाखा के अतिरिक्त उनकी विभिन्न शाखाओं का भी विस्तृत वर्णन किया गया। इतिहास के स्नातकोत्तर कक्षा तथा शोधदात्रों के लिए यह एक अत्यन्त उपयोगी ग्रंथ है।
जन्मस्थानः बांदा, उ.प्र
जन्मतिथिः 10.12.1942.
एम.ए. 1962 प्राचीन भारतीय इतिहास. संस्कृति और पुरातत्त्व, सागर विश्वविद्यालय
पीएच.डी. 1973, विन्ध्यक्षेत्र का ऐतिहासिक भूगोल, सागर विश्व-विद्यालय
पुरस्कार ।. भगवानदास सफड़िया पुरस्कार, सतना, 1996. 2. नीरज न्यास पुरस्कार, सतना, 2014. 3. सारस्वत सम्मान, झांसी, 2014. 4. दोवान प्रतिपाल सिंह स्मृति सम्मान, पहरा, 2015
शोधा तेरह छात्रों को पीएच.डी. प्राप्त
आजीवन सदस्य 1. म.प्र. इतिहास परिषद, भोपाल 2. इण्डियन हिस्ट्री कांग्रेस, दिल्ली 3. भारतीय मुद्रा परिषद, वाराणसी 4. एपिग्राफिकल सोसायटी ऑफ इण्डिया, मैसूर 5. मरुभूमि शोध संस्थान, डूंगरगढ़, राजस्थान
प्रकाशन ।. खजुराहो, मैकमिलन, 1980. 2. विन्ध्यक्षेत्र का ऐतिहासिक भूगोल, ICHR, New Delhi. 1987 3. ऐतिहासिक भारतीय अभिलेख, जयपुर, 1992. 4. भारत का राजनीतिक इतिहास, म.प्र. हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल, 2004. 5. भारत की सांस्कृतिक विरासत, इलाहाबाद, 1993. 6. भारतीय पुरातत्त्व के तत्त्व, इलाहाबाद, 2014. 7. खारवेल और उसका राजत्वकाल, बी.आर पब्लिशिंग कारपोरेशन, दिल्ली, 2018. 8. उत्तर भारत का राजनैतिक इतिहास, इलाहाबाद, 2019. 9. कालिंजर का इतिहास, बी. आर. पब्लिशिंग कारपोरेशन, दिल्ली, 10. बुन्देलखण्ड का इतिहास 11. त्रिपुरी के कलचुरि राजवंश 12. चित्रकुट का इतिहास, बी. आर. पब्लिशिंग कारपोरेशन, दिल्ली।
बघेलखण्ड शीर्षक से अभी तक कोई इतिहास प्रकाशित नहीं हुआ। 1972 ई. में गुरु रामप्यारे अग्निहोत्री का रीवा राज्य का इतिहास मध्यप्रदेश शासन साहित्य परिषद, भोपाल से प्रकाशित हुआ था। इसमें रीवा राज्य के बघेलों तथा उनके विभिन्न ठिकानों का वर्णन किया गया है। अब नये अनुसन्धानों के प्रकाश में इसके परिमार्जन की आवश्यकता है। 1973 ई. में डा. राजीवलोचन अग्निहोत्री का ग्रन्थ बघेलखण्ड के संस्कृत काव्य शीर्षक शोध प्रबन्ध प्रकाशित हुआ। ग्रन्थ में बघेलखण्ड के विभिन्न काव्य ग्रन्थों का आलोचनात्मक वर्णन किया गया है। बघेलखण्ड के इतिहास के लिए यह ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी है। इन ग्रन्थों के पूर्व 1919 ई. में कोठी राज्य के दीवान जीतनसिंह द्वारा लिखित रीवा राज्य दर्पण प्रकाश में आया। यह ग्रन्थ कैप्टन सी. ई. लुअर्ड का 1907 में रचित गजेटियर का हिन्दी अनुवाद है। किन्तु दीवान साहब का अनुवाद लुअर्ड का अनुवाद मात्र न होकर वस्तुतः एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है। 