भारतीय समाज के पाठीय परिदृश्य के साथ वर्तमान सामाजिक परिवर्तनों को समेटती हुई यह पुस्तक कुल अट्ठारह अध्यायों में विभक्त है। भारत में समाज निर्माण के दार्शनिक आधारों की विवेचना के साथ वर्तमान एवं अतीत के मध्य अंतर्संबंधों को पुस्तक में दर्शाया गया है। नगर और ग्रामीण समाज की संरचना एवं परिवर्तनों को स्पष्ट करते हुए, ग्रामीण समाज में प्रभु जाति तथा शक्ति के प्रभावों को स्पष्ट किया गया है। अल्पसंख्यक, जनजाति और कमजोर वर्ग के बारे में अलग-अलग अध्याय जानकारी देते हैं। भारतीय समाज में स्त्रियों की बदलती प्रस्थिति का वर्णन एवं भारतीय जनसंख्या की रूपरेखा देते हुए, भारत में अंतःस्थापित सांस्कृतिक विविधताओं का निरूपण भी इस पुस्तक में किया गया है। भारतीय समाज के प्रमुख तत्त्वों में जाति, धर्म, संस्कृति और इनके आपस में अंतःसंबंधों की विशद चर्चा की गयी है। भारतीय नातेदारी, विवाह, परिवार के बारे में जानकारी देने के साथ ही यह पुस्तक भारत की मिश्रित परम्परा के ज्ञान के लिए अतीव उपयोगी सिद्ध होगी।
कानपुर विश्वविद्यालय से परास्नातक में स्वर्णपदक प्राप्त करने के पश्चात डॉ० पवन ने कामकाजी महिलाओं पर शोध कार्य किया। डॉ० पवन अपने उत्तर आधुनिक विमर्श के लिए जाने जाते हैं। डॉ० पवन का व्यक्तित्व बहु आयामी है। वह समाजशास्त्री होने के साथ-साथ स्तंभकार, उपन्यासकार, कवि व सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। वर्तमान में डॉ० पवन इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय से सम्बद्ध डेलही इंस्टिट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट में 'विधि के समाजशास्त्र' के एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।
विगत एक दशक में भारतीय सामाजिक संरचना में काफी बदलाव देखने को मिले भारतीय जनसांख्यिकीय परिवर्तन के साथ समाज की विभिन्न इकाईयों, यया-परिवार, विवाह, समूह इत्यादि में भारी मात्रा में परिवर्तन दृष्टिगोचर हुए हैं। तात्कालिक समाज की संरचना और उसमें आए हुए परिवर्तनों के साथ पाठीय परिदृश्य को समझना समाजशास्त्र के विद्यार्थियों के लिए अति आवश्यक हो गया है। यह पुस्तक इसी बात को ध्यान में रखते हुए स्नातक स्तर के विद्यार्थियों के लिए लिखी गयी है।
प्रस्तुत पुस्तक भारतीय समाज के विभिन्न तथ्यों को एक जगह इकट्ठा कर उनके समेकित अध्ययन को सुनिश्चित करती है। पुस्तक लेखन में अनेक विचारकों, संबंधित पुस्तकों, शोध पत्रों इत्यादि की मदद ली गयी है जिसकी वजह से पुस्तक की मौलिकता का दावा पूर्णतया नहीं किया जा सकता है, किन्तु विद्यार्थियों के लिए पुस्तक की उपयोगिता, मौलिकता से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण होती है। पुस्तक की भाषा को सरल और सुगम बनाने का प्रयास किया गया है, साथ ही प्रत्येक शीर्षक और उप शीर्षक का अंग्रेजी अनुवाद भी दिया गया है। प्रत्येक अध्याय के अंत में सन्दर्भ और संबंधित प्रश्नों को दिया गया है, ताकि छात्र/छात्राएँ संबंधित विषय के प्रति अच्छे से समझ बना सकें।
पुस्तक में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि यह केवल अकादमिक रूप से ही नहीं वरन प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी बराबर उपयोगी हो। पुस्तक लेखन में त्रुटियों होना स्वाभाविक हैं। सभी शिक्षकों से अनुरोध है कि उन त्रुटियों को संज्ञान में अवश्य लें, ताकि आगामी संस्करण में उसे सुधारकर पुस्तक को और परिष्कृत किया जा सके।
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