प्रामीन भारतीय संस्कृति का गौरवशाली इतिहास रहा है। प्राचीन काल में भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार न सिर्फ एशिया, बल्कि यूरोप तथा अफ्रीका तक हुआ था और वहाँ के सभ्यता-संस्कृति को प्रभावित किया, क्योंकि उस समय भारत आध्यात्मिक और ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में विश्व गुरू था। यह कार्य व्यापारियों, तीर्थयात्रियों, बौद्ध धर्म प्रचारकों के अथक प्रयास से संभव हुआ था। जब 712 ई. में सिंध पर अरबों का आक्रमण हुआ तो भारतीय विद्वानों, बौद्ध चिकित्सकों को बगदाद ले गये थे। साथ ही दर्शनशास्त्र के ग्रंथ, धार्मिक ग्रंथ, नक्षत्र विज्ञान, गणित, रसायन विज्ञान की पुस्तकों को भी साथ ले गये और इसका अनुवाद अरबी भाषा में करवाए, तब जाकर अरबों की सभ्यता-संस्कृति में काफी उन्नति हुई और अरबों के माध्यम से भारतीय सभ्यता-संस्कृति का प्रसार यूरोप के देशों में हुआ. यानि भारतीय सभ्यता-संस्कृति ने विश्व की सभ्यता-संस्कृति को समृद्ध करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
कुल मिलाकर भारतीय सभ्यता-संस्कृति का गौरवशाली इतिहास रहा है, जिसे इस पाठ्यक्रमों में सम्मिलित किया है।
इस गौरवशाली सभ्यता-संस्कृति को समय-समय पर विभिन्न विद्वान लेखकों ने विश्लेषित करने का प्रयास किया है, जिसमें से रामधारी सिंह दिनकर द्वारा लिखित पुस्तक 'भारतीय संस्कृति के चार अध्याय, रामजी उपाध्याय की भारत की प्राचीन संस्कृति, बी.एन. लूनिया की 'भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति का विकास', राधाकुमुद मुखर्जी की हिंदू सभ्यता आदि ग्रंथ लिखे गये हैं, किन्तु यह भी सच है कि इन पुस्तकों में नये पाठ्यक्रमों के बहुत से विषयों को सम्मिलित नहीं किया है। नये पाठ्यक्रमों के अनुसार सभी विषय-वस्तु एक जगह या कोई एक पुस्तकों में नहीं मिलता है।
प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने इस कमी को पूरा करने की कोशिश की है। इस पुस्तक में भारत की सभ्यता-संस्कृति के गौरवशाली इतिहास को पाँच अध्यायों में समेटने का प्रयास किया है। उम्मीद है कि अध्येताओं के लिए अनुपम पुस्तक साबित होगा।
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