"इज्जत का सौदा" शीर्षक से मेरे इस कथासंग्रह में मेरी कुल ग्यारह कहानियाँ हैं। इन कहानियों का विषय मानव के किसी न किसी पहलू से अवश्य जुड़ा हुआ है। यह मेरा ग्यारवाँ कथासंग्रह है।
समय परिवर्तनशील है। यह हमेशा एक समान नही रहता, अपितु बदलता रहता है। समय की कोख में अतीत बनकर रह जाता है। जबकि नया हमारे सामने फिर आने लगता है। वर्तमान जीवन की धड़कने इन कहानियों में महसूसी जा सकती हैं। मैं ऐसा समझता हूँ। जीवन की कई घटनाओं से जुड़ी हैं यह कहानियाँ।
इन कहानियों में से दो तीन कहानियों को छोड़कर शेष सभी कहानियाँ नारी विमर्श की पृष्ठभूमि से जुड़ी हुई हैं। मैंने लगभग अपनी समग्र कथाओं में नारी की वास्तविक स्थिति को दर्शाया है। जैसे परिवेश में वह जीती हैं, जैसा भोगती-सहती है। उनकी दशा क्या है समकालीन परिवेश में। इसे प्रकट करना चाहा है। उनका रहन-सहन जीवनयापन का स्तर कैसा है। उनकी पीड़ा-दशा जीवनशैली को कहानियों में पात्रों के माध्यम से वैसा ही दर्शाया है। इसमें उनकी वर्तमान स्थिति का सटीक उल्लेख आपको मिलेगा। उनकी सम्वेदनाएं-अनुभूतियाँ कहाँ-कहाँ छलनी हुई। उनकी झलक अवश्य इन कहानियों में आपको मिल जाएगी। यह मेरा दावा है आप से।
भले हम कितना कह लें। आजादी के बाद की नारी सभी क्षेत्रों में अग्रणी रही है। वह पहले जैसी स्थिति में अब नही है। किन्तु इस आधुनिक समाज की बदली परिस्थितियों में नारी ने क्या पाया है तथा क्या खोया है। यह प्रश्न विचारणीय है। इसे टाला नहीं जा सकता। इस बदले हुए परिवेश में इन परिस्थितियों में, कुछ ऐसी घटनाएं होती रहती हैं, जिन से नारी जूझ रही है। संघर्षरत है। भले वह आर्थिक स्तर पर कुछ हद तक आत्मनिर्भर बन गई हो। चाहे उसका प्रतिशत कम ही है। फिर भी उसके दोयमदर्जे की छवि पूर्णयता खत्म नही हुई है।
नारी की इसी मानसिकता को लेकर मैंने इन कहानियों को बुना है। इन कहानियों की चुनाबट में उनकी इन्हीं मुद्दों पर (नारी विमर्श के ज्वलंत विषयों को) समेटा गया है। मैं हर कहानी का अंत सकारात्मक नही करता। कहानी की माँग पर आधारित रहता है। उसका अन्त। भले वह नकारात्मक हो। किन्तु उसमें बनावट नही, यथार्थ झलकना चाहिए। मैं पात्रों की सजीवता को साथ लेकर चलता हूँ। जैसा वह चाहते, महसूसते हैं। करते हैं तथा करते रहना चाहते हैं। मैं कदम-कदम पर उनके साथ चलता हूँ। उनकी बात मानता हूँ।
आज का युग अति आधुनिकता से परिपूर्ण है। इस वर्तमान युग में भौतिकतावाद, बाजारवाद का बोलवाला है। मानवीय सम्वेदनाओं का निरनतर हास हुआ है। आज मानव सुविधाओं का दास बन बैठा है। आर्थिक स्तर पर भले वह सुदृढ़ हो गया हो, लेकिन मानवीयता स्तर पर वह बहुत नीचे गिर चुका है। उसने छल-कपट मोहमाया तथा लालच के बल पर सब को छला है। अपना मान-सम्मान तथा स्वाभिमान बेचा है। क्या यह उसकी गिरवाट या पतन का द्योतक नही ?
आज हमारे नैतिक मूल्य आँसू बहा रहे हैं। वह औंधे मुँह पड़े हुए है। मैं यह नहीं कहता कि, सभी लोग नैतिक स्तर पर गिरे हुए हैं। अपवाद हर वस्तु-चीज या मानव का हमेशा होता है। कुछ अच्छे भी हैं। किन्तु ज्यादातर ऐसे नही हैं। इस इंटरनेट, टी.वी. के युग में हमारे बीच नकारात्मक प्रभाव ज्यादा बढ़े हैं। इसे हम झुठला नही सकते। युवा पीढ़ी मोबाईल के मोहपाश में जकड़ी पड़ी है।
आए दिन कुछ दिल दहलाने वाली घटनाएं हमारे सामने घटने लगी हैं। मानव खोखला होने लगा है। पूरा सम्वेदनहीन, पत्थर सा बन बैठा है। यह दौर तरक्की का भले दौर कहलाए। किन्तु यह दौर मानवीयता के क्षरण की पराकाष्टा का समय भी कहलाएगा ?
हमें अपने मानवीय मूल्यों को समय रहते बचाना होगा ? अन्यथा आदमी से आदमी का विश्वास ही उठ जाएगा। धरती पर झूठ का ताण्डव होगा। यह घोर कलयुग की शुरुआत है। जिसने हमारी कोमल सम्वेदनाओं अनुभूतियों को लील डाला है।
मैं यहाँ स्पष्ट कर दूँ। इस कथासंग्रह में मैंने शैलीगत् कोई नया प्रयोग नही किया ? कहानियों को कथानुसार सरल-सहज शब्दों में लिखा है ताकि एक अक्षरज्ञान प्राप्त मानव भी इसे पढ़कर कोई सबक ले सके।
मैंने अपने लेखन के पाँच दशकों मे साहित्य की कई विधाओं में साहित्य सृजन कर डाला। जिसमें कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास, गीत, क्षणिका तथा बाल साहित्य भी है। मैंने 'नाटक' नही लिखे। संस्मरण, आत्मकथा भी लिखीं।
मेरी कहानियों-कविताओं पर छात्रों ने कुछ शोध एम.फिल. हेतु किये तथा दो शोधार्थी मेरी समग्र कहानियों पर पी.एच.डी हेतु शोधरत भी हैं।
मैं एक बात का उल्लेख यहाँ करना आवश्यक समझता हूँ। इन कहानियों को लगातार इतनी तेजी से लिखने के पीछे एक प्रेरणा निहित है। जिसके फलस्वरूप मैंने 2022 में इतनी कहानियाँ एक साथ लिख डाली। जितनी पिछले वर्षों में मैंने इतनी अधिक संख्या में नही लिखी थीं। कहते हैं कि इंसान को प्रेरणा कहीं से भी मिल सकती है। चाहे जिससे उसने प्रेरणा ली हो, वह व्यक्ति जिंदा हो या मृत।
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