शरीर रचना, काय-चिकित्सा एवं प्रदार्थ ज्ञान का आयुर्वेद में जितना महत्व है उतना ही दोष धातु एवं मलों की क्रिया का ज्ञान भी चिकित्सा की दृष्टि से परमावश्यक है। प्रारम्भ में संहिता एवं संग्रह ग्रन्थों के रूप में ग्रन्थ प्रधान अष्टांग आयुर्वेद का अध्ययन-अध्यापन होता था। तत्पश्चात् विषय प्रधान अध्ययन का संहिताओं के साथ प्रचलन प्रारम्भ हुआ। पृथक विषय के रूप में रचना शारीर, द्रव्य गुण, विकृति विज्ञान एवं रस शास्त्र के साथ क्रियाशारीर को भी पढ़ाया जाने लगा।
आधुनिक चिकित्सा पद्धति के रचना क्रिया एवं विकृति विज्ञान के प्रत्यक्षानुभव एवं परीक्षण ज्ञान के अनुसार शरीर के प्रमुख अवयवों (हृदय, फुफ्फुस, यकृत) की क्रिया का ज्ञान आयुर्वेद छात्रों को भी दोषधातु एवं मलों की क्रिया के साथ कराया जाने लगा। भारतीय चिकित्सा केन्द्रीय परिषद के स्थापित होने पर पाठ्यक्रम में क्रियाशारीर के दो प्रश्न पत्र रखे गये एवं इनका नवीन विषयों के साथ विशेष अध्ययन कराया जाने लगा।
यद्यपि क्रियाशारीर विषय पर अनेकों विद्वानों ने आयुर्वेद एवं आधुनिक विषयों सहित अनेक ग्रन्थ लिखे हैं जिनमें वैद्य रणजीत राय देसाई, डा. प्रियव्रत शर्मा, डा. पूर्णचन्द्र जैन, वैद्य शिव कुमार गौड़ एवं शिवचरण ध्यानी विशेष उल्लेखनीय हैं। वर्तमान में विद्यार्थियों के पाठ्यक्रमानुसार यथावश्यक शरीर क्रिया विषय का सरल भाषा में मुख्य बिन्दुओं सहित वर्णन, जिसे प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने पूरा करने का प्रयास किया है।
आचार्य वैद्य ताराचन्द शर्मा जी प्रतिष्ठित चिकित्सक हैं, पूर्व में वर्षों तक महाविद्यालयों में अध्यापन भी कराते रहें हैं। अनेकों वर्षों तक मूलचन्द हॉस्पिटल में वरिष्ठ अनुसन्धान अधिकारी के रूप में कार्य किया है। आप विद्यार्थियों में जाने माने लेखक हैं। वर्तमान में राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ के चिकित्सागुरू भी हैं।
ग्रन्थ देखने के पश्चात आशा करता हूँ कि पाठ्यक्रमानुसार लिखी पुस्तक प्रथम व्यावसायिक छात्रों के लिए सुगम एवं मार्गदर्शक होगी।
चिकित्सा में क्रिया शारीर ज्ञान की आवश्यकता होती है। इसी कारण इसको प्रथक विषय के रूप में अध्यापन कराने की आवश्यकता हुई। यद्यपि शरीर क्रिया पर अनेक विद्वानों ने आयुर्वेद एवं आधुनिक सूत्रों सहित ग्रन्थ प्रकाशित किए हैं तथापि आयुर्वेदाचार्य (बी.ए.एम.एस.) के पाठ्यक्रमानुसार दोनों प्रश्न पत्रों के बहुत से बिन्दु विद्यार्थियों को विभिन्न पुस्तकों से पढ़ने पड़ते थे। अतः इस पुस्तक में पाठ्यक्रमानुसार विषयों का यथावश्यक वर्णन कर छात्रों के श्रम को कम करने का प्रयत्न किया है।
जो जो बिन्दु स्पष्ट नही हो रहे थे उनको विद्वानों की सहमति से उनके नाम सहित पूरा किया है। पं. हरिदत शास्त्री जी, वैद्य राज बृहस्पति देव त्रिगुणा, वैद्य शिवचरण ध्यानी के विचार एवं विविध कोषों की सहायता से शब्दों को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। एतदर्श मैं सभी का आभारी हूँ।
पुस्तक को पढ़कर पद्मभूषण वैद्य देवेन्द्र त्रिगुणा जी ने पुस्तक की भूमिका लिखने की कृपा की। ऐतदर्श उनका हृदय से आभार प्रकट करता हूँ।
संकलित विषय के साथ वैद्य साहिल मेहता जी ने 20 से 31 अध्यायों तक आधुनिक बिन्दुओं को लिखा है। पुस्तक के विषय संकलन में वैद्य मनोज शर्मा ने पूर्ण सहयोग दिया। पूफ्र पढ़ने एवं विद्यार्थियों की कठिनाई को ध्यान दिलाने के लिए वैद्य मांगीलाल, वैद्या मीमांसा गौड, अभीजीत शर्मा आयुर्वेदाचार्य (अन्तिम वर्ष) ने भी श्रम किया। अतः सभी धन्यावाद के पात्र हैं। विषय को प्रेमचन्द ने टंकित किया एवं पुस्तक के प्रकाशन का कार्य, श्री जितेन्द्र पी. विज (ग्रुप चेयरमैन), श्री अंकित विज (ग्रुप प्रेसीडेंट), श्रीमती मधु चौधरी (पब्लिशिंग हेड-एजुकेशन), श्रीमती सुनीता काटला (पी.ए. ग्रुप चेयरमैन एवं प्रकाशन प्रबंधक), कुमारी पूजा भण्डारी, (प्रोडक्शन हेड) श्रीमती समीना खान, श्रीमती सीमा डोगरा, श्री राजेश शर्मा, और अन्य स्टाफ, मेसर्स जे.पी. ब्रदर्स मेडिकल पब्लिसर्स, नई दिल्ली ने किया। इस पुस्तक को इनकी प्रेरणा, सहयोग, धैर्य एवं अथक परिश्रम के लिए मैं हृदय से साधुवाद देता हूं।
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