2004 ई. में डॉ. विक्रमसिंह बघेल का शोधप्रबन्ध रीवा के बघेलराज्य का परराष्ट्र सम्बन्ध (प्रारम्भसे 1859 ई. तक) प्रकाशित हुआ। डा. राधेशरण का एक ग्रंथ विन्ध्यक्षेत्र का इतिहास (वृहत्तर बघेलखण्ड) शीर्षक से 2001 में प्रकाशित हुआ है। ग्रन्थ की भूमिका स्वयं लेखक के स्थान पर डा. फणिकान्त मिश्र, अधीक्षण पुरातत्वविद, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भारत सरकार द्वारा लिखी गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रस्तावना लेखक या तो इस क्षेत्र के इतिहास से अनभिज्ञ था अथवा उसने ग्रन्थ को विना पढ़े ही प्रस्तावना की औपचारिकता पूर्ण कर दी है। क्योंकि यह पुस्तक एम. ए. इतिहास के पाठ्यक्रम को ध्यान में रखकर लिखी गई है, अतः हमारा दायित्व बनता है कि इसकी विशेषताओं और कमियों पर पाठकों का ध्यान आकर्षित किया जाय।
लेखक ने पुस्तक के शीर्षक में बृहत्तर बघेलखण्ड शब्द का प्रयोग किया है, किन्तु उनका बृहत्तर बघेलखण्ड क्या है, इसे परिभाषित नहीं किया गया। हमारी राय में बृहत्तर बघेलखण्ड जैसी कोई इकाई कभी नहीं रही। लेखक ने मानचित्र में अम्बिकापुर को दर्शाया है, जो छत्तीसगढ़ का भाग है। लेखक का भौगोलिक ज्ञान भी सीमित है। पृ. 17 पर गिजवा का उल्लेख किया गया है, जो तलहार में स्थित है। कनिंघम ने (आसरि, खण्ड 21, फलक 30 पर) GINJA का उल्लेख किया है, फिर भी लेखक पूरी किताब में गिजवा शब्द का प्रयोग करता है। पृ. 18 पर भवभूति को रामचरितमानस का रचयिता बताया गया है। पृ. 19 पर लेखक का कथन है कि भग्ग गणराज्य समय के साथ वत्स जनपद में समाहित हो गया। यह तथ्य गलत है।
भग्ग गणराज्य का विलय वत्स में न होकर वज्जिसंघ में हुआ था और यह वज्जिसंघ का भाग था। (कैम्ब्रिज हिस्ट्री आफ इण्डिया, खण्ड 1, पृ. 175)। पृ. 21 पर कहा गया है कि महाभारत से चेदि तथा उसके इतिहास पर काफी कुछ प्रकाश पड़ता है। वे कसु को चेदि का पहला शासक बताते हैं। तत्पश्चात लिखते हैं कि इन्द्र के कहने पर वसु ने चेदि देश को जीता। लेखक कसु को चेदि का पहला शासक बताता है और बाद में वसु द्वारा उसे जीतने का उल्लेख करता है। दोनों कथन विसंगतिपूर्ण है। लेखक को ज्ञात नहीं है कि कसु और वसु एक ही व्यक्ति है।
पृ. 23 से लेकर 51 तक साहित्य और अभिलेखीय सन्दर्भों के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में स्थलों का वर्णन किया गया है। किन्तु इसके अधिकांश स्थल ऐतिहासिक नहीं है और उन में से अधिकांश ऐसे ग्राम हैं, जो ब्राह्मणों को दान में दिये गये हैं और वे ब्राह्मणों की निजी सम्पत्ति हैं। ऐसे स्थानों में कुछ नाम इस प्रकार हैं- आश्रमक, ओपाणि, कलभिकुण्ड, काचरपल्लिका, चित्रपल्ली, छन्दापल्लिका। लेखक ने ऐतिहासिक नगरों के अन्तर्गत कोठी, दुर्जनपुर, खलेसर, नरोगढ़ का उल्लेख नहीं किया। अजयगढ़ दुर्ग (पृ. 35) बालुवाहिनी नदी की घाटी में नहीं अपितु केन नदी घाटी में स्थित है।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist