Easy Returns
Easy Returns
Return within 7 days of
order delivery.See T&Cs
1M+ Customers
1M+ Customers
Serving more than a
million customers worldwide.
25+ Years in Business
25+ Years in Business
A trustworthy name in Indian
art, fashion and literature.

जबलपुर: मध्यप्रदेश में स्वाधीनता संग्राम- Jabalpur: Freedom Struggle in Madhya Pradesh

$16.88
$25
10% + 25% off
Includes any tariffs and taxes
Express Shipping
Express Shipping
Express Shipping: Guaranteed Dispatch in 24 hours
Specifications
Publisher: Swaraj Sansthan Sanchalanalay, Sanskriti Vibhag, Madhya Pradesh
Author Devendra Kumar Deolia
Language: Hindi
Pages: 188
Cover: HARDCOVER
9x6 inch
Weight 380 gm
Edition: 2023
ISBN: 9789393950154
HBP778
Delivery and Return Policies
Ships in 1-3 days
Returns and Exchanges accepted within 7 days
Free Delivery
Easy Returns
Easy Returns
Return within 7 days of
order delivery.See T&Cs
1M+ Customers
1M+ Customers
Serving more than a
million customers worldwide.
25+ Years in Business
25+ Years in Business
A trustworthy name in Indian
art, fashion and literature.
Book Description

संपादकीय

मध्यप्रदेश के अन्य जिलों की भांति जबलपुर जिले में भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश सत्ता के विरोध में स्वर मुखरित होने लगे थे। जबलपुर जिला भी अछूता नहीं रहा और अनेक राष्ट्रप्रेमियों ने स्वतंत्रता के इस महायज्ञ में अपना सर्वस्व होम किया। 1857 के प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में जिले में अनेक ऐसी घटनाएं हुई जिसके परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने भारतीय समाज पर और अधिक तीव्र यातनाएं बरतीं भले ही वह दण्डस्वरूप रहीं हों या नागरिकों से लिये जाने वाले राजस्व के रूप में। कोई आश्चर्य नहीं है कि 1857 की क्रांति को क्रूरता से दबाने के बावजूद भी अंग्रेजों का मन नहीं भरा और उन्होंने जिले भर में विभिन्न तरीके अपनाकर आमजनता को प्रताडित किया। राजा शंकरशाह और रघुनाथशाह को अंग्रेजों ने किस तरह से तोप के मुँह बाँधकर उड़ा दिया था, यह सर्वविदित है। उस घटना के समय वहाँ उपस्थित एक अंग्रेज अधिकारी ने स्वयं उस दृश्य को बेहद डरावना कहा था।

20वीं सदी के समय भी अनेक ऐसे घटनाक्रम हुए जिनमें लोगों ने सामूहिक स्तर पर सहभागिता कर स्वतंत्रता की ओर बढ़ने का हरसंभव प्रयास किया। जबलपुर में समय-समय पर कई राष्ट्रप्रेमी विभूतियों का आगमन होने से जिले में स्वतंत्रता प्राप्ति की ज्वाला सदैव धधकती रही। लोकमान्य तिलक, महात्मा गाँधी, अली बंधु, श्रीराजगोपालाचारी, मदनमोहन मालवीय, सुभाषचन्द्र बोस एवं जयप्रकाश नारायण के जबलपुर आगमन से जनता में उत्साह और साहस का संचार होता रहा। भले ही जिले में बहुत व्यापक स्तर पर ऐसा कुछ घटित न हुआ हो, जिसने राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिक्रिया को आंदोलित किया हो, किन्तु हर घटना जिले की जनता के प्रखर राष्ट्रभक्ति और स्वातंत्र्य चेतना की द्योतक अवश्य रही।

राष्ट्रीय पटल पर जो भी गतिविधि संचालित हो रही थी, उसका प्रभाव जिले में देखने में आया। जिले में साइमन कमीशन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन आदि का प्रभाव बहुत व्यापक रहा किन्तु इसके साथ ही जिले में कुछ विशेष घटनाएं भी घटीं जो कि आमजनता की राष्ट्रीय चेतना का ज्वलंत उदाहरण थीं।

प्रस्तुत पुस्तक 'मध्यप्रदेश में स्वाधीनता संग्राम-जबलपुर', स्वराज संस्थान संचालनालय की महत्वाकांक्षी परियोजना का परिणाम है जिसके तहत मध्यप्रदेश के समस्त जिलों के स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास पर विस्तृत शोधकार्य कर उन्हें प्रकाशित किया जा रहा है। परियोजना से जुड़े विद्वतजनों तथा स्वराज संस्थान संचालनालय के सहयोगियों का मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।

विश्वास है कि यह पुस्तक जबलपुर जिले के स्वाधीनता संग्राम के अल्पज्ञात पक्षों, गुमनाम स्वातंत्र्य वीरों के कृतित्व पर प्रकाश डालने में सफल सिद्ध होने के साथ जनमानस तक स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े तथ्यों, विचारों एवं कार्यों का भी प्रचार-प्रसार करेगी।

