'पाणिनिकालीन भारतवर्ष' पाणिनिकृत अष्टाध्यायी का सांस्कृतिक अध्ययन है। अष्टाध्यायी में लगभग चार सहस्र सूत्र हैं जिनका मुख्य उद्देश्य व्याकरण के नियमों का परिचय देना था।
किंतु इन सूत्रों में पाणिनिकालीन भाषा के अनेक ऐसे शब्द आ गये हैं जिनसे उस युग के सांस्कृतिक जीवन का प्रत्यक्ष चित्र प्राप्त होता है। पाणिनि ने अपने समय की संस्कृत भाषा की सूक्ष्म छानबीन की थी। इसके लिए उन्हें मनुष्य जीवन के प्रायः संपूर्ण व्यवहारों की जाँच-पड़ताल करनी पड़ी। अतएव पाणिनि का शास्त्र तत्कालीन भारतीय जीवन और संस्कृति का कोष ही बन गया है। भूगोल, सामाजिक जीवन, आर्थिक जीवन, शिक्षा और विद्या संबंधी जीवन, राजनैतिक जीवन, धार्मिक जीवन और दार्शनिक विमर्श सबके विषय में राई-राई करके पाणिनि ने सामग्री का सुमेरु ही खड़ा कर दिया था। उस सामग्री का इस ग्रंथ में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अध्ययन किया गया है। इसके द्वारा पाणिनि के कई सौ सूत्रों पर नया प्रकाश पड़ा है। संस्कृत भाषा के अष्टाध्यायी में आये हुए कितने ही भूले हुए शब्दों को यहाँ नये अर्थों के साथ समझने का प्रयत्न किया गया है। इन अर्थों में पाठकों को एक नये संसार का ही दर्शन मिलेगा, जो पाणिनिकालीन भाषा की सच्ची पृष्ठभूमि थी। वैदिक संहिताएँ, ब्राह्मण ग्रंथ, श्रौतसूत्र, धर्मसूत्र, गृह्यसूत्र, प्रातिशाख्य, चरणव्यूह, महाभारत, पाली साहित्य, जातक, अर्धमागधी आगम साहित्य, इत्यादि अनेक स्रोतों से पाणिनीय सामग्री पर प्रकाश डाला गया है। भारतीय संस्कृति की पूरी जानकारी के लिए पाणिनीय सामग्री का अध्ययन आवश्यक है। पाणिनीय सूत्रों की सामग्री उसी तरह प्रामाणिक समझनी चाहिए जिस तरह शिलालेखों और मुद्राओं की साक्षी प्रामाणिक मानी जाती है।
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