हम सभी इस तथ्य से भली-भाँति परिचित हैं कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी किसी भी देश और समाज के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। वर्तमान समय में, वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति का प्रत्यक्ष प्रभाव मानव समाज पर देखने को मिलता है। विज्ञान और तकनीक ने मानव जीवन के असंख्य पहलुओं पर अपना असर छोड़ा है। विभिन्न बीमारियों जैसी दुश्वारियों से निजात पाने के मार्ग भी विज्ञान व प्रौद्योगिकी ने उपलब्ध कराए हैं। ऐसे महत्वपूर्ण योगदान में वैज्ञानिकों की भूमिका अहम् होती है। वैज्ञानिक समुदाय अपने अनुभव, मानवीय मूल्यों और सामाजिक सरोकार से प्रेरित होकर किसी प्रौद्योगिकी का आविष्कार करता है। इसी से जुड़ी एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि वैज्ञानिक अपने उद्देश्यों को जिस स्थान पर साकार करता है, वो प्रयोगशाला होती है। इस तरह प्रयोगशाला की भूमिका किसी वैज्ञानिक खोज या प्रौद्योगिकी के विकास में अहम् होती है।
हम सब जानते हैं कि भारत में वैज्ञानिक खोज की एक समृद्ध विरासत रही है और प्राचीन काल में विज्ञान का अभ्यास करने वाले विद्वानों की प्रयोगशाला किसी एक परिसर विशेष तक सीमित न होकर पर्यावरण और वन के विस्तार तक फैली होती थी। औषधीय महत्व के पौधों का मूल स्रोत वन होते हैं, इसलिए हमारे प्राचीन विज्ञानी ऋषि, वन के आसपास अपने प्रयोग किया करते थे। आधुनिक युग में भारत ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में असीम प्रगति की है। आज हमारे देश में आधुनिक वैज्ञानिक और तकनीकी उपकरणों, यंत्रों और सुविधाओं से युक्त प्रयोगशालाओं की एक समूची श्रृंखला मौजूद है। अंतरिक्ष, खगोलिकी, समुद्र विज्ञान, भूविज्ञान, जीनोमिक्स, जैवप्रौद्योगिकी, खनन, यांत्रिकी, पर्यावरण अभियांत्रिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, नैनो टेक्नोलॉजी, औषधि विज्ञान, रक्षा प्रौद्योगिकी, आदि जैसे विविध क्षेत्रों में भारतीय प्रयोगशालाएँ राष्ट्र की सेवा में संलग्न हैं। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सी.एस.आई.आर.), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डी.एस.टी.), जैवप्रौद्योगिकी विभाग (डी.बी.टी.), जैसे अनेक वैज्ञानिक अनुसंधान संगठन अपने अधीनस्थ प्रयोगशालाओं के जरिये महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्य कर रहे हैं। इन प्रयोगशालाओं में चल रहे अनुसंधान समाज, देश और पूरी दुनिया के लिए हितकारी हैं।
सी.एस.आई.आर. राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली; विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार में प्रमाण आधारित नीति अध्ययन तथा विज्ञान संचार-जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य कर रहा है। इस संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. मनीष मोहन गोरे ने भारत की प्रयोगशालाओं के बारे में यह महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है। इस विषय पर संभवतः हमारे देश में कोई पुस्तक उपलब्ध नहीं है और यह पुस्तक उस कमी को पूरा करेगी। इस मायने में लेखक ने महत्वपूर्ण कार्य किया है। मैं इस पुस्तक को एक और वजह से महत्वपूर्ण मानती हूँ और वो यह कि यह पुस्तक देश के विद्यार्थियों, विज्ञान के शोधार्थियों, शिक्षकों, वैज्ञानिकों सहित आम नागरिकों को भारत की सशक्त वैज्ञानिक प्रगति से रू-ब-रू कराएगी। कोई युवा पाठक, इस पुस्तक को पढ़कर यदि विज्ञान के किसी रुचिकर क्षेत्र में अनुसंधान के लिए प्रेरित होता है और उस दिशा में गंभीर योगदान देता है, तो वह हमारे समाज और देश के लिए गौरव की बात होगी।
इस महत्वपूर्ण और अनछुए विषय पर पुस्तक लिखने के लिए मैं डॉ. मनीष को बधाई देती हूँ। साथ ही प्रकाशक राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत को भी मैं शुभकामनाएँ प्रेषित करती हूँ, जिन्होंने देश में विज्ञान की विचारधारा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के उद्देश्य के साथ यह पुस्तक प्रकाशित करने का दायित्व निर्वहन किया है।
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