'यद्भावम तद्भवति', यह आध्यात्मिक शास्त्र है। अर्थात हमारी भावनाएँ जैसी हैं, हमारा भविष्य वैसा ही होता है। हमारे विकल्प रहित संकल्प ही परंपरानुसार हमारे जीवन की वास्तविकताएँ बन जाते हैं। 'दृढ़ संकल्प', अनंत शक्ति युक्त होते हैं। 'सुदृढ रूपी संकल्प' से सब कुछ सिद्ध कर सकते हैं। 'चिरंजीवत्व' की सिद्धि भी इसी तरह प्राप्त होती है। ईसा मसीह ने कहा था, "राई जितना विश्वास भी रहे तो पर्वतों को भी हिला सकते हैं।"
हमें अपने प्रति विश्वास एवं भरोसा होना चाहिए। हमारे जीवन के प्रति हमारे निर्णय ही, हमारे जीवन को शासित करते हैं। इस तरह अपने जीवन को स्वयं के हाथों में लिये हुए मानव, ऐसे अनेकानेक योगीश्वर तथा चिरंजीवी हैं। इस तरह हमारे "मार्गदर्शक" बने हुए सभी को पिरमिड मास्टर्स का प्रणाम! इस ग्रंथ के द्वारा हम भी उनके मार्ग पर चलेंगें। श्री अल्ला बख्श जी को मेरे विशेष प्रणाम !!
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