| Specifications |
| Publisher: Educational Book Service, Delhi | |
| Author Om Prakash Manjul | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 92 | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 9.00x6.00 inch | |
| Weight 250 gm | |
| Edition: 2025 | |
| ISBN: 9789393469779 | |
| HBF461 |
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प्रिय पाठकगण !
प्रभु की प्रसादमयी प्रेरणा से मैं बीसवीं सदी के आठवें दशक से पत्र-पत्रिकाओं में लिख रहा हूँ। मैं मूलतः व्यंग्य-लेखक हूँ। यद्यपि मैंने भक्त-वत्सल भगवान की अनुकम्पा से व्यंग्य के अतिरिक्त कहानी. लघुकथा, एकांकी, नाटक, समीक्षा समालोचना, संस्मरण, ललित निबंध, सम-सामयिक लेख, यात्रा वृत्त, डायरी लेखन आदि लगभग सभी गद्यविधाओं के साथ यत्किचित काव्य में भी देश की डेढ़ सौ से अधिक पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखा है। यह मेरी 19वीं कृति और 10वां व्यंग्य-संग्रह है।
लेखन (विशेषतः व्यग्य) के संदर्भ में यह भी निवेदित है, कि यूँ मैंने उस-उस अवधि में भी व्यंग्य लिखे हैं, जब उ.प्र. में राजनाथसिंह या कल्याण सिह की और केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा या भाजपा नीत संयुक्त मोर्चा की सरकारे रहीं है, पर मेरे व्यग्यों ने अमूमन उन्हीं दिनों को देखा, सासा और जिया है, जब-जब उत्तर-प्रदेश में कांग्रेस, सपा या बसपा और देश में कांग्रेस तथा कांग्रेस और उसके गठबंधनों की सरकारें रही हैं। मैं यूँ भी कह सकता हूँ, इन व्यंग्यों की मैन्यूफैक्चरिंग के लिए इन दलों ने ही विशेष रूप से इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया था। अस्तु, मै इन कथित सहयोगी पार्टियों का ही होलसेल आभारी हूँ, जबकि भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों के प्रति पार्टली ही आभारी हूँ, क्योंकि इनके शासन में व्यंग्य के विषाणु कायम रहने या बढ़ने के बजाय कम होते रहे है। सन् 2014 में देश में मोदीजी और इसके 3 वर्ष बाद ही उत्तर प्रदेश में सन् 2017 में योगी जी के नेतृत्व में भाजपा का शासन आने पर तो हमारे व्यंग्यों की लहलहाती फसल ही चौपट हो गयी है। व्यंग्य को पैदा करने वाली देश समाज और शासन में व्याप्त विसंगतियों, विकृतियों और विरीतियों पर मोदी-योगी की जोड़ी ने ऐसा बुलडोजन चलाया, कि अब व्यंग्यकारों को व्यंग्य की खोज में दिन में तारे नजर आने लगते हैं। वास्तव में हम जैसे व्यग्यकार मोदी, योगी जैसे नेताओं को कभी क्षमा नहीं कर सकते, क्योंकि इनने सीधे व्यंग्यकारों के पेट पर लात मारी है। खैर, हमने अपने व्यंग्यों में मोदी-योगी युग को दूर से सलाम करते हुए, मात्र स्पर्श भर किया है. अधिकतर संपर्क और स्पर्श उन्हीं पार्टियों का किया है, जिनके प्रति ऊपर हमने कृतज्ञता व्यक्त की है। अस्तु, पाठकवृंद से निवेदन है कि वे संग्रह के व्यंग्यों को पढ़ते समय अपनी चेतना में तत्कालीन समयावधि का बोध अवश्य रखें।
पाण्डुलिपि की प्रस्तावना से पुस्तक के प्रणयन तक, मानवी से लेकर दैवी तक जिन-जिन व्यक्तियों-शक्तियों का सहयोग रहा, अकिचन उन सभी के प्रति नत-मस्तक है। जिन दानवी शीक्तयों का भी मुझे प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष येन-केन-प्रकारेण प्रेरणा प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है. उन्हें भी सादर-साभार नमन करता हूँ। मैं ही क्या, मेरे आदर्श गोस्वामी तुलसीदास ने भी. 'बहुरि बर्बाद खलगन सति भाएं। जे बिनु काज दाहिनेहु बाएं' कहकर उनकी वंदना की थी। सुहद प्रकाशक, प्रिय श्री सत्यम पाण्डेय जी. जो मेरे निवेदन पर मेरी पाडुलिपि को पुस्तकाकार देने के लिए तत्काल सहजता से तैयार हो गये, के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए तो वास्तव में मेरे पास पर्याप्त समुचित एवं यथेष्ट शब्द नहीं हैं। उनके प्रति मैं मुहुर्मुहः शिष्टाचार और सद्भाव व्यक्त करता हूँ।
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