रूढ़ी-परंपराओं की शिकार यानी देवदासी... इसी रूढ़ी-परंपरा का एक और शिकार यानी जोगता ! देवी माँ के नाम अर्पित किए गए न जाने कितने जोगते पाए जाते हैं। इनका जीवन देवदासी से भी भयावह...! देवदासी झुलवा रचा सकती है, किसी आदमी की रखैल बनकर रह सकती है, मर जाए, तो उसके लिए लोग जमा हो जाते हैं, किसी की मेंड पर जगह मिल जाती है, मगर जोगते की टिकटी के लिए आदमी जुटाना बड़ा मुश्किल... उसका स्पर्श भी बिच्छू के डंख जैसा... उसकी किस्मत में है बस अंधेरा... वह भी आम पुरुष जैसा होता है; मगर रूढ़ी-परंपरा के बोझ तले उसे सबकुछ गँवाना पड़ता है और यही इस उपन्यास का विषय है। उपन्यास का नायक अपना दर्द साझा करते हुए कहता है, मुझे भगवान के नाम पर छोड़ा गया, तब सबकुछ था। बिल्कुल आपके जैसा... मगर भगवान के बोझ ने कुतरकर खा डाला, और मेरे भीतर का सबकुछ कब खत्म हो गया, मैं खुद नहीं जान सका...हर जोगते का यही हाल है। कहने से किसी को यकीन नहीं होता... और दिखा भी नहीं सकते... हमारा सबकुछ चीथड़े जैसा...! लेखक ने इसी समस्या को बड़ी ताकत साथ इस उपन्यास में प्रस्तुत किया है। जोगते की जिंदगी के साथ-साथ चौंडकिया, मेले की जोगतिनें आदि की एक नई दुनिया ही उपन्यास के जरिए साकार हुई है। उपन्यास पाठक को सुन्न कर देता है। सोचने पर विवश करता है और यही इस उपन्यास की सफलता है।
समकालीन हिंदी अनुवादकों में डॉ. गोरख थोरात एक चर्चित नाम है। संगमनेर, महाराष्ट्र में जन्मे थोरातजी ने पुणे विश्वविद्यालय से एम.ए. पीएच.डी. तक शिक्षा अर्जित की है। हिंदी में आपकी अनेक आलोचनात्मक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, मगर . आपकी पहचान बतौर एक अनुवादक बनी हुई है। आपने ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित भालचंद्र नेमाड़े के 'हिंदू-जीने का समृद्ध कबाड', 'झूल' (उपन्यास) तथा 'देखणी' (कविता संग्रह), राजन गवस कृत 'जोगवा' तथा 'तणकट' (उपन्यास), अभिराम भड़कमकर कृत 'बालगंधर्व' (उपन्यास), 'समकालीन सिंधी कथा' (कहानी संग्रह) आदि रचनात्मक साहित्य का अनुवाद किया है। इसके अलावा रझा फौंडेशन, नई दिल्ली के लिए चित्रमय भारत (चित्रकला), घरानेदार गायकी (संगीत), पोत (स्थापत्य कला) आदि कला-संबंधी रचनाओं का भी अनुवाद किया है।
आपको 'हिंदू-जीने का समृद्ध कबाड़' उपन्यास के अनुवाद के लिए महराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी का मामा वरेरकर पुरस्कार, 'देखणी' कविता संग्रह के अनुवाद के लिए अमर उजाला फौंडेशन का 'भाषा बंधु' पुरस्कार तथा 'बालगंधर्व' उपन्यास के अनुवाद के लिए Valley of Words International Literary and Arts Festival, 2019 देहरादून का श्रेष्ठ अनुवाद पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। संप्रति आप हिंदी एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में एस. पी. कॉलेज, पुणे में कार्यरत हैं।
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