भारत की आज़ादी के अमृतकाल में विशिष्ट स्वातंत्र्यवीरों के जीवनवृत्तांत से युवा पीढ़ी को अवगत कराने के उद्देश्य से प्रेरित पं. श्यामजी कृष्णवर्मा की जीवनी का अनुवाद प्रकाशित करते हुए मैं सगर्व हर्षान्वित हो रहा हूं। स्वतंत्रता संग्राम की एक धारा देश में स्थित राष्ट्रीय नेताओं के नेतृत्व में चल रही थी तो दूसरी धारा ब्रिटिशराज के ही आंगन में सक्रिय थी। होमरुल सोसायटी की स्थापना करके मूलतः गुजराती महोदय पं. श्यामजी कृष्णवर्मान राष्ट्रीय चेतना का उद्घोष लन्दन की हृदयस्थली में ही 'इंडिया हाऊस' में प्रारंभ कर दिया था। भारतीय स्वतंत्रता की मुखर पत्रिका 'इंडियन सोशियोलोजिस्ट' में दो टूक शब्दों में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लेख छपते थे। पं. श्यामजी कृष्णवर्मा के नेतृत्व में लन्दन एवं योरप में बस गये भारतीय मनीषी एवं मैडम कामा से लेकर एनी बेसन्ट एक आक्रामक रवैया अपनाकर भारत की आज़ादी की मांग करते रहते थे। ऐसे राष्ट्रपुरुष की जीवनी भी हमें राष्ट्रवादी विचारधारा के वैतालिक एवं गुजरात साहित्य अकादमी के पूर्व सूत्रधार श्री विष्णु पंड्याजी की कलम से प्राप्त होना निश्चय ही बड़ी सौभाग्य की बात है। मूल गुजराती से इस जीवनी का 'क्रांति की खोज में' शीर्षक से विद्वद्वर्य श्री आलोक गुप्त एवं ज्ञानसिंह चंदेल द्वारा संपन्न यह अनुवाद न केवल गुजरात के अपितु समूचे राष्ट्र के देशप्रेम युवाओं के लिए रोचक पाथेय सिद्ध होगा ।
मैं अकादमी की ओर से लेखक दंपती एवं दोनों अनुवादकों का धन्यवाद करता हूं।
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