लो बच्चो, तुम्हारे लिए एक से एक अनोखी कहानियों का खजाना। यानी, मेरी कहानियों की ताजा पुस्तक, 'कहो कहानी पापा'। कितना सुंदर नाम है न, पुस्तक का ....पर भला यही नाम क्यों? भई, इसकी भी एक कहानी है। वह बताऊँगा। पर अभी नहीं, थोड़ा आगे चलकर ।
पर सबसे पहले तो यह बता दूँ, कि पुस्तक में तुम्हारे मन को रिझाने वाली ऐसी एक-दो नहीं, पूरी इकतीस नन्ही, नटखट कहानियाँ हैं, जो तुम्हें एक अनोखी दुनिया में ले जाएँगी। ऐसी प्यारी-प्यारी किस्से-कहानियों की दुनिया, जहाँ जाकर लौटने का मन ही नहीं करता। इसलिए कि यह ऐसी दुनिया है, जिसमें ढेर सारी सारी खुशियाँ, ढेर सारा प्यार, और सपनों की ऐसी मीठी उड़ान भी है, कि हर क्षण वहाँ नए रंग, नए दृश्य नजर आते हैं। बिल्कुल सपनों की तरह। साथ ही एक से एक मजेदार चरित्र भी, जिनसे मिलकर तुम हँसते-हँसते लोटपोट हो जाओगे।
सच पूछो तो, 'कहो कहानी पापा' में तुम बच्चों की अपनी दुनिया है। एकदम नई-नवेली और निराली दुनिया, जिसमें हर पल खुशियाँ बरस रही हैं। ऐसी दुनिया जिसमें जंगल के प्यारे-प्यारे जानवर हाथी, भालू का बच्चा, बारहसिंगा, जेबरा और न जाने कौन-कौन बच्चों से दोस्ती करने के लिए ललकते हैं, और इन कहानियों की भोली-भोली सान्या पर तो वे इतना प्यार वारते हैं, कि रोज शाम जब वह घूमने निकलती है, तो अचानक उसेएक नई कहानी मिल जाती है। ऐसी कहानी कि सान्या का दिल बाग-बाग हो जाता है।
वह सोचती है, घर जाते ही मैं यह कहानी मम्मी को जरूर सुनाऊँगी ! और घर आकर वह सुनाती है, तो मम्मी अचरज में पड़ जाती हैं, "अरे, नन्ही सान्या को रोज-रोज कहाँ से मिल जाती हैं इतनी प्यारी कहानियाँ?
और फिर नन्ही सी सान्या है भी खूब। तभी तो वह रोज नए-नए कमाल करती है। बल्कि कमाल क्या, धमाल कहो! कभी वह मुटकल्ले हाथी, जेबरा, भालू के बच्चे और बारहसिंगा से मिलती है, और उनके साथ मजे में जंगल की सैर करने निकल पड़ती है, तो कभी प्यारे से चूजे, हिल्ली के बच्चे और भूरे पिल्ले से खूब खूब बातें करती है। खूब मीठी-मीठी, भोलेपन से भरी बातें, और उनके साथ बातें करते हुए हँसते-हँसते लोट-पोट हो जाती है। मगर कभी-कभी इतनी संजीदा भी, कि जेबरा हो, या बारहसिंगा, उनकी पूरी कहानी सुने बिना उसे चैन नहीं पड़ता। और यों ही बातें करते-करते कल्पना की दुनिया में वह बहुत दूर निकल जाती है।
फिर जब वह लौटती है तो उसके पास एक ऐसी नटखट, प्यारी सी कहानी होती है, जिसे वह मम्मी को सुनाती है, देबू भैया और मीनू दीदी को सुनाती है। और सब के सब हैरान, 'अरे, सान्या के पास रोज-रोज इतनी प्यारी कहानियाँ आती कहाँ से हैं?' और तब सान्या बड़ी भोली सी हँसी हँसकर कहती है, "ओफ्फोह, आपको इतना भी नहीं पता! अरे, ये तो मेरे प्यारे दोस्त हैं, जो मुझे रोज-रोज मिलते हैं, जब मैं शाम को घुम्मी-घुम्मी करने निकलती हूँ!" तो सबके सब चकरा जाते हैं।
यानी, सान्या रोज-रोज अपने प्यारे दोस्तों से मिलती है, और फिर खुद-ब-खुद एक कहानी बन जाती है।
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