| Specifications |
| Publisher: MOTILAL BANARSIDASS PUBLISHERS PVT. LTD. | |
| Author: डा. मुरलीधर चतुर्वेदी (Dr. Murlidhar Chaturvedi) | |
| Language: Sanskrit Text with Hindi Translation | |
| Pages: 1424 | |
| Cover: Paperback | |
| 8.5 inch X 5.5 inch | |
| Weight 1 kg | |
| Edition: 2011 | |
| ISBN: 9788120824478 | |
| HAA002 |
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होरारत्नम
भारतीय ज्योतिषशास्त्र तीन भागों में विभाजित है:( 1) सिद्धान्त (2) संहिता एवं (3) होरा । इनमें होरा का विशेष महत्त्व है, क्योंकि इसके आधार पर वार-गणना की जाती है तथा अहोराव्र के बारह लग्नों का और उनके आधार पर मनुष्यों के शुभाशुभ फल का ज्ञान होता है ।
होरारत्न के दस अध्याय हैं । जो यहाँ पर पाँच-पाँच अध्यायाओं में पहली बार हिन्दी अनुवाद के साथ दो भागों में प्रस्तुत है-
प्रथम अध्याय में राशियों और ग्रहों की संज्ञा स्वरूप, बलाबल और फल का भिन्न-भिन्न रीतियों से विवेचन किया गया है ।
द्वितीय अध्याय में जातक कै जन्मकाल में निषिद्ध योगों का निरूपण एवं अशुभ योग की शान्ति के उपाय कहे गए हैं । साथ ही होराचक्र, उसमें अभिजित गणना का विचार, जन्मपत्री लिखने का क्रम, प्रभव आदि संवत्सरों के फल, पंचांग षड्वर्ग, गण आदि के फल, डिम्भचक्र एवं उसके फल का विवेचन है ।
तृतीय अध्याय में भावों की आवश्यकता उनका आनयन, भावस्थ ग्रहों का फल? हिल्लाज के अनुसार भावफल, ग्रहचेष्टाओं एवं भावचेष्टाओं का विचार, अवस्था ज्ञान, पंचम सप्तम और दशम भाव में ग्रहों की अवस्था का फल शयन आदि अवस्था में सूर्य आदि ग्रहों का फल, 12 राशियों में स्थित सूर्यादि ग्रहों का और उन पर ग्रहों की दृष्टि का फल कहा गया है ।
चतुर्थ अध्याय में राशिस्थ ग्रहों तथा सूर्यादि ग्रहों का फल, उच्च, नीच, मित्र, शत्रु आदि में स्थित ग्रहों का फल वर्णित है ।
पंचम अध्याय में अरिष्टविवेचन आयुयोग, पितृ-मातृ-कष्टप्रद योगों का वर्णन, के फल, ग्रहरश्मियों का और उनके फल का विवेचन है ।
छठे अध्याय में नाभस योगों के अतिरिक्त सर्प, किङ्कर, दारिद्रय, रोग, क्रय-विक्रय, चित्र, वाद्य-वादन, भैषज्य, सूतक कर्म तथा भिक्षुक योगों का वर्णन है ।
सातवें अध्याय में बारह भावों के फल का विवेचन है ।
आठवें अध्याय में बारह राशियों में चन्द्रमा का तथा चन्द्रमा से बारह भावों में ग्रहों का फल वर्णित है।
नवम् अध्याय में आयुचिन्ता, दशारिष्ट, दशा-महादशा का फल वर्णित है ।
दशम अध्याय में स्त्रीजन्मांक के शुभाशुभयोग एवं स्त्रीकुण्डली में राजयोगों का वर्णन किया गया है। मूल संस्कृत पद्यों के साथ-साथ हिन्दी अनुवाद और विशेष भी संलग्न हैं ।
इस कथ के अन्त में उद्धृत ग्रंथ तथा ग्रन्थकारों की अकारादि क्रमसूची भी दी गई है । हिन्दी व्याख्या सरल, सुगम और स्पष्ट है । ज्योतिर्विदों के लिए अतीव उपयोगी सिद्ध होगी ।






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