भूमिका

भारत वर्ष भले ही बार-बार आक्रान्ताओं से पद-दलित हुआ हो पर उसके हृदय ने कभी इस समर्पण भाव के कारण पराधीनता स्वीकार नहीं की। अवसर आते रहे और उनका प्रतिकार भी किया गया। 1857 में एक राष्ट्रीय चेतना का उदय हुआ जिसमें समस्त राष्ट्र में अंग्रेजी सत्ता के भ्रष्ट और शोषणकारी शासन के प्रति क्रांति का आह्वान किया। उस राष्ट्रीय चेतना की परिणति हुई वह क्रांति जिसे हम सगर्व 'भारत का प्रथम स्वतंत्रता समर' कहते हैं। भारत के आर्थिक और सांस्कृतिक प्रतीक रोटी और कमल उस स्वतंत्रता के संदेशवाहक बने।

मध्यभारत भी इस बलिदान अभियान में पीछे नहीं रहा। 1842 के बुन्देला संघर्ष में प्रारंभ हुए विदेशी आक्रान्ताओं के प्रतिरोध को झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, झलकारी बाई, बख्तबली शाह और बोधन दौआ, सरजू प्रसाद, रणमत सिंह, धीर सिंह तथा अन्य अनेक बलिदानियों ने स्वतंत्रता समर को तेजस्वी बनाया। रानी अवंतीबाई मंडला वर्तमान जबलपुर की स्वतंत्रता स्वाभिमान की प्रतिमूर्ति रानी दुर्गावती के वंशज शंकरशाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह का निर्भीक बलिदान भी उसी अमर समर गाथा का लोमहर्षक प्रसंग है।

आजादी के आंदोलन में न जाति-पाति का भेद था न छोटे बडे का। न गरीब-अमीर की भावना थी न ऊँच-नीच का भाव था। सभी का एक ही लक्ष्य था कि हमें देश को आजाद कराना है, हमें आजादी चाहिए, मर जायेंगे मिट जायेंगे पर आजादी लेकर ही रहेंगे फांसी के फन्दे और गोलियों की बौछार उन्हें भयभीत नहीं कर सकी, जेल की दीवारें उन्हें रोक नहीं सकी, जंजीरे बांध नहीं सकी डंडे कुचल न सके और परिवार की बर्बादी उन्हें अपने गन्तव्य से विचलित नहीं कर सकी।

प्रस्तुत शोधकार्य जबलपुर जिले के तत्समय के इतिहास को प्रस्तुत करने का एक प्रयास मात्र है क्योंकि लेखन एक कठिन कार्य है और बहुधा विवादास्पद ही रहता है। यह संभव है कि कुछ तथ्यों, घटनाओं और उनसे संबंधित व्यक्तियों का उल्लेख पूर्णता के साथ न हो पाया है। हम उन घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी नहीं हैं। हमें तो जो लिखित और व्यक्तियों के श्रीमुख से मिला उसे इस रचना में प्रस्तुत किया है।

राष्ट्रीय अभिलेखागार दिल्ली, राज्य अभिलेखागार, भोपाल के डायरेक्टर, नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी, नई दिल्ली के डायरेक्टर, जबलपुर संभागीय कार्यालय के अभिलेख कोष्ट के प्रभारी श्री यू.एल. हल्दकार, विश्वविद्यालय पुस्तकालय के प्रभारी डॉ. आशुतोष श्रीवास्तव, सहायक ग्रंथपाल संदर्भ श्री मनीष जैन, नगर निगम पुस्तकालय के सहायक ग्रंथपाल श्री अनिल चौरसिया का मैं तहेदिल से आभारी हूँ जिन्होंने मुझे इस रचना को पूर्ण करने के लिए संबंधित सामग्री सहजता से प्रदान की एवं अपना भरपूर सहयोग प्रदान किया।

इस रचना को मूर्त रूप देने में मेरे मार्गदर्शक रही डॉ. अर्चना देवलिया, सहायक प्राध्यापक इतिहास, शासकीय मानकुंवर बाई कॉलेज, डॉ. आर.एन. श्रीवास्तव विभागाध्यक्ष इतिहास, शासकीय मानकुंवर बाई कॉलेज जिन्होंने मुझे जबलपुर के इतिहास से संबंधित सामग्री प्रदान की, डॉ. जे.पी. मिश्रा आचार्य, इतिहास विभाग रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर, डॉ. अलकेश चतुर्वेदी, सहायक प्राध्यापक नवयुग कॉलेज जबलपुर, डॉ. संजय तिगनाथ एवं डॉ. विष्णु गाडगिल आचार्य भूगर्भ शास्त्र विभाग, शासकीय विज्ञान महाविद्यालय, जबलपुर, प्रो. आर.पी..एस. चंदेल, प्राध्यापक गणित, शासकीय विज्ञान महाविद्यालय, जबलपुर, डॉ. एम.सी. चौबे, इन सभी का आभारी एवं कृतज्ञ हूँ।

साथ ही इस कार्य में डॉ. राजेन्द्र कुरारिया, सहायक प्राध्यापक भौतिकी, शासकीय विज्ञान महाविद्यालय, जबलपुर एवं मेरे छात्र उमा शंकर सोनी ने मेरे साथ सिहोरा, पाटन, कुण्डम, मझगवां, एवं विभिन्न ग्रामीण इलाकों में भ्रमण कर स्थानीय स्तर पर जानकारी उपलब्ध करवाने में मेरी मदद की, मैं इनके सहयोग को धन्यवाद की औपचारिकता से कम नहीं करना चाहता।

Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at help@exoticindia.com
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through help@exoticindia.com.
Add a review
Have A Question
By continuing, I agree to the Terms of Use and Privacy Policy
Book Categories