भारत के छोटे पड़ोसी द्विपीय राष्ट्र भारत की सुरक्षा व्यवस्था के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। वर्तमान परिदृश्य में जब चीन हिंद महासागर में अपने बंदरगाह एवं नौसैन्य अड्डों की स्थापना के लिए प्रयत्नशील है, ऐसे में मालदीव का महत्व भारत की सुरक्षा व्यवस्था की दृष्टि से और अधिक बढ़ जाता है।
प्रस्तुत पुस्तक "भारत-मालदीव संबंध" में भारत-मालदीव संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं प्रकृति, वर्ष 2008 से वर्ष 2012 तथा वर्ष 2013 से वर्ष 2018 के मध्य भारत- मालदीव संबंधों में आए तुलनात्मक परिवर्तनों और भारत-मालदीव संबंधों को निर्धारित एवं प्रभावित करने वाले विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय कारकों, विशेष रूप से हिंद महासागर में चीन की बढ़ती सक्रियता के संदर्भ में भारत-मालदीव संबंधों का मूल्यांकन कर, भारत-मालदीव संबंधों में विद्यमान चुनौतियों एवं संभावनाओं का विश्लेषण किया गया है।
पुस्तक पांच अध्यायों में विभाजित है। प्रथम अध्याय परिचयात्मक है। इसमें मालदीव के भौगोलिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक पक्षों का परिचय दिया गया है। साथ ही भू-राजनीति, भू-रणनीति, मालदीव के रणनीतिक महत्व आदि पर भी प्रकाश डाला गया है। द्वितीय अध्याय में भारत-मालदीव संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का विवेचन किया गया है। इसमें प्राचीन काल से वर्ष 2008 तक भारत-मालदीव संबंधों का राजनीतिक, सैन्य, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विश्लेषण किया गया है। अध्याय में भारत, मालदीव संबंधों के भू-रणनीतिक पक्षों एवं मालदीव, चीन संबंधों का भी संक्षिप्त विवरण दिया गया है।
तृतीय अध्याय में वर्ष 2008 से 2012 तक भारत-मालदीव संबंधों का राजनीतिक, सैन्य, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विश्लेषण किया गया है। साथ ही भारत-मालदीव संबंधों के भू-रणनीतिक पक्षों एवं मालदीव-चीन संबंधों पर भी प्रकाश डाला गया है।
चतुर्थ अध्याय में वर्ष 2013 से 2018 तक भारत-मालदीव संबंधों का विश्लेषण किया गया है। साथ ही भारत-मालदीव संबंधों के भू-रणनीतिक पक्षों एवं मालदीव-चीन संबंधों पर भी प्रकाश डाला गया है।
पंचम अध्याय में भारत-मालदीव संबंधों में विद्यमान चुनौतियों एवं संभावनाओं का विश्लेषण कर, भारत-मालदीव संबंधों के संवर्धन हेतु सुझाव दिए गए हैं। भारत-मालदीव संबंधों में मालदीव में बढ़ता कट्टरपंथ, राजनीतिक अस्थिरता, मालदीव में चीन की बढ़ती भूमिका, चीन की कर्ज जाल नीति, इंडिया आउट कैंपेन आदि प्रमुख चुनौतियाँ हैं। भारत-मालदीव संबंधों में आर्थिक सहयोग में वृद्धि, समुद्री सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा सुरक्षा, ब्लू इकोनॉमी, पर्यटन, आपदा प्रबंधन, वैश्विक संगठनों आदि में सहयोग की संभावनाएँ हैं।
पुस्तक का निष्कर्ष है कि मालदीव में चीन की बढ़ती भूमिका के प्रतिरोध हेतु यह आवश्यक है कि भारत मालदीव के प्रति अपनी विदेश नीति की प्राथमिकता निर्धारित करे तथा मालदीव के प्रति एक समन्वित एवं एकीकृत नया एजेंडा अपनाये-जिसके अंतर्गत सहयोग के सभी आयामों-राजनीतिक, प्रशासनिक, आर्थिक, सांस्कृतिक को सशक्त करने का प्रयास किया जाए। साथ ही भू-बुद्धिमता अपनाते हुए मालदीव के लोगों के भू-मनोविज्ञान को समझते हुए भारत और मालदीव के जनमानस के मध्य संपर्क एवं आत्मीयता बढ़ाने का प्रयास किया जाए, जिससे इंडिया आउट जैसे अभियानों को रोका जा सके तथा दोनों देशों में मित्रता के स्थायी आयाम स्थापित किए जा सकें।
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