भूमिका
इस पुस्तक के विषय में कुछ कहने से पूर्व यह समझ लेना अधिक आवश्यक है कि 'मीर' की रचना का उद्देश्य क्या है और उसके व्यक्तित्व के साथ उसका क्या सम्बन्ध है? पहले प्रश्न का उत्तर तार्किक लोग जरा कठिनता से पा सकेंगे; परन्तु में एक सहृदय लेखक के स्वर में स्वर मिलाकर कह सकता हूँ कि कवि (सच्चे कवि) की रचना का उद्देश्य अनन्त है। अतएव साधारण रूप में कहा जा सकता है कि कवि की रचना का उद्देश्य कुछ निश्चित नहीं है। जो लोग, 'प्रकृत काव्य का क्या उद्देश्य है', यह प्रश्न करते हैं उनसे में पूछता हूँ कि 'इस अनन्त सीमारहित प्रशस्त नभमंडल का क्या उद्देश्य है? घनघोर जनशून्य अरण्य में नन्दन कानन के पुष्पों को भी लजाने वाले अनेक फूल खिलते और जगमगाते हैं, कोसों तक अपना स्वर्गीय सौरभ फैलाते हैं। ये पुष्प मनुष्य के स्पर्श वा उसकी दृष्टि से कभी कलुषित नहीं हुए, इन पुष्पों की उत्पत्ति का क्या रहस्य है? हवा के झकोरों से लहरें मारने वाला उदधि कौन से नैतिक तत्त्व की सृष्टि करता है'?* इन प्रश्नों के उत्तर में ही इस प्रश्न का उत्तर छिपा है। कवि की रचना किसी भी उद्देश्य से नहीं होती, वह अनुभूत दुःख के अनन्त रहस्यों को उनके स्वाभाविक रूप में चित्रित कर देता है। सुख की अनादि तरंगों को वह अपने प्रशस्त हृदय पर उठनेवाली विराट भावनाओं का प्रतिविम्व समझता है; वह दुःख-सुख, पाप-पुण्य सबको समान भाव से आलिंगन करता है। उसकी अनन्त सहृदयता उसके दृष्टिकोण को भी प्रशस्त कर देती है। और वह अभेदभाव से विश्व में विचरण करता है। यह तो हुई प्रकृत उद्देश्य की बात। अब 'मीर' की रचना का गौण उद्देश्य देखिए। 'मीर' की कविता का उद्देश्य अपनी वेदना को प्रकाश करना ही है। अपार दुःख के उद्वेग से उत्पन्न आहे का जो उददेश्य है'' की रचना का भी गय 'मीर' की रचना पर उसके व्यक्तित्व की गहरी छाप है। उसका एक शब्द एक-एक अक्षर अनुभूत वेदना की ठंडी आहों से भरा हुआ है। जीতত उसने कहा है. उन सब में व्यक्तिगत अनुभव की झलक है। 'मी' की रच सर्वत्र कठिनाइयों से भरी हुई है। उसकी अवस्था का उचित उपमान नारियल का फल हो सकता है। ऊपर के कड़े छिलके को भेदने पर ही लोग आन्तरिक द भावों की अनुभूति कर सकेंगे। मीर की रचना पर परदा पड़ा हुआ है। जो लोग मनुष्य को देखकर उसे केवल हाथ पाँव वाला क्रियाशील जीवमात्र समझते है. वे मानवसत्ता से एकदम अनभिज्ञ हैं. वैसे ही जो लोग 'मीर' को अथवा उसकी रचना को अस्थिपंजरमय रूप में देखकर ही उसके विषय में अपनी राय निर्धारित करते हैं वे धोखा खाएँगे। उसकी रचना पर जो परदा पड़ा हुआ है. उसे हटा दीजिए और फिर देखिए कि वह कितने पानी में है। फिर देखिए कि उसकी प्रेममयी सरिता में भावनाओं की कितनी ऊँची लहर उठी है। बीसों बार 'मीर' ने स्वयं ही परदे वाली बात कही है, जिससे लोग उसकी रचना से धोखा न खायें। वह कहता है- कब और ग़ज़ल कहता मैं इस जमीं में लेकिन, परदे में मुझे अपना अहवाल सुनाना था। 'परदे में मुझे अपना अहवाल सुनाना था' - इसी बात को एक दूसरी जगह खुद हो हैरत करते हुए हज़रत फ़रमाते हैं- एक आफ़ते-ज़माँ है यह 'मीर' इश्क़पेशा, परदे में सारे मतलब अपने अदा करे हैं। यही मीर की रचना का रहस्य है। अब मीर की भावनाओं को भी देखिए। 'मीर' बिचारा सदैव ठुकराया जाता रहा। उसकी जीवन-निशा रोते ही रोते बीती है। किन्तु इस अश्रु-प्रवाह हो से वह किनारे लगा।
लेखक परिचय
रामनाथ 'सुमन' भाषाएँ : हिन्दी, संस्कृत, अँग्रेजी, उर्दू, बांग्ला, गुजराती और प्राचीन फ्रेंच। प्रमुख रचनाएँ : अँग्रेज़ी: फोर्सेज ऐंड पर्सनेलिटीज इन ब्रिटिश पॉलिटिक्स, ब्लीडिंग वृंड। अनुवाद : विनाश या इलाज, जब अँग्रेज आये, बच्चों का विवेक, विषवृक्ष, घरजमाई, रहस्यमयी, दामाद । हिन्दी-समीक्षा : कवि प्रसाद की काव्य-साधना, माइकेल मधुसूदन दत्त, दागे जिगर, कविरत्न मीर, कविता : विपंची। निबन्ध : जीवनयज्ञ, वेदी के फूल, कठघरे से पुकारती वीणा । राजनीति : गाँधीवाद की रूपरेखा, युगाधार गाँधी। संस्मरण एवं रेखाचित्र: हमारे नेता, स्व. राष्ट्र-निर्माता आदि । सम्पादन : 'नवराजस्थान' तथा 'सम्मेलन पत्रिका'। अनेक पुस्तकों के विविध भारतीय भाषाओं में अनुवाद ।
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