यह अत्यन्त हर्ष का विषय है कि इन्द्र नारायण रमन ने अपनी पुस्तक 'भारतीय-योगसिद्धांत' में योग को एक शुद्ध विषय के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है, साथ ही अनावश्यक विस्तार से बचते हुए सार रूप में योग के सभी पक्षों को समाहित करते हुए, योग के गूढ़ विषयों को भी सरल रूप में व्याख्या की है, जो समस्त योग साधकों के साथ-साथ योग विषय में उच्च अध्ययनरत छात्र-छात्राओं एवं शोधार्थियों के लिए भी बहुउपयोगी है। इस पुस्तक में यू.जी.सी. नेट परीक्षा के पाठ्यक्रम को भी समाहित किया गया है, जो उल्लेखनीय है। रमन जी पिछले 10 वर्षों से दिल्ली विश्वविद्यालय में योग अध्यापन का कार्य करते आ रहे हैं, जिसका लाभ देश-विदेश के हजारों, साधकों को मिला है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि, वे स्वयं एक उच्च कोटि के योग साधक हैं। ऐसे समय में जहां योग को समस्त विश्व में एक 'दिव्य' विषय के रूप में स्वीकार किया गया है, भारत सरकार जिसके प्रसार में व्यापक रूप से संलग्न है, ऐसे समय में यह पुस्तक योग के प्रचार-प्रसार को निसंदेह मजबूती प्रदान करेगी। इस पुस्तक में योग साधना के विविध आयामों पर भी सुक्ष्मता से प्रकाश डाला गया है, जो ध्यान एवं योग के अभ्यार्थियों के लिए अत्यन्त ही प्रसन्नता का विषय है।
प्रोफेसर अनिता शर्मा, निर्देशिका गाँधी भवन, दिल्ली विश्वविद्यालय, के प्रति मैं हृदय से आभारी हूँ क्योंकि इस पुस्तक के प्रकाशन में उनकी अहम भूमिका रही है। उनका आशीर्वाद हमें हर मोड़ पर मिलते रहे हैं। साथ ही इस पुस्तक की प्रस्तावना लिखकर जो हमें गौरवान्वित किया है, इसके लिए मेरे पास कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं। मनुष्य का प्रत्येक शुभकार्य परमात्मा की असीम कृपा बड़ों के आशीर्वाद एवं इष्ट मित्रों की शुभेच्छाओं की परिणति होता है। प्रकृति का नियम है कि ज्ञान का प्रवाह सदैव ऊपर से नीचे ओर होता है। इस ज्ञान के दिव्य प्रवाह से ही मेरे जैसे सामान्य एवं अल्पज्ञ व्यक्ति को ज्ञान का अमृत मिल पाया है। मेरा यह परम सौभाग्य है कि इस पुस्तक के प्रकाशन में मेरी शोध निर्देशिका प्रो. मधुलिका बनर्जी का विद्वतापूर्ण और स्नेहिल मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है। इसके लिए मैं उनके दिव्य चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ। गाँधी भवन प्रबन्धन समिति के अध्यक्ष प्रो. मदन मोहन चतुर्वेदी एवं प्रबन्धन समिति के सदस्य प्रो. एच. पी. गंगनेगी, प्रो. बीना अग्रवाल प्रो. श्रीकान्त कुकरेती एवं डॉ० गीता सहारे के प्रति हृदय से कृतज्ञ हूँ क्योंकि योग के प्रचार-प्रसार एवं विकास में इनका हमेशा से हमें सकारात्मक सहयोग एवं मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है।
मैं बौद्ध अध्ययन विभाग के पी-एच. डी. शोधार्थी एवं गांधी भवन कक्ष के नियमित साधिका खुशबू कुमारी का आभारी हूँ इन्होंने इस पुस्तक के संपादन एवं विश्लेषण में महत्त्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया है। मैं गांधी भवन परिवार के संजीव चौहान, अशोक कुमार, नरेश कुमार एवं स्वर्णा राणा के प्रति आभारी हूँ, जिनका आत्मवत प्रेम सदा से हमें मिलता आया है।
इस पुस्तक की कल्पना, रचना, विकास और पुर्णता में मेरे पिता श्री रामचन्द्र कामत एवं माता देवता देवी, का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है, उनके प्रति मैं मात्र आभार व्यक्त करके अपने कर्त्तव्य का इतिश्री नहीं करना चाहता हूँ, वरन सर्वशक्तिमान ईश्वर से यह प्रार्थना करता हूँ कि उनका पुत्र होने का जो मुझे गौरव प्राप्त हुआ है, उसके अनुरूप मैं उनकी आशाओं और आकांक्षाओं पर खरा उतरकर स्वयं को सुयोग्य पुत्र सिद्ध कर सकूँ। इस पुस्तक को पूर्ण करने में मुझे जिन ग्रन्थकारों, विद्वानों, लेखकों और विषय विशेषज्ञों का सहयोग मिला है, इसके लिए मैं उनका अत्यंत आभारी हूँ। जिन व्यक्तियों ने मुझे इस पुस्तक के पूर्ण होने में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किंचित भी योगदान दिया है, उनके प्रति हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ।
अन्त में मैं इस पुस्तक के प्रकाशन के लिए शिवालिक प्रकाशन के प्रमुख वीरेन्द्र तिवारी जी का हृदय से आभार प्रकट करना चाहता हूँ, उन्होंने इस पुस्तक के प्रकाशन में गहरी अभिरूची एवं तत्परता दिखाई है, तथा इस पुस्तक की रचना में उनका अहम भूमिका रही है, आशा है कि तिवारी जी का स्नेह एवं सहयोग भविष्य में भी मुझे इसी तरह मिलता रहेगा।
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