स्वास्थ्य आज की सबसे बड़ी समस्या है। आज की दौड़-भाग की जिन्दगी में न चाहते हुए भी हमें प्रायः तनावग्रस्त परिस्थितियों का सामना सहज ही करना पड़ता है। इन परिस्थितियों के बार-बार प्रस्तुत होने की वजह से हम पर हानिकारक प्रभाव लंबे अन्तराल पर शारीरिक एवं मानसिक रोगों के रूप में सामने आते रहते हैं। ये रोग जब हमारे दैनिक एवं सामाजिक छवि को आघात पहुँचाने लगते हैं, तब हम किसी चिकित्सक से सम्पर्क करते हैं। अगर समय रहते अपनी जीवनशैली में मूलभूत बदलाव नहीं किया गया तो वह समय दूर नहीं जब पूरा समाज एवं राष्ट्र मानसिक एवं शारीरिक रूप से पंगु बनकर रह जायेगा। इसके लिए वेद एवं आयुर्वेद तथा वैदिक जीवनचर्या एवं योग के विभिन्न आयामों जैसे- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि इत्यादि के द्वारा तनाव को कम करके स्वस्थ जीवन जिया जा सकता है।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के साइड इफेक्ट ने प्रत्येक प्राणी को स्वाभाविक अथवा प्राकृतिक चिकित्सा की तरफ लौटने को विवश कर दिया है।
प्राचीन ऋषियों द्वारा प्रदत्त जीवनशैली विशेष उपयोगी सिद्ध हो रहा है। इसी सन्दर्भ में इस पुस्तक के आविर्भाव की संकल्पना सृजित हुई।
वेद एवं आयुर्वेद दोनों के मूल में दैवी सत्ता (Devin Power) की प्रधानता है। एक ओर जहाँ वेद में मन्त्रों के माध्यम से देवताओं की दिव्य शक्तियों का प्रयोग करके मंत्र-चिकित्सा की जाती है, वहीं पर दूसरी ओर आयुर्वेद में भगवान धनवन्तरि के अमृत कलश के जल के पृथ्वी पर गिरने से उत्पन्न औषधियों के प्रयोग से आयुर्वेदिक चिकित्सा की जाती है। जिस प्रकार वेद का उद्देश्य इष्ट की प्राप्ति और अनिष्ट का परिहार है, ठीक उसी प्रकार आयुर्वेद का उद्देश्य स्वस्थ प्राणी के स्वास्थ्य की रक्षा तथा रोग से पीड़ित प्राणी के कष्ट को दूर करना है- 'स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणं आतुरस्य विकारप्रशमनऋचः। इष्ट की प्राप्ति प्रथमतया मंत्रजनित धार्मिक प्रयोग से होती है जो स्वस्थ शरीर से ही सम्भव है- 'शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्। अनिष्ट परिहार के अन्तर्गत पहला मुख्य कारक है स्वस्थ प्राणी के स्वास्थ्य की रक्षा तथा रोग से पीड़ित प्राणी के कष्ट को दूर करना। वेद एवं आयुर्वेद दोनों के प्रवर्तक महर्षि ऋषियों ने अपने-अपने ढंग से मनुष्य के स्वस्थ जीवन की कामना की है। प्राचीन वैदिक ऋषियों के ग्रन्थों एवं आयुर्वेदिक ऋषियों (चरक एवं सुश्रुत) के ग्रन्थों चरक एवं सुश्रुत संहिताओं में ऐसे सूत्र दिये हुए है जिनका पालन कर प्राणी एक स्वस्थ जीवन जी सकता है। इष्ट की प्राप्ति का तात्पर्य-स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणं से है तथा अनिष्ट के परिहार का तात्पर्य आतुरस्य विकारप्रशमनऋच से है। महर्षि चरक और सुश्रुत के सूत्रों में दैवी शक्ति भी परिलक्षित होती है जो वेद से अनुप्राणित है। सभी आयुर्वेदिक औषधियों जैसे-पारिजात, आँवला, पीपल, बरगद, पाकड़, गुलर, जामुन, केला, अमरूद, आम, आम्र पल्लव, मेंहदी, अश्वगंधा, जटामासी, घृतकुमारी (एलोवेरा), देवदारु, हल्दी, जाती, गन्ना, गंजी, आलू, मूली, अदरक, जीरा, सौंप, अनार, ब्राह्मी, शंखपुष्पी, समी, मदार, दुर्वा, तुलसी, भांग, धतुरा, कनैल, गेंदा, गुलाब, बिल्वपत्र, गुड़हल, गुरूचि, सोमलता इत्यादि में अन्र्तनिहित दैवी एवं आध्यात्मिक शक्ति भी रोगों को नष्ट करने में अपना चमत्कारी प्रभाव दिखलाती हैं। इन औषधियों एवं वनस्पतियों के अलग-अलग देवता है, संयुक्तदेवता है। इनके प्रयोग की विधि वेदमंत्रों में भी बतायी गयी है। इस शोध-प्रबन्ध में इन्हीं बिन्दुओं पर प्रामाणिक रूप से विस्तृत विवेचना की जायेगी।
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