दोस्तो, लगभग चार दशक हो गए मुझे लिखते हुए। देशभर की तमाम पत्र-पत्रिकाओं में मेरी सैकड़ों रचनाएँ, आलेख, लघुकथा, कहानी, कविता तथा बाल-कहानियाँ आदि प्रकाशित हो चुकी है। कहानी-लेखन महाविद्यालय, अंबाला छावनी, जहाँ से मैंने लेखन का कोर्स किया था, उसकी पुस्तिका में देशभर के दर्जनों सफल लेखकों व पत्रकारों की सूची के बीच अपना नाम देखकर मुझे ऐसा लगता था कि मैं भी एक सफल लेखक बन गया हूँ। अब मुझे और आगे लिखने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन एक लेखक के लिए लेखन छोड़ देना इतना आसान नहीं होता है, क्योंकि लेखन के क्षेत्र में जब आपका नाम हो जाता है तो संपादक की नजर में आप आ जाते हैं। वे आपसे रचनाएँ भेजने के लिए अनुरोध करते रहते हैं।
मैं बड़ों के लिए लिखते-लिखते बाल साहित्य लिखने की ओर कैसे प्रवृत्त हुआ, यह बताता हूँ। वर्षों पहले एक दिन दिल्ली प्रेस के संपादक श्री विश्वनाथ जी का पत्र मिला, जिसमें उन्होंने बच्चों की लोकप्रिय पत्रिका 'चंपक' के लिए लोककथाएँ भेजने के लिए लिखा था। पहले तो मुझे लगा कि यह काम मुझसे नहीं हो पाएगा। लेकिन तभी मुझे बचपन में अपनी माँ से सुनी लोककथाएँ याद आने लगीं।
दोस्तो, मेरी माँ बहुत ही अच्छी 'स्टोरी टेलर' थी। वह रोज मुझे लोककथाएँ सुनाया करती थी। माँ से सुन बहुत-सी लोककथाएँ मुझे अच्छी तरह याद थी, तो मैंने दो लोककथाएँ भेज दी। दोनों ही स्वीकृत हो गई। चंपक में अपनी छपी लोककथाएँ देखकर मुझे इतनी खुशी हुई कि क्या बताऊँ। इसके बाद तो मेरा रुझान बाल साहित्य लेखन लेखन की तरफ हो गया।
उन दिनों निकलने वाली देशभर की अच्छी-खासी बाल पत्रिकाओं में मेरी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती थी। उन रचनाओं को देखकर कुछ मित्र उत्साहवर्धन करते हुए मुझे पत्र लिखा करते थे और कहा करते थे कि मुझे बाल कहानी संग्रह भी निकालना चाहिए। वर्षों तक मैंने इस पर सोचा ही नहीं। आखिर मित्रों की किताबें देखकर मैंने प्रयास करना शुरू किया। लेकिन वांछित सफलता नहीं मिल रही थी। लेकिन प्रकाशकों से बहुत-सी जानकारी मिल रही थी।
बड़े-बुजुर्ग सही कहते हैं कि किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संघर्ष तो करना ही पड़ता है। यदि आप अच्छे मन, समर्पित भाव और श्रद्धा से कोई कार्य करते हैं तो सफलता निश्चित ही एक दिन आपको प्राप्त होती है।
मेरा सौभाग्य है कि पिछले वर्ष साहित्यागार प्रकाशन के श्री हिमांशु वर्मा जी जैसे विनम्र और सहृदय व्यक्ति से मेरा संपर्क हुआ। उनके आत्मीय सहयोग से मेरा पहला बाल कहानी संग्रह 'दो बहादुर लड़के' 2021 में प्रकाशित हुआ। आपसे बताते हुए मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है कि मेरी पहली ही पुस्तक का चयन अखिल भारतीय स्तर पर किया गया है। हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान, बनैली, दरभंगा, बिहार के द्वारा 'डॉ. स्वर्ग किरण बाल साहित्य शिखर सम्मान 2022' से सम्मानित करने की घोषणा की गई है।
दोस्तो, मेरा दूसरा बाल कहानी संग्रह 'सबसे बड़ी है मानवता' आज आपके हाथों में है। इस संग्रह के लिए मैंने अपनी 16 बाल कहानियों का चयन किया है। मुझे विश्वास है इन कहानियों को पढ़कर, न सिर्फ बच्चों का मनोरंजन होगा बल्कि उन्हें बहुत कुछ सीखने और उनके बचपन को सँवारने में प्रेरणादायक साबित होगी। पुस्तक आपको कैसी लगी, मुझे जरूर बताइएगा।
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