सरकार के तीनों अंग विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका अपनी-अपनी भूमिका बखूबी निभाते हैं। संसदीय शासन प्रणाली में विधायिका और कार्यपालिका एक दूसरे की पूरक और न्यायपालिका स्वतंत्र होती है। न्यायिक व्यवस्था तो पूरे देश के लिए एक समान ही है अर्थात भारत में एकीकृत न्यायिक व्यवस्था है। इसमें नीचे से ऊपर की ओर अधीनस्थ न्यायालय, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय होते हैं। इस प्रकार से देश में विभिन्न स्तरों पर उपस्थित न्यायालयों को सामूहिक रूप से न्यायपालिका कहा जाता है। यह नागरिकों के लिए आकर्षण का विषय होती है। पुस्तक में इसी न्यायपालिका के प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के इतिहास पर दृष्टिपात करने के बाद इसकी संरचना, न्यायिक व्यवस्था और न्यायिक प्रक्रिया का सरल एवं सरस भाषा में विशद विवेचन किया गया है ताकि नागरिक विधि से ओतप्रोत होते हुए न्यायपालिका के बारे में बेहतर ज्ञान प्राप्त कर अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें। वैसे भी स्वस्थ लोकतंत्र में नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि न्यायपालिका उनके अधिकारों के लिए क्या-क्या दायित्व कैसे-कैसे और कब-कब निभाती है। इसी के मद्देनजर पुस्तक 'मैं न्यायपालिका हूँ' की मनमोहक शैली में रचना की गई है। साहित्यकार ने अपने चालीस वर्षीय सेवाकाल के दौरान सभी स्तर के न्यायालयों के कोर्टरूम में राजकीय और निजी मामलों के संदर्भ में अनेक बार उपस्थिति के समय न्यायिक व्यवस्था एवं प्रक्रिया सम्बन्धी अर्जित अनुभवों और अखबारी ज्ञान के आधार पर इसे समकालीन और आधुनिक स्वरूप प्रदान करने के लिए भागीरथ प्रयास किया है। फिर भी, यह सर्वतः पूर्ण नहीं मानी जा सकती है। यह तो व्यक्तिगत ज्ञान की उन्नति के लिए ही है। यह भारत के सभी नागरिकों के लिए बहुत ही उपयोगी है। पुस्तक की बहिन 'मैं विधायिका हूँ' ने अच्छी खासी बहुप्रियता हासिल की है। यह पुस्तक कैसी बन पड़ी का निर्णय तो आपको ही करना है।
Hindu (हिंदू धर्म) (13447)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (715)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2074)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1544)
Yoga (योग) (1154)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24553)
History (इतिहास) (8927)
Philosophy (दर्शन) (3592)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist