1857 ई. के भारतीय स्वतन्त्रता का इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान है। यहीं से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हमारी राष्ट्रीय चेतना की अभिव्यक्ति आरंभहुई, जो 1947 में जाकर स्वतंत्रता प्राप्ति में पूर्णाहुति बनी थी।
खरगोन जिले में प्रथम स्वाधीनता संग्राम का बीणा स्थानीय जनजातियों के द्वारा उठाया गया था। ये आदिवासी जिन्हें तथाकथित सभ्य समाज अनपढ़, जंगली कहता था, उन्हीं ने इस क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध एक जबरदस्त लड़ाई लड़ी थी। ये संघर्ष इतना सुनियोजित था कि एक आदिवासी नेता के शहादत प्राप्त करते ही दूसरी पंक्ति का नेता तुरन्त ही उसके स्थान को ग्रहण कर लेता था। अपने सीमित साधनों एवं परंपरागत हथियारों से सज्जित होकर उन्होंने शक्ति सम्पन्न, आधुनिक संचार पद्धति व अस्त्र-शस्त्रों से लैस ब्रिटिश सरकार के खिलाफ निरन्तर कई वर्षों तक युद्ध किये।
समूचे निमाड़ क्षेत्र में सीताराम कुंवर रघुनाथ सिंह मण्डलोई, खाज्या नायक, भीमानायक एवं टंट्या भील ऐसे नाम थे, जिन्होंनें त्याग एवं शहादत की नई मिसाल कायम की थी। इन आदिवासियों के कोई राज्य नहीं थे जो अंग्रेजों के द्वारा छीने गये हो, किन्तु फिर भी अपनी जन्मजात स्वतंत्र प्रवृत्ति से वशीभूत होकर इन नेताओं और इनके साथ असंख्य अनुयायियों ने स्वातंत्र्य यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दी थी।
यद्यपि अंग्रेजों ने अपने कूटनीतिज्ञ षडयन्त्र के द्वारा समकालीन ब्रिटिश अभिलेखों में इन आदिवासियों को लुटेरे डकैत एवं हत्यारा निरूपित किया था ताकि भारत की भावी पीढ़ी इन्हें घृणा एवं तिरस्कार की दृष्टि से देखे और किसी प्रकार की प्रेरणा ग्रहण न कर सके किन्तु लोक साहित्य एवं जनश्रुतियों ने अपनी विरासत में इनकी वास्तविक छवि को हमारे समक्ष प्रस्तुत किया।
इन्हीं परम्परागत इतिहास स्त्रोतों के इन आदिवासियों के नायक, जननायक एवं स्वतन्त्रता सेनानियों को मेरा नत मस्तक नमन।
खरगोन जिला मेरी मातृभूमि जन्मभूमि एवं कर्मभूमि है यह मेरा अहोभाग्य कि मैं इस स्वर्णिम अध्याय को संजो सकूँ, यह मेरा अदना प्रयास था। इस पुनीत कार्य को मुझे सौंप कर स्वराज संस्थान संचालनालय ने मुझे इस निमाड़ क्षेत्र के ऋण से उऋण होने का जो अवसर दिया, उसके लिये में उनकी आभारी हूँ।"
प्रस्तुत शोध कार्य के लिये मुझे मेरे गुरूवर डॉ. शिवनारायण यादव, गुरुतुल्य डॉ. सुरेश मिश्र मेरी गुरू. मित्र एवं सहयोगी डॉ. पुष्पलता खरे साथ ही विभिन्न संस्थानों, परिचित एवं अपरिचित सज्जनों, मित्रों एवं पारिवारिक सदस्यों ने जो सहयोग प्रदान किया उनके प्रति हृदय से धन्यवाद ज्ञापित करती हूँ।
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