प्रकृति मानव के लिए कुदरत का अनमोल वरदान है। पृथ्वी जैसा वातावरण किसी ग्रह पर नहीं है। जीवन की मूलभूत जरूरतें हवा, जल, प्रकाश और पेड़-पौधे यहीं पर हैं। पृथ्वी पर उगने वाले पेड़, पौधे, लता आदि जीवन के अवलंब हैं। सभी जीवधारी इन पर निर्भर करते हैं। घास-पत्तियाँ खाने वाला हाथी विशाल डील-डौल का स्वस्थ प्राणी है। फल, सब्जी, मेवा, मसाले आदि के रूप में हमें कुदरत ने कितनी नियामतें बख्शी हैं।
प्रकृति सबका पोषण करती है। जब-जब मानव प्रकृति के विपरीत जाता है, तब-तब वह अनेक विकारों और बीमारियों के पाश में फँस जाता है। एक सर्वमान्य कहावत है- 'एक तंदुरुस्ती हजार नियामत।'
एक स्वस्थ शरीर में ही एक स्वस्थ मन का विकास होता है।
निरोगी तन से बढ़कर संसार में कोई सुख नहीं है। कमजोर और बीमार को बीमारियाँ ही नहीं, हर कोई दबाना चाहता है। अतः स्वस्थ और सबल बनना प्रत्येक प्राणी के लिए सबसे जरूरी है। सारे भौतिक साधनों का सुख एक स्वस्थ प्राणी ही भोग सकता है।
वर्तमान में मानव का जीवन अत्यंत संघर्षमय एवं तनावग्रस्त हो गया है। भागमभाग की व्यस्त दिनचर्या में उसे अपने स्वास्थ्य की बिल्कुल भी चिंता नहीं है। अपने तन की घोर उपेक्षा और लापरवाही के कारण असमय ही बीमारों की श्रेणी में पहुँच गया है। भले कारण कुछ भी रहे हों, मनुष्य और बीमारियों का चोली-दामन का साथ रहा है। ऐसा कोई व्यक्ति नहीं, जो अपने जीवन-काल में कभी बीमार न पड़ा हो।
वैसे तो वैज्ञानिक आँकड़े बताते हैं कि मृत्यु दर कम हुई है और मानव की औसत आयु बढ़ी है। लेकिन उसके साथ-साथ बीमारियाँ भी तेजी से बढ़ रही हैं। तरह-तरह की नवीन बीमारियाँ सामने आ रही हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान ने बड़े-बड़े चमत्कार कर दिखाए हैं, एक से एक उन्नत यंत्र बना लिए गए हैं, पर बीमारियाँ नित नए रूप में निरंतर बढ़ती जा रही हैं। सरकारी, गैर-सरकारी तथा निजी क्लीनिकों में मरीजों की कतारें देखने को मिलती हैं। व्यक्ति की कमाई का एक बड़ा हिस्सा डॉक्टरों की जेब में चला जाता है।
लेकिन बीमारियाँ हैं तो उनके इलाज भी हैं। दुनिया में अनेक चिकित्सा पद्धतियाँ उपयोग में लाई जा रही हैं। अंग्रेजी चिकित्सा से अब लोगों का मोह भंग सा हो गया है, क्योंकि इनके साइड इफैक्ट बहुत ज्यादा हैं। प्रस्तुत पुस्तक 'स्वास्थ्यवर्द्धक मेवा और मसाले' में सामान्य बीमारियों के घरेलू देसी इलाज दिए गए हैं। मेवा और मसाले हम नित्य किसी-न-किसी रूप में इस्तेमाल करते ही हैं। मगर इनका उपयोग इस तरह से करें कि ये दवाई का काम भी करें। इसमें बताए गए नुस्खे सहज सुलभ हैं।
प्रस्तुत पुस्तक को लिखने का उद्देश्य भी यही है कि घर में उपलब्ध इन सब चीजों से बीमारियों का तुरंत इलाज कर लिया जाए। इस तरह से अपनी सदियों पुरानी पारंपरिक देसी चिकित्सा को पुनर्जीवित किया जाए। पुस्तक के अंत में पाँच अत्यंत उपयोगी परिशिष्ट जोड़े गए हैं।
अंत में स्वास्थ्य को मजबूत और तंदुरुस्त रहने/बनाने के तरीके बताने वाली यह पुस्तक पाठकों के हाथों में है। इस श्रृंखला की पूर्व पुस्तकों की भाँति यह भी पाठकों को निरोगी बनाने में सहायक होगी। इसके माध्यम से हमारी भुला दी गई घरेलू चिकित्सा पुनः घर-घर में जीवंत होगी।
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