सलीब पर टंगा ईसा ! सदियों से जाने कितने ही लोगों के दिलों में श्रद्धा, स्नेह, करूणा पैदा करता आया है यह मसीहा ! जरूरी नहीं कि आप ईसाई धर्म में दीक्षित हों, ईसाई माता-पिता की सन्तान हों या ईसाई समुदाय के बीच रहते हों... यह अधनंगा कांटों का ताज पहना, सलीब पर प्राण त्यागता फकीर निश्चय ही आपके दिल में करुणा जगाता है, बशर्ते की आप एकदम तंगदिल न हों। मुझे बचपन से ही ईसा का चरित्न बड़ा कारुणिक लगता रहा है, किन्तु उनके इस कारुणिक रूप के पीछे जो ताकत, जो हिम्मत और जो दैवीय गुण छिपे थे, इसे मैंने तभी समझा जब बाइबिल पढ़ने का मौका मिला। सैकड़ों भाषाओं में अनुदित विश्व की इस सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली किताब को पढ़ना, विशेषकर 'नए नियम' को पढ़ना, जिसमें चार सुसमाचारों में ईसा की जीवनी, उनके उपदेश, उनके चमत्कार और उनकी सारी मानवजाति के पाप-प्रक्षालन के लिए एक निर्दोष मेमने के समान दी गई बलि आदि का वर्णन है, किसी की भी आंखें नम करने वाला है। वैसे इस संसार में मसीहा बहुत आए हैं। ईश्वर ने हर जाति को हर काल में अपने दूत दिए हैं, चाहे हम इन्हें ईश्वर के अवतार कहें या पैगम्बर कहें, पर पृथ्वी ऐसे लोगों से कभी खाली नहीं रही है, किन्तु ईसा के समान शायद ही कोई हुआ हो। ईसा ने भाई-चारे, प्रेम, अहिंसा और ईश्वर-भक्ति की जो शिक्षा दी, वह अतुलनीय है। वे ईश्वर के इकलौते पुत्र थे, मसीहा थे, चाहते तो सलीब पर उस दर्दनाक मौत से और सलीब पर चढ़ाए जाने के पूर्व कोड़ों की भयानक मार से, कांटों के ताज और लोगों के अपमान से बच सकते थे... किन्तु ये सारे दुख उन्होंने स्वयं चुने, ताकि मानव जाति के पापों को अपने खून से धो सके। आदम के पापों की सजा भुगत रहे आदमी को ईसा हमेशा के लिए श्रापमुक्त करते हैं, स्वयं का बलिदान देकर। इस दुनियां का इतिहास बताता है कि लोग हमेशा ही दूसरों के खून के प्यासे रहे हैं, ऐसे में दूसरों को पापमुक्त करने के लिए स्वयं अपना बलिदान देने वाला सलीब पर टंगा यह मसीहा जैसे किसी और ही दुनियां का लगता है... और सचमुच ही तो वह जिस ईश्वरीय राज्य का, स्वर्ग के राज्य का, सपना दिखाता है वह इस मार-काट से भरी दुनियां से एकदम अलग है। लपटों से भरी इस दुनियां में ठण्डे हवा के झोके सा चरित्न हमें आश्वस्त करता है कि जब तक वह हमारे दिलों में रहेगा, धरती मरेगी नहीं। ईसा का स्वर्ग का राज्य लोगों को भले ही प्लेटो के यूटोपिया (काल्पनिक आदर्श राज्य) के समान आसमानी आदर्श लगे, किन्तु यह भी सत्य है कि इस आदर्श का साकार करने के लिए जाने कितने ही लोगों ने ईसा के समान ही अपना क्रूस आप ढोया है। हमारे युग के हमारे अपने गांधी को गांधी बनाने में ईसा की, उनके चरित्न और उनके उपदेशों की, भूमिका कितनी अधिक थी इसे उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है।
ईसा पर श्रद्धा रखने के लिए, ईसा से प्रेरणा प्राप्त करने के लिए, ईसा के स्वर्ग के राज्य में प्रवेश के लिए, ईसाई धर्म में दीक्षित होना न जरूरी है, न पर्याप्त... जरूरी है उनके उपदेशों का स्मरण रखना, उन पर चलने की कोशिश करना। इस कोशिश में स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने योग्य हम बने चाहे न बने, किन्तु इस धरती के नरक से अवश्य कुछ सीमा तक निजात पा सकते हैं। राधाकृष्णन् ने शंकराचार्य के विषय में लिखा है कि उनके मस्तिष्क का प्रकाश हमें कभी भी जहां थे वहां नहीं छोड़ता, अर्थात् कुछ आगे बढ़ा देता है, यही बात हम ईसा के जीवन और दर्शन के विषय में कह सकते हैं।
ईसा के इस जीवन और दर्शन की चर्चा के पूर्व उन परिस्थितियों का वर्णन भी आवश्यक है जिसमें ईसा पैदा हुए थे। उल्लेखनीय है कि ईसा जन्मना यहूदी थे। बाइबिल के पुराने नियम में यहूदी धर्म की उत्पत्ति तथा यहूदी जाति के इतिहास की विस्तार से कथा है। यहूदी धर्म की वास्तविक कथा प्रारम्भ होती है मूसा से, जिन्होंने मिस्र देश में गुलामी का जीवन जी रहे अपने इजराइली बन्धुओं को ईश्वर के निर्देशन में एक नए देश, इजराइल, पहुंचाया था। इस यात्रा के दौरान ही उन्हें स्वयं ईश्वर से दशादेश (दस आदेश) प्राप्त हुए जो यहूदी धर्म के मुख्य नियम हैं। उल्लेखनीय है कि ईसा उस दाऊद के वंश के थे जिसने यहूदी जाति को एक नई ऊंचाई तक पहुंचाया था। इसी वंश में महान प्रज्ञावान राजा सालोमन भी हुआ था जिसकी सूक्तियों ने यहूदी धर्म को नैतिकता का श्रेष्ठ पाठ पढ़ाया था और फिर वे अनेकानेक नबी भी ईश्वर ने यहूदियों को दिए थे जिन्होंने यहूदियों को धर्म के प्रति बराबर जागरूक किया था। इन्होंने यह भविष्यवाणी भी की थी कि दाऊद के वंश में एक ऐसा मसीहा पैदा होगा जो यहूदियों को तमाम कष्टों से मुक्ति दिलाएगा, जो उनके लिए अपने आप का बलिदान कर देगा। किन्तु लम्बे समय तक राजनीतिक गुलामी में फंसे यहूदी, जिन्हें अभिमान था कि वे ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ सन्तान है, ईसा को स्वीकार नहीं कर पाए... उनके आध्यात्मिक राज्य को नहीं समझ पाए और उन्होंने बजाय सिंहासन पर बैठाने के, उन्हें सलीब पर लटकाया, सोने के मुकुट की जगह उन्हें कांटों का ताज पहनाया। यहूदी धर्म का यह परिचय हमने इस किताब में थोड़े विस्तार से प्रथम अध्याय ईसा के पूर्व में दिया है।
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