वेदास्तावद् यज्ञ कर्म प्रवृत्ता, यज्ञाः प्रोक्तास्ते तु कालाश्रयेण ।
शास्त्रादस्मात् कालबोधो यतः स्याद्वेदाङ्गत्वं ज्योतिषस्योक्तमस्ताम् ।।
शब्द शास्त्रं मुखं ज्योतिषं चक्षुषी श्रोत्रमुक्तं निरुक्तं च कल्पः करौ।
या तु शिक्षास्य वेदस्य सा नासिका पादपद्मद्वयं छन्द आद्यैर्बुधैः ।।
ज्यौतिष शास्त्र को वेद भगवान का नेत्र कहा गया है। इसकी श्रेष्ठता के सम्बन्ध में निम्न श्लोक प्रसिद्ध है-यथा शिखामयूराणां नागानां मणयो यथा। तद्वत् वेदांगशास्त्राणां ज्यौतिषं मूध्नि संस्थितम् ।।
त्रिस्कन्ध ज्यौतिष सिद्धान्त, संहिता, होरा में होरा स्कन्ध के अन्तर्गत "यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे" के अनुसार जातक विशेष पर पड़ने वाले विभिन्न ग्रह प्रभावों-स्थितियों का विवेचन प्राप्त होता है। इसे जातक शास्त्र के नाम से जाना जाता है। आचार्य वाराह मिहिर के अनुसार-
यदुपचितमन्यजन्मनि शुभाशुभं तस्य कर्मणः प्राप्तिम् ।
व्यञ्जयति शास्त्रमेतत्तमसि द्रव्याणि दीप इव ।।
ज्यौतिष के प्रमुख अठ्ठारह प्रवर्तक आचार्य है। इनमें पराशर का मुख्य स्थान है। फलित ज्यौतिष शस्त्र में लघुपाराशरी उडुदाय पदीप का स्थान विषय वस्तु की दृष्टि से परमोत्कृष्ट है। पाराशर ऋषि कृत इस लघु ग्रन्थ की महत्ता व श्रेष्ठता को सभी विद्वानों ने एक स्वर से स्वीकार किया है। इस ग्रन्थ की जितनी अधिक व्याख्या ज्यौतिष शास्त्र में विद्वानों ने की है शायद ही उतनी किसी अन्य ग्रन्थ की हुयी हो। लघुपाराशरी में पांच अध्याय क्रमशः संज्ञाध्याय, योगाध्याय आयुर्दायाध्याय, दशाफलाध्याय एवं मिश्रकाध्याय है। इस ग्रन्थ में कुल बयालिस (42) श्लोक हैं जो पूरे फलित ज्यौतिष शास्त्र के लिए सूत्र रूप हैं। इसके रहस्यों को उद्घाटित करने का मेरा लघु प्रयाश है। आशा करता हूँ कि पाठक गण को फलित ज्यौतिष शास्त्र में फलादेश कथन में आने वाली कठिनाइयों को सुलझाने में यह सहायक होगा।
ज्योतिष शास्त्र में प्रश्न शास्त्र का अपना विशेष महत्व है। फलादेश कथन में दिनों-दिन प्रश्न शास्त्र का विस्तार हो रहा है। सभी प्रकार के प्रश्नों एवं समस्याओं का समाधान प्राप्त करने में प्रश्न शास्त्र त्वरित सहायक है। भविष्य कथन में दैवज्ञों का सर्वोत्कृष्ट मार्गदर्शन करने में प्रश्न कुण्डली अचूक विधा है।
प्रश्न शास्त्र के ग्रन्थों में सर्वोत्तम ग्रन्थ प्रश्न विद्याषट्पञ्चाशिका है। यह ग्रन्थ दैवज्ञ शिरोमणि वराहमिहिर के पुत्र आचार्य पृथुयशस् द्वारा रचित है। इसमें छप्पन (56) श्लोक होने से इसका नाम षट्पञ्चाशिका है। इसमें सात अध्याय संज्ञाध्याय, गमागमाध्याय, जयपराजयाध्याय, शुभाशुभलक्षणाध्याय, प्रवास चिन्ताध्याय, नष्ट प्राप्त्याध्याय एवं मिश्रकाध्याय है। ज्यौतिष शास्त्र के उत्तमोत्तम टीकाकार श्री उत्पल भट्ट की टीका भी इस प्रश्न विद्या ग्रन्थ पर उपलब्ध है। जो इसके वैशिष्ट्य को कई गुना बढ़ा रही है। मैने प्रश्न शास्त्र की आवश्यकता एवं विशेषता को दृष्टिगत रखते हुये सुस्पष्ट व्याख्या एवं अत्यावश्यक परिशिष्ट विशेष सहायक सामग्री संग्रह के साथ विद्वानों के सम्मुख इस ग्रन्थ को प्रस्तुत किया है।
उक्त दोनों ग्रन्थ रत्नों को एकत्र कर सुसज्जित करने की प्रेरणा पितृचरण श्री पं० सुधाकर जी पाण्डेय से प्राप्त हुयी। इस कार्य का सम्पादन गुरुचरण द्वारा प्राप्त ज्ञान, छात्र एवं मित्रों का सहयोग, धर्मपत्नी श्रीमती संध्यारानी पाण्डेय के यथा साध्य सत्प्रयास से ही सम्पन्न हुआ। चिन्तन प्रकाशन के श्री राम सिंह जी का पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ। एतर्थ उक्त सभी लोगों का हार्दिक आधार व्यक्त करता हूँ।
मुझे पूर्ण विश्वास है इस प्रयत्न को जिज्ञासु पाठक गण, छात्र एवं विद्वान सहर्ष स्वीकार करेंगे। कहीं कुछ त्रुटि हो तो उसे मेरी त्रुटि जानकर क्षमाकर कृतार्थ करें। आप सभी के ज्ञानवर्द्धन में उपयोगी सिद्ध हो ऐसी आशा करता हूँ।
गच्छतः स्खलनं क्वापि भवत्येव प्रमादतः ।
हसन्ति दुर्जनास्तत्र समादधति सज्जनाः ।।
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