पुस्तक परिचय
डोगरी की सुप्रसिद्ध कवयित्री, हिन्दी की कथाकार, साक्षात्कारकत्रीं पद्मा सचदेव का यह नया उपन्यास है। इस उपन्यास के केन्द्र में सुग्गी नाईन है। एक ऐसी औरत, जो है तो आम; पर है बड़ी खास। इस उपन्यास में सुग्गी के माध्यम से जम्मू शहर की कथा है। यह एक प्रकार से जम्मू का दस्तावेज भी है और उसका इतिहास भी। इतिहास उतना ही है, जितना सुग्गी नाईन जानती है। आज नाई-नाइनें शहरों में तो लगभग नहीं ही दिखाई देतीं, गाँवों में भी अब पहले जैसा उनका दबदबा और अस्तित्व नहीं रहा। आज उड़ते हुए जहाज से नीचे देखें तो ज्यादा जंगल सीमेण्ट के ही दिखाई देते हैं। इन जंगलों में ही कहीं हमारा वो इतिहास छिप गया है, जिसे नाइनें बुनती थीं। हर युग की नाइनें अलग रूप-रंग लिये होती हैं। आज भी आपको मिल जाएँगी। लेकिन सुग्गी सिर्फ उपन्यास में मिलेगी।
पद्मा सचदेव की भाषा में जो लयात्मकता, जो गेयता और शब्दों का चुनाव होता है वह अद्भुत है। इस उपन्यास में पद्मा जी ने सुग्गी के माध्यम से एक प्रकार से जिस लोक-गायिका के जीवन और जिस जम्मू शहर का चित्र खींचा है उसमें भाषा का प्रवाह बेजोड़ बन पड़ा है। वैसे तो पद्मा सचदेव ने जम्मू शहर की समस्याओं और एक मरती हुई सांस्कृतिक धरोहर को लेकर कई संस्मरण, रिपोर्ताज और लेख लिखे हैं, लेकिन इस उपन्यास में जिस तरह से उन्होंने समाज के सांस्कृतिक व्यक्तित्व को लेकर घटनाओं को बुना है वह चकित कर देने वाला है। इस उपन्यास को प्रस्तुत करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ को प्रसन्नता है।
लेखक परिचय
पंजतीर्थी मुहल्ला, (जम्मू) में 1940 में जनमी पद्मा सचदेव को साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्कार विरासत में मिले हैं। पहले उन्होंने डोगरी कवयित्री के रूप में ख्याति प्राप्त की और लोकगीतों से प्रभावित होकर कविता और गीत लिखे। बाद में हिन्दी और गद्य में भी साधिकार लिखा।
अब तक डोगरी में सात कविता संग्रह 'मेरी कविता मेरे गीत', 'तवी ते झन्हां', 'हैरियां गलियां', 'पोटा पोटा निम्बल', 'उत्तर बैहनी', 'धैन्थियां' और 'अक्खरकुंड'; चार उपन्यास 'अब न बनेगी देहरी', 'नौशीन', 'भटको नहीं धनंजय' और 'जम्मू जो कभी शहर था'; कहानी-संग्रह 'गोदद्भरी'; तीन साक्षात्कार 'मितवाघर', 'दीवानखाना' और 'अमराई'; यात्रा-वृत्तान्त 'मैं कहती हूँ आँखिन देखी'; आत्मकथा 'बूंदबावड़ी' प्रकाशित हो चुके हैं। पद्मश्री उपाधि (2001) से अलंकृत श्रीमती पद्मा सचदेव साहित्य अकादेमी पुरस्कार (1970), सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार (1987), हिन्दी अकादेमी पुरस्कार (1987-88), उत्तर प्रदेश हिन्दी अकादेमी के सौहार्द पुरस्कार (1989), आन्ध्र प्रदेश का जोशुआ पुरस्कार (1999), मा. दीनानाथ मेगेशकर पुरस्कार, जम्मू-कश्मीर सरकार के 'रोब ऑफ ऑनर' तथा राजा राममोहन राय पुरस्कार से सम्मानित हैं।